वर्कर्स यूनिटी / रूद्रपुर
उत्तराखंड के रुद्रपुर में स्थित इंटरार्क बिल्डिंग्स कंपनी के संघर्ष कर रहे 80 मज़दूरों और उनके परिजनों को पुलिस ने रविवार को गिरफ्तार कर लिया।
वेतन समझौते और अन्य मांगों के लिए संघर्ष कर रहे मज़दूर चार महीने से न्याय की मांग कर रहे हैं।
पुलिस ने 55 लोगों को छोड़ दिया है लेकिन अगुवा रहे लोगों पर पुलिस ने विभिन्न मामले दर्ज किए हैं।
कैलाश भट्ट, गणेश मेहरा, मिंडा कंपनी के लक्ष्मी दत्त, उमेश चंद्र जोशी, गणेश दत्त, दीपक सिंह अधिकारी, भगवती कंपनी के राजकुमार, महिला संघ की उषा, पूर्णिमा सिंह, निहारिका सिंह और इंटरार्क मज़दूर संगठन के प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है।
प्रबंधन ने मारपीट का आरोप लगा दो दर्जन मज़दूरों को निकाला
इन मज़दूरों पर प्रबंधन से मारपीट करने का आरोप लगाया गया।
जबकि मज़दूर इसे प्रबंधन की ओर से षणयंत्र करार दे रहे हैं ताकि मनमाफिक समझौते दबाव डाला जा सके।
इससे पहले मज़दूरों के वेतन में कटौती की जाती रही, प्रबंधन ने कुछ मज़दूरों को निलंबित भी किया।
जिस पर उप श्रमायुक्त ने कंपनी को नोटिस जारी कर वेतन कटौती और निलंबन की कार्यवाही को गैरकानूनी ठहरा चुका है।
23 नवंबर से ही मज़दूर अपने परिवार के साथ सिडकुल पंतनगर और किच्छा प्लांट के गेट पर धरने पर बैठ गए।
इंटरार्क कर्मचारियों के समर्थन में रुद्रपुर की अन्य ट्रेड यूनियनों और नेताओं ने भी अपना समर्थन दिया।
इसे लेकर दो दिसम्बर को मज़दूर पंचायत का आयोजन भी किया गया था।
खुले आसमान के नीचे रात में बैठे रहे लोग
ठंड की रात में खुले आसमान में बैठने से कई बच्चे और महिलाएं बीमार हुईं और उन्हें अस्तपाल में भर्ती कराना पड़ा।
लेकिन इससे भी इनका हौसला नहीं टूटा और 28 नवंबर को कुछ मज़दूर और महिलाएं आमरण अनशन पर बैठ गए।
आमरण अनशन के शुरू होने के बाद पुलिस सक्रिय हुई और एक दिसम्बर को धरने से उठाने की कोशिश हुई।
रात के अंधेरे में महिलाओं से मारपीट का आरोप
महिलाओं ने दूसरे दिन कैमरे के सामने अपनी चोट दिखाई और कथित पुलिसिया बर्बरता के ख़िलाफ़ आक्रोष ज़ाहिर किया।
इस बीच दो दिसम्बर को पुलिस ने क़रीब 80 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं।
ताज़ा ख़बर के मुताबिक, पुलिस ने किच्छा इंटरार्क के 55 मज़दूरों और परिजनों को रिहा कर दिया।
जबकि क़रीब आधा दर्जन प्रतिनिधियों को जेल भेजने की तैयारी चल रही है।
यूनियन का आरोप है कि पुलिस व प्रशासन ने साजिश के तहत बाद में धारा 353 लगा दी है ताकि इन्हें जेल जाना पड़े।
आरोप ये भी है कि मज़दूरों पर तीन अलग अलग धाराओं में केस दर्ज किया है ताकि दो की जगह छह जमानतियों का इंतज़ाम करना पड़े और मज़दूर परेशान हों।
यूनियन नेताओं का कहना है कि लेबर कमिश्नर ऑफ़िस भी जब मान चुका है कि प्रबंधन मनमानी कर रहा है तो फिर प्रशासन और पुलिस की इस तरह की कार्रवाई का क्या औचित्य है।
workersunity.com से साभार प्रकाशित