उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों को लगभग रद्द कर देने पर राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि संविधान से ऊपर कोई नहीं है। अगर कोरोना के बहाने कोई लोकतंत्र को कमज़ोर करना चाहता है, तो जनता उसे देख लेगी।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस, शुक्रवार की जगह टल कर जब शनिवार को हुई तो राहुल गांधी काफी ऊर्जा से भरे दिखे। समय समाप्त होने के बाद भी पत्रकारों के सवाल लिए और लगातार न्याय योजना को किसी मंत्र की तरह दोहराते रहे। इस प्रेस ब्रीफिंग में जो बात राहुल गांधी ने बार-बार कही, वो वही बात है, जिसकी इशारों में लगातार चर्चा की जा रही है – राज्य सरकारों की केंद्र द्वारा पर्याप्त मदद न करना। केंद्र सरकार द्वारा कोरोना से लड़ने से जुड़े सारे अधिकार – अपने अधीन रखने पर राहुल गांधी ने लगभग हर सवाल के जवाब में कुछ न कुछ कहा। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘विकेंद्रीकरण कर के, इस लड़ाई को ज़मीनी स्तर पर ले जाने की जगह अगर हम इस लड़ाई को पीएमओ में रखेंगे तो इसको हार जाएंगे। पीएम को सीएम पर और सीएम को ज़िलाधिकारी पर भरोसा रखना होगा। लेकिन अगर ये लड़ाई पीएमओ में ही रही, तो ये घातक साबित होगा।’
इसके अलावा जो अहम बात राहुल गांधी ने कही, वो ये थी कि दरअसल कोरोना का जनता में अधिक भय हो जाना, कोई बेहतर स्थिति नहीं है। सरकार को लोगों के मन से ये डर निकालना होगा। उन्होंने केंद्र सरकार से राज्य सरकारों और ज़िलों के डीएम के साथ ज़िम्मेदारी बांटने की सलाह दी। साथ ही लोगों के हाथ में नकदी पहुंचाने और छोटे-मंझोले उद्योगों की तत्काल मदद की जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
राहुल गांधी ने इस प्रेस कांफ्रेंस में सवालों के जवाब में क्या अहम बातें कहीं, आप नीचे पढ़ सकते हैं। ये भी कैसे राहुल ने विकेंद्रीकरण को ही कोरोना से लड़ाई का एक मात्र उपाय बताया;
अधिक पारदर्शिता की ज़रूरत
सरकार को ज़्यादा पारदर्शी होना होगा। ये महामारी ख़तरनाक़ है लेकिन सरकार को लॉकडाउन ख़त्म करने से पहले, लोगों के मन से भय निकालना होगा। साथ ही लोगों को तैयार करना होगा। सरकार को लॉकडाउन ख़त्म करना है, तो रणनीति के साथ काम करना होगा – जिसमें राज्य सरकारों के साथ-साथ जनता की सहभागिता भी तय करनी होगी।
सरकार को राज्य सरकारों, ज़िलाधिकारियों को अपने सहभागी के तौर पर देखना होगा, न कि सब कुछ अपने हाथ में रखना होगा।
सरकार पर से भरोसा उठने के सवाल पर
व्यापारियों की सप्लाई चेन टूट गई है, ज़ोन्स के बीच सप्लाई चेन में समस्या आ रही है। प्रवासी श्रमिकों को मदद की ज़रूरत आज है, छोटे और मंझोले उद्योग को मदद की ज़रूरत आज है। आज इनकी मदद नहीं हुई तो बेरोज़गारी की समस्या सुनामी बन जाएगी। कांग्रेस भी इसमें मदद के लिए तैयार है।
राजदीप सरदेसाई को न्याय योजना पर जवाब
सरकार को हमारी न्याय योजना के विचार को अपनाने की ज़रूरत है। वो किसी भी नाम से ये करें। इसकी तत्काल ज़रूरत है और इसलिए इसको आप जो भी नाम दे दें, लेकिन लोगों को तुरंत साढ़े 7 हज़ार करोड़ दें, जो घर-घर तक नकद पहुंचाए। दूसरी बात ये है कि लोगों को आप बेरोज़गार होने नहीं दे सकते। उनको कोई सुरक्षा योजना देनी होगी, जिससे वो इस हालत से लड़ सकें। ये योजना या समर्थन वित्तीय ही हो सकता है। अगर तुरंत कोई योजना न लागू हुई तो कई उद्योग डूब जाएंगे।
घरेलू खपत सबसे अहम
भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा, घरेलू खपत पर आधारित है लेकिन हम लगातार इसको लेकर फैसला करने में देर कर रहे हैं। सरकार को तेज़ी से कदम उठाने होंगे।
