EPW समुदाय के सदस्यों की ओर से प्रकाशक समीक्षा ट्रस्ट को लिखा गया खुला पत्र
ईपीडब्लू पढ़ने वाली बौद्धिक जमात के पुराने सदस्य और हितैशी होने के नाते हम सभी संपादक परंजय गुहा ठकुरता के अचानक हुए इस्तीफ़े सहित हाल के समूचे घटनाक्रम पर स्तंभित और निराश हैं।
हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि समीक्षा ट्रस्ट के बोर्ड ने पत्रिका में प्रकाशित एक आलेख को वापस लेने का आग्रह संपादक से किया था तथा बोर्ड व संपादक के बीच रिश्तों के नए मानक लागू करने व एक सह-संपादक की नियुक्ति करने की तैयारी में था। इन सभी कृत्यों को (प्रेस को दिए साक्षात्कार में संपादक की ओर से वर्णित वे सभी बातें जिन्हें ट्रस्ट ने अपने बयान में नकारा नहीं है) मिलाकर देखने पर ज़ाहिर होता है कि ग़ैरत वाला कोई भी संपादक ऐसे में इस्तीफ़ा देने को बाध्य हो जाता। बोर्ड-संपादक रिश्ते में निहित प्रक्रियागत औचित्य जैसे आंतरिक मामलों और ईपीडब्लू की अखंडता में निहित उसकी सार्वजनिक प्रतिष्ठा के कहीं ज्यादा बड़े प्रश्न के बीच फ़र्क बरत पाने में नाकाम रहकर समीक्षा ट्रस्ट के बोर्ड ने पत्रिका की विश्वसनीयता को गहरी चोट पहुंचायी है। एक खोजी पत्रकार के बतौर परंजय गुहा ठकुरता की पेशेवर प्रतिष्ठा दशकों पुरानी है। अतीत में किए उनके तमाम चर्चित उद्घाटनों ने विशाल निगमों के कुकृत्यों और उनके भ्रष्टाचरण में राजकीय संस्थाओं की संलिप्तता को रेखांकित करने का काम किया है। ऐसे में यह अपेक्षित ही है कि ऐसी पत्रकारिता के निशाने पर जो लोग हैं, वे पलटवार करेंगे। समीक्षा ट्रस्ट के न्यासी बोर्ड ने जब 15 माह पहले गुहा ठकुरता को संपादक नियुक्त किया था, तो उनके संज्ञान में ये बातें रही होंगी। बोर्ड से परामर्श किए बगैर संपादक द्वारा ट्रस्ट की ओर से कानूनी कार्रवाई को अंजाम दिया जाना एक बात है लेकिन पत्रिका में पहले प्रकाशित हो चुके एक आलेख को हटा लेना बिलकुल अलहदा है। बोर्ड को यदि लगता है कि आलेख में तथ्यगत त्रुटियां थीं तो उसे सार्वजनिक माफ़ी मांगनी चाहिए थी और फिर उसे हटाना चाहिए था। अगर उसकी चिंता केवल बोर्ड की मर्यादा को लेकर है तो उसे आलेख के पक्ष में सार्वजनिक रूप से खड़ा रहना चाहिए। आलेख की अंतर्वस्तु पर अपना पक्ष स्पष्ट किए बगैर संपादक को इस्तीफ़े के लिए बाध्य कर के बोर्ड ने उस संस्थान का अपमान किया है जिसे पोषित करना उसका अनिवार्य कर्तव्य था।
अडानी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी नियमों में की गई हेरफेर की जांच के संबंध में ईपीडब्लू के संपादक और प्रकाशकों (समीक्षा ट्रस्ट) को भेजा गया कानूनी नोटिस कोई आश्चर्यजनक तथ्य नहीं है। खोजी पत्रकारिता को धमकाने और दबाने के लिए कानूनी नोटिसों इस्तेमाल का दुर्भाग्यपूर्ण रूप से अब एक चलन बन चुका है। ऐसे में बरसों तक चलने वाले मुकदमे एक ईमानदार पत्रकारों को बहुत महंगे पड़ते हैं और उसका उत्पीड़न करते हैं। अगर प्रकाशित सामग्री की पर्याप्त पुष्टि मुमकिन है, तो फिर न्यायिक प्रक्रिया के प्रतिकूल परिणामों से डरने की कोई वजह नहीं दिखती लेकिन ऐसे में ज़रूरी है कि प्रकाशकों को अपने संपादकों के साथ खड़ा रहना होगा, तभी उनके प्रकाशन की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता भी कायम रह सकेगी।
भारत फिल़हाल एक अंधेरे दौर से गुज़र रहा है जहां अकादमिकों और पत्रकारों दोनों के लिए बौद्धिक अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर वास्तविक चिंताएं व्याप्त हैं, चूंकि प्रमुख मीडिया प्रतिष्ठानों पर कॉरपोरेट कब्ज़ा हो चुका है और स्वतंत्र विचार-विमर्श के प्रत्यक्ष व परोक्ष दमन के उदाहरण लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। इस संदर्भ में- ईपीडब्लू की वेबसाइट से ”मानहानिपूर्ण” आलेख को हटाने और संपादक के ऊपर शर्मनाक शर्तें थोपने के प्रयास से- संबंधित रिपोर्टों से ऐसा आभास होता है कि समीक्षा ट्रस्ट के न्यासी बोर्ड ने आत्मसमर्पण कर दिया है। यह खौफ़नाक है। लोकतंत्र के लिए बेहद अहम मानी जाने वाली स्वतंत्र व आलोचनात्मक सोच को आगे बढ़ाने में ईपीडब्लू की लंबी और प्रतिष्ठित परंपरा रही है। भारत और विदेश के हम तमाम विद्वज्जन, विश्लेषक और कार्यकर्ता दशकों से ईपीडब्लू में अपने लेखन से योगदान देते रहे हैं और हम अपेक्षा करते हैं कि हमारी जो साझा विरासत है, उससे मौजूदा न्यासी बेख़बर नहीं होंगे और ट्रस्ट के भीतर उसे कायम रखने की अपनी जिम्मेदारी को समझते होंगे। उन्हें इस पत्रिका और समीक्षा ट्रस्ट की प्रतिष्ठा व विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाने की ज़रूरत है। यह ट्रस्ट चूंकि व्यापक जनता के प्रति जवाबदेह एक इकाई है, लिहाजा इस पत्र में हम यह मांग करते हैं कि ट्रस्ट और ईपीडब्लू समुदाय के बीच संवाद के कुछ रास्ते खोले जाएं ताकि ईपीडब्लू की स्वायत्तता और अखंडता को सुदृढ् किया जा सके।
अमिय कुमार बागची, अकील बिलग्रामी, रामचंद्र गुहा, नोम चॉम्सकी, सुनील खिलनानी, जोया हसन, एमवी रमणा, पैट्रिक बॉर्न्ड, यिल्माज़ आकुज़, लॉरेन्स कॉक्स, डिया डिकोस्टा, सेठ सांद्रोव्सकी, जय सेन, कन्नन श्रीनिवासन, मैट मेयर, ईएएस सरमा, लॉरेन्स शूट, सुमित सरकार, तनिका सरकार, कॉलिंस टीका समेत कुल 154 हस्ताक्षरकर्ता