कोरोना: ब्राज़ील के आईने में भारत की भावी तस्वीर, जो काफ़ी डरावनी है !

सत्यम वर्मा

दुनिया भर में थू-थू के बावजूद मोदी सरकार द्वारा बड़े प्यार से पिछले गणतंत्र दिवस के मौक़े पर मुख्य अतिथि बनाकर बुलाये गये ब्राज़ील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो ने अपने दोस्त नरेन्द्र मोदी को कोरोना संकट से निकलने की राह दिखा दी है। इस समय कोरोना के सबसे अधिक मामलों के हिसाब से अमेरिका के बाद ब्राज़ील दूसरे नम्बर पर है। सबसे अधिक मौतों के मामले में वह स्पेन को पीछे छोड़ चुका है और ब्रिटेन को पछाड़ कर इस मामले में भी दूसरी पायदान पर 2-3 दिन में पहुँच जायेगा।

अपने लोगों के प्रति संवेदनशील किसी भी सरकार के लिए यह स्थिति चिंता का सबब होती और वह बीमारी से लड़ने की कोशिशों को तेज़ करने पर ध्यान देती। मगर बोल्सोनारो की सरकार ने पहला काम यह किया कि कोविड-19 मामलों के कुल आँकड़े जारी करना बन्द कर दिया और इससे सम्बन्धित सरकारी वेबसाइट से सारा डेटा साफ़ कर दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि यह काम सीधे धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रपति बोल्सोनारो के आदेश पर किया गया है।

सारे फासिस्ट और तानाशाह इतिहास में महान बनने की मूर्खतापूर्ण लालसा में आपस में चाहे जितनी होड़ करें, पर जनता को धोखा देने और कुचलने के हथकण्डे एक-दूसरे से सीखते रहते हैं। मोदी जी बेरोज़गारी और महँगाई जैसी समस्याओं से लड़ने का मंत्र दुनिया को दे चुके हैं : “मूँदहु आँख कतहुँ कछु नाहीं”। बेरोज़गारी, महँगाई, अपराध जो भी बढ़ रहा हो, सबके आँकड़े जारी करना बन्द कर दो। इसी मंतर को बोल्सोनारो ने अपने यहाँ कोरोना महामारी से लड़ने का जंतर बना लिया है। मोदी सरकार अभी तक हेरा-फेरी और लीपा-पोती करके इसी मंतर को यहाँ लागू करती रही है। लेकिन आने वाले दिनों में अपने पगलेट सखा के इस मास्टरस्ट्रोक को भारत में भी पूरी तरह लागू करने के अलावा मोदी जी के पास कोई चारा नहीं बचेगा।

जॉन हॉपकिन्स युनिवर्सिटी की वेबसाइट के मुताबिक दो दिन पहले तक ब्राज़ील में कोरोना के 6,72,846 मामले थे और 35,930 मौतों के साथ वह इटली को पीछे छोड़ चुका था। मोदी जी की अगुवाई में भारत तेज़ी से उसी दिशा में अग्रसर है—और विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगले दो महीने में यहाँ ‘पीक’ आयेगा।

तीन दिन पहले ब्राज़ील की सरकार ने अपने दैनिक बुलेटिनों में कोविड-19 की पुष्टि हो चुके मामलों और मौतों की कुल संख्या जारी करना बंद कर दिया और सिर्फ रोज़ाना के आँकड़े देना शुरू किया। बोल्सोनारो ने ट्वीट किया कि डेटा को इसलिए “अनुकूल बनाया गया” क्योंकि वह “देश के वर्तमान क्षण को नहीं दर्शाता” है। कल को आप अपने यहाँ भी ऐसे ही कुछ वचन सुन सकते हैं कि देश आत्मनिर्भरता की जिस उड़ान पर है उसके साथ ऐसे आँकड़े मेल नहीं खाते!

