“टीका नहीं लगवाया क्योंकि सोशल मीडिया पर पढ़ा था कि बाँझ हो जाऊँगी!”

शुचिता झा

भोपालः ‘‘मैं टीका नहीं लगवाना चाहती हूं क्योंकि मैंने सोशल मीडिया में पढ़ा है कि उसे लगवाने पर में बांझ बन जाउंगी,’’ रेखा ने कहा (उनके कहने पर नाम परिवर्तित)

यह 22-वर्षीय महिला भोपाल की रहने वाली है, जो मध्य प्रदेश की राजधानी है, और डरती है कि टीका लगवाने के बाद जो कुप्रभाव होंगा, उससे वह बांझ बन जाएगी; इसके चलते उसे वर मिलने में परेशानी होगी।

ऐसे मिथक और भय की वजह से, कि टीका उनके प्रजनन चक्र को बिगाड़ देगा, राज्य में महिलाओं  के बीच टीकाकरण को लेकर हिचकिचाहट है। वे सोचती हैं कि उनकी महावारी के दौरान रक्त स्राव बढ़ जाएगा और वे लम्बे समय तक के लिए बीमार पड़ जाएंगी। राज्य के कई जिलों में महिलाओं के बीच टीका को लेकर हिचकिचाहट का प्रमुख कारण बीमारी और मौत का डर भी है।

‘‘मुझे बताया गया था कि टीका लेने पर मैं मर जाउंगी, इसलिए मैंने नहीं लगवाया,’’ बागमुगालिया, भोपाल की 32-वर्षीय रजनी रमन ने कहा। वह घरेलू कामगारिन है और मालिक द्वारा प्रोत्साहित किये जाने पर भी टीका लगवाने से डरती है।

‘‘जिस महिला के लिए मैं काम करती हूं, वह टीका लगवाने के लिए मेरे पीछे पड़ी हुई हैं, पर मैं लगवाना नहीं चाहती। अगर मैं मर गई तो मेरे बच्चों को कौन संभालेगा?’’ वह पूछती है।

राज्य में जुलाई 19 तक लगभग 2,55,50,643 लोग टीका लगवा चुके थे। इनमें से 55 प्रतिशत पुरुष थे। टीका लिए हुए पुरुषों और महिलाओं में 26,69,155 का अंतर था। यह फासला इसलिए रहा कि मिथकों का प्रचार जोरों पर है और टीकाकरण केंद्रों तक में सही ढंग से समझाकर बातचीत यानि काउन्सेलिंग नहीं हो रही। देश भर में इस समय तक 40,65,86,951 ने टीकाकरण करवा लिया था, जिनमें 53.4 प्रतिशत पुरुष थे और 46.5 महिलाएं थीं, जो कोविन पोर्टल के अनुसार 2.8 करोड़ का फर्क दर्शता है।

ऐसे मिथक उन लोगों में अधिक प्रचलित हैं जो सोशल मीडिया पर फार्वर्ड किये गए संदेशों से सूचना प्राप्त करतें हैं या कही-सुनी बातों पर भरोसा करते हैं।

प्रार्थना मिश्रा, जो राजधानी में संगिनी जेंडर रिसोर्स सेन्टर की निर्देशक हैं, कहती हैं,’’जबसे भारत में टीकाकरण अभियाान शुरू हुआ है कई तरह के मिथक और षडयंत्र की बातें या ‘काॅन्स्पिरेसी थ्योरीज़’ लोगों के बीच फैले हैं।

समस्या की जड़ को इंगित करते हुए प्रार्थना मिश्रा कहती हैं कि जबकि झूठी खबरें बहुत तेज़ी से लोगों तक पहुंचती है, मिथकों को तोड़ना और काउंसेलिंग करने का काम बहुत पीछे है, जिससे टीका लेने में हिचकिचाहट बढ़ती है और लोगों के बीच इंटरनेट व मेसेज भेजने वाले ऐप्स के जरिये भय का वातावरण बनाया जाता है।

