मई का महीना है और धूप इस वक़्त कई बार सड़क का तारकोल पिघला देती है, उन सड़कों पर नंगे पांव-टूटी या सादी चप्पलों के साथ, साइकिल पर, ट्रक और ट्रॉली में सारी जमापूंजी किराए के तौर पर देते हुए, पुलिस से पिटते हुए, घूस खिलाते हुए, मांग कर खाना खाते हुए या फिर मीलों भूखे पेट – लाखों मज़दूर देश भर में इधर से उधर अपने गांव वापस पहुंचने की कोशिशों में चलते जा रहे हैं। इन सारी बाधाओं से वे बच जाते हैं तो उनको कभी रेल की पटरियों, तो कभी सड़क पर होने वाले हादसे मार देते हैं। हर रोज़ आ रही ख़बरों की फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में बुधवार की देर रात हुआ एक और हादसा जुड़ गया है। साथ में 6 मज़दूरों के नाम भी जुड़ गए हैं, कोरोना लॉकडाउन के दौरान रास्ते में जान गंवाने वाले श्रमिकों की फेहरिस्त में।
बुधवार की देर रात 12 बजे के आस-पास, उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़नगर-सहारनपुर स्टेट हाइवे 59 पर श्रमिकों का एक जत्था पंजाब से बिहार पैदल पहुंचने की कोशिश में चलता जा रहा था। इसी समय, इनमें से 8 प्रवासी मजदूरों को एक रोडवेज बस ने रौंद दिया। ये सारे ही मज़दूर पंजाब से बिहार के गोपालगंज में अपने गांवों की ओर निकले हुए थे। बताया जा रहा है कि बस का चालक, अंधेरे का फ़ायदा उठा कर मौके से फरार हो गया।
ऐसा लगने लगा है कि देश की सड़कों पर एक कभी न ख़त्म होने वाला करुण महाकाव्य लिखा जा रहा है। आप आंखें पोंछ कर, जब तक ये सोच कर अगला पन्ना पलटते हैं कि अब शायद सुखांत हो…अंत तो होता है पर सुखांत नहीं, कुछ और जानों का। प्रधानमंत्री अपने राष्ट्र के नाम संदेश में इन गरीबों का ज़िक्र भी नहीं करते, वित्त मंत्री के एलानों में इनकी कोई जगह नहीं होती..जिन अख़बारों में इनके भी इसी दुनिया में होने और हादसों में बेआवाज़ चले जाने की ख़बर – अंदर के किसी पन्ने पर छपती है, उसी को बिछाकर ये रात को सड़क किनारे सो जाते हैं या उस पर रख कर, कहीं से मिला हुआ ख़ाना खाकर – अगली सुबह फिर मीलों चल पड़ने की तैयारी कर रहे होते हैं।