एबीपी ने पीले के साथ जिस लाल को जोड़ा है, वह किसी परिवर्तन या क्रांति का नहीं, ‘लाल देह लाली लसे वाला’ है। कहने की ज़रूरत नहीं कि चैनल में भक्तिरस की गंगा बह रही है।
यह संयोग नहीं कि चैनल संपादक मिलिंद खांडेकर हनुमान चालीसा का असल अर्थ जनता तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत दिखते हैं। चैनल इस काम के लिए देवदत्त पटनायक की सेवाएं ले रहा है जो इन दिनों अंग्रेज़ीदाँ लोगों को मिथकरस पिलाने वाले मैनेजमेंट गुरु के रूप में मशहूर हो रहे हैं। बहरहाल, रंग बदलना किसी का भी हक़ है, सवाल यह है कि आनंद बाज़ार पत्रिका और दि टेलीग्राफ़ से रिश्ते में बँधे इस चैनल का ढंग कब बदलेगा ?
क्या तो अंदाज़ था और क्या ही चुनौती ! साथ में यह बार-बार याद दिलाया जा रहा था कि नरेंद्र मोदी ने यह वादा 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले प्रचार के दौरान किया था। बार-बार वह क्लिप भी दिखाई जा रही थी। यही नहीं, चैनल के पत्रकार जगविंदर पटियाल ने जब अरविंद केजरीवाल का इंटरव्यू लिया तो उन्हें घेरने के लिए भी दाऊद पर कार्रवाई का क़िस्सा छेड़ा। जब केजरीवाल ने इस ख़बर के सही होने पर सवाल किया तो पटियाल के चेहरे पर उपहास से भरी मारक मुस्कान तैर गई थी।
वैसे, 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी दाऊद पर कार्रवाई की फ़र्ज़ी ख़बरें मीडिया में आई थीं और अब 2017 में यूपी समेत पाँच राज्यों के चुनाव के पहले दाऊद को लेकर बीजेपी की यह मीडियाबाज़ी काफ़ी कुछ कहती है। यह फ़क़त संयोग नहीं है।
बहरहाल, यह अपराध केवल एबीपी ने नहीं किया। बड़े-बड़े अख़बारों और चैनलों का भी यही हाल था। चाहे नंबर एक ‘आज तक’ हो या फिर ‘इंडिया टीवी’, सबने यह
लेकिन बात यहाँ एबीपी की इसलिए है कि वह परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। उससे अपील है कि वह रंग ही नहीं ढंग भी बदले। दाऊद इब्राहिम की संपत्ति कुर्की जैसी ख़बरों को लेकर दर्शकों से माफ़ी माँगे। यह एक नई शुरुआत हो सकती है। दर्शकों को अगर हनुमान चालीसा का सही अर्थ जानने का हक़ है तो उन्हें सही ख़बर भी जानने का हक़ है, वरना एबीपी का नारा ‘आपको रखे आगे’ , संदेह पैदा करेगा।
अपने आगे रखने वाला कौन और कैसा है, यह जानना बहुत ज़रूरी है। पीछे वाले की नीयत ठीक ना हो तो , आगे पड़ जाना घाटे का सौदा हो सकता है..! पीताम्बर ओढ़ने का मतलब यह नहीं की पीत पत्रकारिता की जाए।
.बर्बरीक