‘‘महिलाओं के लिए किसी भी प्रकार की सलाह-मश्विरा और काउंसेलिंग लगभग नहीं के बराबर है। टीकाकरण केंद्रों में भी केवल एक नर्स और एक-दो सहायक होते हैं; जाहिर है इतने अधिक लोगों के वहां आने की वजह से उनके पास काउंसेलिंग करने के लिये समय नहीं होता’’ उन्होंने काविड रिस्पांस वाच को बताया।

डा. रश्मि द्विवेदी, जो एल एन मेडिकल काॅलेज में पीडीआट्रिक विभाग की प्रोफेसर ऐण्ड हेड हैं, बताती हैं कि यह ‘‘पति पर निर्भरता’’की वजह से भी है कि महिलाएं टीकाकरण नहीं करवाती हैं। ‘‘केवल ग्रामीण ही नहीं, शहरी महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा अपने पति या घर के अन्य पुरुष सदस्य पर निर्भर रहती हैं कि वह उन्हें कहीं भी ले जाए; ठीक यही टीका के साथ भी हो रहा है। यदि पुरुषों, खासकर पतियों के पास समय नहीं होता, महिलाएं टीका लगवाना भी चाहें तो पीछे छूट जाती हैं। यह टालने की प्रवृत्ति भी महिलाओं के बीच कम टीकाकरण के लिए प्रमुख कारण बनती है।’’

उन्होंने आगे कहा कि फेडरेशन आफ आब्सटेअ्रिक ऐण्ड गायनेकाॅलाॅजिकल सोसाइटीज़ ऑफ इंडिया ……ने कई दिशा निर्देश जारी किये हैं और महिलाओं के बीच कई मिथकों को तोड़ा है। महिलाएं माहवारी के दौरान भी टीका लगवा सकती हैं। या जब उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप और पीसीओडी जैसे रोग हों तब भी। ऐसोसिएशन ने घोषणा की है कि गर्भवति महिलाएं पहले टाइमस्टर के बाद टीका ले सकती हैं, और यह सलाह सावधानी-स्वरूप है।टीका न मिलना और क्षेत्रों में टीकाकरण केंद्रों की जानकारी का अीभाव महिलाओं की मुसीबतों को बढ़ाता है।

‘‘मैं टीका लेने से बहुत डरी हुई थी क्योंकि मैंने फोन में पढ़ा था कि कोविड-19 के होने से भी अधिक लोग टीका के कारण मर रहे थे। अब जब मैंने देख लिए कि बहुत सारी महिलाओं को टीकाकरण के बाद हल्के बुखार के अलावा कोई समस्या नहीं हुई तो कई टीकाकरण केंद्र पहला डोज़ नहीं दे रहे हैं। अब मुझे पहला डोज़ शुरू करने के लिए इन्तेजार करना पड़ेगा,’’ भोपाल की 42-वर्षीय आशा मालवीय ने कहा।

कुछ महिला कामगारिनों ने ऐसी घटनाओं के बारे में बताया जहां वे किसी वाॅक-इन केंद्र में दोपर को टीका लगवाने गईं पर वहां टीके समाप्त हो चुके थे।

सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकार ऐक्टिविस्ट मंजरी चंदे छिन्दवाड़े के परर्थ एनजीओ में काम करती हैं। उन्होंने अपने जिले में बहुत सक्रिय रहते हुए मिथकों को तोड़ा है। वह कहती हैं कि दिहाड़ी मजदूर और घरेलू कामगारिनें डरती हैं कि यदि वे बीमार पड़ गईं, उनको उस दिन की मजदूरी नहीं मिलेगी।

आगे वह कहती हैं,‘‘वे बहुत गरीब हैं और कुछ औरतें तो अपने परिवार की कमाने वाली इकलौती सदस्य हैं; वे बीमार होकर काम छोड़ ही नहीं सकतीं, इसलिए वे टीका लगवाने में हिचकिचाती हैं।’’