जब ब्राज़ील में महामारी फैलने की शुरुआत हुई तबसे बोल्सोनारो उसे “मामूली फ़्लू” कहकर खारिज करता रहा है और ब्राज़ील में मौतों की बढ़ती संख्‍या पर यह टिप्पणी कर चुका है कि सबको एक-न-ए‍क दिन मरना ही है। ऐसी दार्शनिक बातें करने में तो हम पहले से विश्वगुरु हैं।

ब्राज़ील में इस समय कोई स्वास्थ्य मंत्री नहीं है। महामारी की शुरुआत से अब तक दो स्वास्थ्य मंत्री इस्‍तीफ़ा दे चुके हैं। कार्यकारी स्वास्थ्य मंत्री एदुआर्दो पौज़ेल्लो सेना का जनरल है जिसे स्वास्थ्य मामलों का कोई अनुभव नहीं है और उसने मंत्रालय को सेना के अफ़सरों से भर दिया है। इधर हमारे वाले स्वास्थ्य मंत्री होकर भी नहीं हैं। महामारी फैलने के शुरुआती दिनों में वह मटर छीलते पाये गये थे और उसके बाद से बीच-बीच में आकर कोरोना की रफ़्तार कम होने या सामुदायिक फैलाव नहीं होने के झूठे दावे पेश करते रहते हैं।

लेकिन ब्राज़ील और भारत में कुछ फ़र्क हैं। भारत में मोदी के पीछे दुनिया का सबसे संगठित फ़ासिस्‍ट संगठन आरएसएस खड़ा है और न्यायपालिका, पुलिस, नौकरशाही से लेकर मीडिया तक जिस तरह से इस फ़ासिस्ट हुकूमत के पालतू कुत्ते बन चुके हैं, वैसा न तो ब्राज़ील में है, और न ही दुनिया के किसी दूसरे देश में। लोगों के दिमाग़ों में जिस क़दर नफ़रत का ज़हर और अतार्किकता व अज्ञान का अँधेरा हमारे यहाँ भरा गया है वैसा भी और कहीं नहीं है।

इसीलिए ब्राज़ील में बोल्सोनारो के इन क़दमों का तीखा विरोध भी हो रहा है। ब्राज़ील के राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों की राष्ट्रीय परिषद के अध्यक्ष अल्बेर्तो बेल्त्रामे ने कहा कि “कोविड-19 से मरने वाले लोगों को अदृश्य बना देने का यह निरंकुश, असंवेदनशील, अमानवीय और अनैतिक प्रयास सफल नहीं होगा। हम और ब्राज़ील का समाज न तो उन्हें भूलेंगे और न ही राष्ट्र पर आ पड़ी इस त्रासदी को भूलेंगे।” डॉक्टरों, मेडिकल एसोसिएशनों और राज्य सरकारों ने इस कदम की कड़ी भर्त्सना की है और संघीय न्यायिक अधिकारियों ने अंतरिम स्वास्थ्य मंत्री को 72 घंटे के भीतर जवाब देने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कहा कि “आँकड़ों की हेराफेरी सर्वसत्तावादी सरकारों का हथकंडा होता है।” संसद के स्पीकर ने कहा कि “यह चाल आने वाले दिनों में होने वाले जनसंहार की ज़िम्मेदारी से बचा नहीं पायेगी।”

एक राज्य के गवर्नर ने क‍हा कि आप विज्ञान, पारदर्शिता और कार्रवाई के बिना महामारी से नहीं लड़ सकते। हेराफेरी, तथ्यों को छिपाना और लोगों के प्रति असम्मान तानाशाह सत्ताओं की निशानी होती है।” सारे देश के डॉक्टरों ने एक स्‍वर से इसके विरोध में आवाज़ उठाते हुए कहा है कि सही जानकारी और डेटा के बिना महामारी से लड़ा नहीं जा सकता। अगर सही डेटा नहीं होगा, तो संसाधनों का ज़रूरत के अनुसार आवंटन कैसे किया जाएगा और रोग से लड़ने की सही योजना कैसे बनायी जा सकेगी। ख़ासकर ऐसे वक़्त में, जब महामारी का फैलाव अब बड़े शहरों से छोटे कस्बों और देहात की ओर होना शुरू हो गया है!

अब ज़रा अपने देश के हालात पर ग़ौर कीजिए और डरिए। जो लोग सच्चाइयों को जान-समझ रहे हैं उनसे ज़्यादा मैं उन लोगों से मुख़ातिब हूँ जो अब भी तमाम तरह के भ्रमों में, या किसी चमत्कार की उम्‍मीद में जी रहे हैं। इस नाकारा और हृदयहीन सत्ता के पास सच्चाई को छिपाने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है और झूठ की काली चादर फैलाने का काम ज़ोर-शोर से जारी है। इसलिए डरिए, क्योंकि कभी-कभी भय भी शक्ति देता है।

 

लेखक चर्चित सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।



 

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