कश्मीर में सरकार ने जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार आयोग और जम्मू-कश्मीर सूचना आयोग समेत छह आयोगों को बंद कर दिया है. जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बुधवार को राज्य में कुल सात आयोग को खत्म करने का आदेश दिया है, इसमें मानवाधिकार आयोग और सूचना आयोग शामिल हैं. इनमें विकलांग अधिकार आयोग और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आरोप तय करने वाला आयोग शामिल है.
Opinion | "In addition to the five key statutory commissions, the J&K Law Commission, which had been created by way of an executive order earlier this year, will also lose its existence," writes @ahmedalifayyaz. https://t.co/OntbTtdE0M
— The Quint (@TheQuint) October 18, 2019
कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत 31 अक्टूबर को ही जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित राज्यों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित होगा.
राज्य प्रशासन ने जिन 7 आयोगों ख़त्म करने का आदेश जारी किया है वे हैं, जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार आयोग, राज्य सूचना आयोग,राज्य उपभोक्ता निवारण आयोग,राज्य विद्युत नियामक आयोग,महिला एवं बाल विकास आयोग,दिव्यांग जनों के लिए बना आयोग,और राज्य पारदर्शिता आयोग.
3 rights panels among 7 J&K state commissions wound up ahead of bifurcation
ThePrint's special correspondent @AzaanJavaid reportshttps://t.co/qZLsvUhCPE
— ThePrintIndia (@ThePrintIndia) October 23, 2019
जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटा दिया था, जिसके बाद से वहां पर कई तरह की पाबंदियां लागू थीं. घाटी में स्कूल, कॉलेज, मोबाइल फोन, इंटरनेट, पर्यटकों की आवाजाही लंबे समय तक प्रभावित रहे.
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि इंटेलिजेंस एजेंसी सच नहीं बताती हैं, ना यहां और ना दिल्ली को.
J&K Guv:After coming here,I didn't take input from intelligence units,they don't tell truth to Delhi or us.Spoke to 150-200 students&asked which students stand up for national anthem,they said whole problem is of people b/w 13-30yrs whose dreams hv been broken,who've been incited pic.twitter.com/SMdXT0GV6P
— ANI (@ANI) October 23, 2019
एसएसी को 2002 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन द्वारा बनाया गया था ताकि राजनेताओं की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय की जा सके और उनके कार्यों पर नज़र रखी जा सके. इस आयोग के दायरे में मुख्यमंत्री, मंत्री और विधान सभा के सदस्यों और विधान परिषद के सदस्यों की जवाबदेही तय थी.