डा. नीलकमल कपूर, जो भोपाल के एम्स में पैथाॅलाॅजी विभाग की प्रोफेसर व हेड हैं, कहती हैं कि जहां महिलाएं अब धीरे-धीरे टीकाकरण के लिए आगे आ रही हैं, दकियानूस संस्कृति, खासकर ग्रामीण महिलाओं में, सही सूचना के प्रसारण को रोकती है।

कोविड रिस्पाॅन्स वाॅच से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘‘गांव की महिलाएं पूरुष डाॅक्टरों से अपनी शंकाओं के बारे में बात करने में हिचकिचाती हैं, और वे अपने परिवारों के मर्दों -अपने पतियों, भाइयों और पिताओं के माध्यम से बात करती हैं। कई बार तो जो सूचनाएं उन्हें मिलती हैं वे तोडी-मरोड़ी हुई होती हैं और कई बार तो उन तक पहुचती ही नहीं थी।’’

‘‘गांव की औरतों को मर्दों के साथ लम्बी कतारों में खड़े रहने में हिचकिचाहट होना भी एक मुद्दा था,’’ काॅन्सेप्ट सोसाइटी के प्रबंधक और सचिव हेमल कामत ने कहा। काॅन्सेप्ट सोसाइटी एक ऐसा संगठन है जो समग्र या होलिस्टिक विकास और स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दों पर, खासकर इंदौर में, महिलाओं पर केंद्रित करते हुए काम करता है।

चेतना बढ़ाते हुए और सही सलाह व काउंसेलिंग के माध्यम से मिथकों को तोड़ते हुए राज्य में बहुत से सामाजिक कार्यकर्ता और एनजीओ फील्ड विज़िट पर जाकर महिलाओं को अपने डर का मुकाबला करके वैक्सीन लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

‘‘कोरकू आदिवासी समूह अपनी ज़िंदगी के लिए बहुत सशंकित रहते हैं और तय कर चुके हैं कि वे टीका नहीं लेंगे। लेकिन हमने स्थानीय डाॅक्टरों, स्त्री रोग विशेषज्ञों और संगठन के शिक्षित सदस्यों की मदद से ऑनलाइन काउन्सेलिंग सेशन चलाए और उनके सारे प्रश्नों के उत्तर दिये। उन्हे सिर्फ अपने प्रश्नों के जवाब चाहिये थे।’’ खण्डवा की स्पन्दन समाज सेवा समिति की सचिव सीमा प्रकाश ने कहा।

प्रकाश का संगठन और अन्य संगठनों ने खण्डवा में मिथकों को तोड़ते हुए टीका लेने वाले पुरुषों व महिलाओं के बीच फासले को कम किया है। अब टीका ली हुई महिलाओं व पुरुषों की संख्या में फर्क सिर्फ 27,157 रह गया है, जो राज्य में सबसे कम है।

ऐसे ही प्रयास महिलाओं के लिए ऑनलाइन सेशनों व प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में चल रहे हैं, ताकि उन्हें टीका के लाभ के विषय में शिक्षित किया जा सके।

‘‘हमारे सदस्य टीकाकरण केंद्र तलाशने में लोगों की मदद करते हैं, उनकी शंकाएं दूर करते हैं और उन्हें बताते हैं कि टीका के क्या सकारात्मक पहलू हैं और कैसे वह कोविड-19 द्वारा संक्रमित होने से बचाते हैं और उससे मर जाने की संभावना को भी कम करते हैं, मिश्रा ने कहा।

अन्त में वह बोलीं, ‘‘हम जहां शुरू किये थे वहां से काफी दूर आ चुके हैं पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।’

लेखक शुचिता झा भोपाल में रहने वाली स्वतंत्र पत्रकार हैं। 


अनुवाद- कुमुदिनी पति

काउंटर करंट.ऑर्ग से साभार।
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