जिस ‘दलित विद्रोह’ से सीएम हटा, उसे अख़बारों के पहने पन्ने पर जगह नहीं !

कहते हैं कि अख़बारों में इतिहास का पहला ड्राफ़्ट छपता है। लेकिन यह सम्मान उन्हीं अख़बारों को मिलता है जिनके संपादकों में इतिहास की करवटों और धड़कनों को समय पर दर्ज करने की सलाहियत हो। इस लिहाज से हिंदी के अख़बारों की भूमिका इतिहास विरोधी कही जाए तो आश्चर्य नहीं। इन दिनों गुजरात में जारी दलित आंदोलन,वर्णव्यवस्था पर एक बेहद गहरी चोट के साथ सामने आया है। मरी गायों का चमड़ा उतारने का पुश्तैनी काम छोड़ना, सिर्फ़ सामाजिक व्यवस्था को उलटना नहीं है, यह भारत को सच्चे अर्थों में आधुनिक बनाने की पृष्ठभूमि भी रच रहा है। एक ऐसा भारत जिसमें ‘गंदे’ समझे जाने वाले सभी तरह के काम मशीनों से होंगे और किसी एक जाति के साथ नत्थी नहीं होंगे। इस आंदोलन के राजनीतिक ओज का असर यह है कि जो पार्टी विपक्ष के दबाव में अपने ‘नेताओं का इस्तीफ़ा न लेने’ पर ग़ुमान करती थी, उसे गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल का इस्तीफ़ा लेना पड़ा।

यह संयोग नहीं कि हिंदी के प्रमुख अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में राष्ट्रीय महत्व वाले इस आंदोलन के प्रति बेगानगी है। कभी-कभार की झलकियों की बात छोड़ दें तो संपादकों ( क्या यह संयोग है कि सभी निरपवाद रूप से सवर्ण हैं) ने इतिहास की इस करवट को दर्ज न करने की ज़िद ही दिखाई। हद तो यह है कि उना में कथित गोरक्षकों उर्फ़ गोआतंकियों द्वारा दलितों की बेरहमी से हुई पिटाई के ख़िलाफ़ 31 जुलाई को अहमदाबाद में उमड़े लाखों दलितों की ख़बर 1 अगस्त को दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान और दैनिक भास्कर के पहले पन्ने में कहीं नहीं है। हाँ, आम आदमी पार्टी के विधायक शरद चौहान की गिरफ़्तारी की ख़बर चारों अख़बारों के पहले पन्ने पर तस्वीर समेत छापी गई है। यह प्रसार की दृष्टि से हिंदी के सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले अख़बारों की सूची में ऊपर के चार अख़बार हैं। ज़ाहिर है, वे अपने विमर्श से हिंदी पट्टी का मानस रचने और उसे प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में गुजरात के आंदोलन की उपेक्षा किसी अपराध से कम नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर इन अख़बारों की तस्वीरें चस्पा की हैं–

  

दिलीप लिखते हैं—​

ये भारत के चार सबसे बड़े अखबार हैं. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और अमर उजाला. इनके लिए पहले पन्ने की बड़ी खबर गुजरात का दलित विद्रोह नहीं है.

तो पहले पन्ने की देश की बड़ी खबरें क्या है?

1. दूल्हे ने 200 फुट पर लटककर शादी की
2. नवदंपति के कमरे में घुसा तेंदुआ
3. आमिर खान पर पर्रिकर के बयान से बवाल
4. पीएम ने साइबर अपराध पर चेताया

पढ़ते रहिए. वे आपको मूर्ख समझते हैं. अगर आप सूचनाओं के लिए सिर्फ अखबारों और चैनलों पर निर्भर हैं, तो फिर आपका कुछ नहीं हो सकता.

‘संदेश’ गुजराती का सबसे बड़ा अखबार है. इंडियन रीडरशिप सर्वे के आखिरी राउंड के हिसाब से 49.64 लाख इसे पढ़ते हैं.

यह इस अखबार का आज यानी 1 अगस्त का अहमदाबाद का पहला पन्ना है. इसकी पहली हेडलाइन है मुबंई के भिवंडी में गिरा मकान और दूसरी हेडलाइन है बुलंदशहर बलात्कार.

अहमदाबाद का दलित महासम्मेलन यहां गायब है. जबकि पूरे राज्य में इससे बड़ी कोई खबर नहीं थी.

सोशल मीडिया न होता तो ब्राह्मणवादी मीडिया गुजरात के आंदोलन को खा चुका होता.

शुक्र है कि आप सब हैं! 🙂

ज़ाहिर है, दिलीप मंडल ने हिंदी पत्रकारिता में फैली एक बड़ी बीमारी पर उँगली रखी है। कुछ लोगों का तर्क है कि गुजरात की ख़बर अगर दिल्ली में पहले पन्ने पर नहीं है तो स्वाभाविक है। उन्हें इंडियन एक्सप्रेस ज़रूर देखना चाहिए। संपादक राजकमल झा के नेतृत्व में निकलने वाले इस अंग्रेज़ी अख़बार ने इसे पहले पन्ने की पहली ख़बर बनाया है और बड़ी सी तस्वीर भी छापी है। राजकमल झा ने कोई महान काम नहीं किया है, बस इतिहास का पहला ड्राफ़्ट लिखने की अपनी बुनियादी ज़िम्मेदारी पूरी की है। अफ़सोस कि हिंदी के ज़्यादातर संपादक इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते और उन्हें इसका कोई अफ़सोस भी नहीं है।

.पंकज श्रीवास्तव

 

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