पीएम की शैली पर राहुल गांधी
प्रधानमंत्री की अपनी एक शैली है और उसकी भी जगह है, लेकिन काम केवल एक ही आदमी तो नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को विकेंद्रीकरण करना होगा। उदाहरण के लिए ज़ोन्स तय करने का काम राज्य सरकार और डीएम के हवाले करना होगा।
आरोग्य सेतु ऐप पर
हैकर्स ने आरोग्य सेतु की सारी खामियां पब्लिक कर दी हैं। उसका कोड ब्रेक कर दिया है। क्यों नहीं सरकार, सिंगापुर की तरह करती है और आरोग्य सेतु को ओपेन सोर्स कर देती है। पब्लिक डोमेन में ऐप का सोर्स कोड ले आया जाना चाहिए।
राज्यों को केंद्र से मदद नहीं मिल रही
हमने हाल ही में एक मीटिंग की, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा कि अगर इस समस्या को काबू करना है तो विकेंद्रीकरण ही उपाय होगा। उसी मीटिंग में कांग्रेस शासित राज्यों ने ये दिक्कत साझा की, कि केंद्र की ओर से उनको ज़रूरी मदद नहीं मिल रही है।
केवल पीएमओ नहीं लड़ सकता हालात से
विकेंद्रीकरण कर के, इस लड़ाई को ज़मीनी स्तर पर ले जाने की जगह अगर हम इस लड़ाई को पीएमओ में रखेंगे तो इसको हार जाएंगे। पीएम को सीएम पर और सीएम को ज़िलाधिकारी पर भरोसा रखना होगा। लेकिन अगर ये लड़ाई पीएमओ में ही रही, तो ये घातक साबित होगा। अगर पीएम लॉकडाउन हटाना चाहते हैं, तो डर का माहौल ख़त्म करना होगा। कोरोना ख़तरनाक बीमारी है लेकिन महज 1 फीसदी लोगों के लिए। 99 फीसदी हिंदुस्तानियों के लिए ये जानलेवा नहीं है। सरकार की ज़िम्मेदारी है कि लोगों को ये समझाए और तभी लोग अर्थव्यवस्था में भागीदारी निभाएंगे – वरना वे डर से घर से ही नहीं निकलेंगे। मीडिया भी जितना कोरोना को सनसनी बनाने की जगह, सच्चाई लोगों को बताएगी – उतना ही डर का माहौल कम होगा। हम जितना डर के माहौल से निकलेंगे, उतना ही जनजीवन सामान्य होगा। ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है, बिना ये समझे कि हम कौन हैं, किस विचारधारा से हैं – बल्कि ये कि हम सोचें कि हम हिंदुस्तानी हैं और देश की अर्थव्यवस्था को हमको मिलकर पटरी पर लाना है।
लोगों की क्रय शक्ति बनी रहनी चाहिए
अगर डिमांड ठप रहेगी, तो सप्लाई ठप रहेगी। इसलिए ज़रूरी है कि लोगों के हाथ में सीधे पैसा दिया जाए। तभी उनकी क्रय शक्ति बनी रहेगी, बाज़ार में सामान बिकेगा। ऐसा होगा तभी, छोटी और मंझोली इंडस्ट्री में काम होगा-उत्पादन होगा वरना स्थितियां बिगड़ती जाएंगी। सबसे अहम – डर का माहौल ख़त्म करना होगा। कोरोना, स्वस्थ लोगों के लिए घातक बीमारी नहीं है – ये केवल बीमार और बूढ़ों के लिए जानलेवा है। ये माहौल ख़त्म करना होगा कि ये सबके लिए घातक है।
भारत में दो भारत हैं
भारत में दो भारत हैं और इससे इनकार नहीं किया जा सकता..अमीर भारत और गरीब भारत और इस समय – इस परिस्थिति का सबसे बड़ा शिकार गरीब भारत बनने वाला है। ऐसे में सरकार को सोचना होगा कि उसकी मदद कैसे की जाए।
लोगों को ख़ौफ़ से बाहर लाएं
भय का माहौल होना बिल्कुल स्वभाविक है। लोग डरे हुए हैं, ख़ौफ़ में हैं लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि हम जो डरा हुआ है, उसकी उपेक्षा कर दें। हमको उसको भरोसा दिलाना होगा कि डरने की बात नहीं है। इसके लिए अहम है कि सरकार ऐसे कदम उठाए कि लोगों का भय कम हो और साथ ही उनके हाथ में नकद हो कि उनका घर चले।
कोरोना के बहाने लोकतंत्र पर शिकंजा?
इस देश में एक संविधान है और सबको उसी के मुताबिक चलना होगा। अगर किसी को ये लगता है कि वो किसी भी बहाने से लोकतंत्र को कमज़ोर कर लेगा तो जनता उसको जवाब दे देगी।