मोदी के ‘गांव में भूख’ की रिपोर्ट लिखने वाली पत्रकार पर FIR

तस्वीर: सुप्रिया शर्मा Scroll.in

सरकार पर सवाल उठाने पर परेशान किये जाने वाले पत्रकारों की कड़ी में वेबसाइट स्क्राल की पत्रकार सुप्रिया शर्मा का नाम भी जुड़ गया है। उनके ख़िलाफ़ वाराणसी के रामनगर थाने में एफआईआर दर्ज करायी गयी है। हैरानी की बात ये है कि ये एफआईआर डोमरी गाँव की एक दलित महिला की ओर से लिखायी गयी है जिसकी तक़लीफ़ को वेबसाइट ने उजागर किया था। ग़ौरतलब है कि यह गाँव प्रधानमंत्री मोदी ने बतौर सांसद गोद लिया है।

शिकायतकर्ता माला देवी ने कहा है कि सुप्रिया शर्मा ने उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया गया। रिपोर्ट में उन्हें लेकर झूठे दावे किये गये। पुलिस ने सुप्रिया शर्मा और स्क्रॉल.इन के एडिटर इन चीफ के ख़िलाफ़ धारा 269, 560, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण अधिनियम, 1989 (संशोधन 2015) के तहत एफआईआर दर्ज की गयी है।

मामला क्या था ?

दरअसल स्क्रॉल.इन न्यूज़ वेबसाइट पर  8 जून 2020 को सुप्रिया शर्मा की एक स्टोरी पब्लिश की गयी थी। जिसमें बताया गया था कि प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा गोद लिए गए गांव में लोग भूख से परेशान हैं। उनके पास राशन की व्यवस्था नहीं है। रिपोर्ट में माला देवी के एक इंटरव्यू का ज़िक्र करते हुए बताया गया था कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है जिसकी वजह से उन्हें राशन नहीं मिल पा रहा है। वो लोगों के घरों में काम कर करती हैं। कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में उन्हें भोजन भी नहीं मिल पा रहा है।

इस स्टोरी के सामने आने के बाद 13 जून 2020 को माला देवी की शिकायत को आधार बना कर रामनगर थाने में सुप्रिया शर्मा और स्क्रॉल.इन वेबसाइट के एडिटर इन चीफ को आरोपी बनाते हुए एफआईआर दर्ज की गयी है। जिसमें माला देवी ने बताया है कि वो घरेलू कामगार नहीं हैं बल्कि वाराणसी में ठेके पर सफाईकर्मी के तौर पर काम करती हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्हें राशन को लेकर किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं हुई है। स्क्रॉल द्वारा पब्लिश की गयी स्टोरी में लिखी बातें गलत हैं। साथ ही माला देवी के द्वारा दर्ज करायी गयी एफआईआर में बताया गया है कि मेरे और मेरे बच्चों के भूखे रहने की बात कहकर मेरी ग़रीबी और मेरी जाति का मजाक उड़ाया गया है।

अपनी रिपोर्ट पर कायम स्क्रॉल.इन

एफआईआर दर्ज होने के बाद स्क्रॉल वेबसाइट ने अपना बयान जारी करते हुए कहा कि 5 जून 2020 को वाराणसी के डोमरी गांव में माला देवी का इंटरव्यू किया गया था। रिपोर्ट में माला देवी का बयान सटीक रूप में प्रस्तुत किया गया है। पब्लिश की गयी रिपोर्ट का शीर्षक ‘प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गए गांव में लॉकडाउन के दौरान भूखे रह रहे हैं लोग’ था। स्क्रॉल अपनी रिपोर्ट पर कायम है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी के मतदाता क्षेत्र से किया गया है। यह एफआईआर कोविड 19 के समय पर वंचितों की स्थितियों को लेकर की जा रही  स्वतंत्र पत्रकारिता को भयभीत करने और चुप कराने के मकसद से की गयी है।

 

बता दें कि इसके पहले मिर्ज़ापुर, फतेहपुर, बिहार, हिमाचल प्रदेश में सरकार की व्यवस्थाओं और सुविधाओं पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज की गयी हैं। अभी हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के पर भी राजद्रोह जैसा आरोप लगाते हुए एफआईआर की गयी थी। सवाल ये भी है कि कहीं मालादेवी को एफआईआर कराने के लिए दबाव तो नहीं डाला गया क्योंकि इससे पीएम मोदी की प्रतिष्ठा जुड़ी है। वैसे अगर मोदी के गोद लिये गांव में लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है या लोग भूख से तड़प रहे हैं तो एफआईआर किसके खिलाफ होनी चाहिए- खबर लिखने वाले पत्रकार के या फिर सरकार के।


 

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