कश्मीर: पत्रकारों के लिए नर्क से बदतर है घाटी के हालात

‘द टेलीग्राफ’ की एक ख़बर के मुताबिक एक राष्ट्रीय दैनिक के लिए काम करने वाली पत्रकार के साथ रविवार, 8 सितंबर  को दुर्व्यवहार किया गया और उसे श्रीनगर शहर के बीचो-बीच पुलिसकर्मियों द्वारा गाली-गलौज और धमकी दी गई. इस घटना ने घाटी के पत्रकारों में गुस्सा है  साथ ही इस घटना ने उनकी बेबसी को और गहरा दिया है।

द ट्रिब्यून चंडीगढ़ संवाददाता रिफ़त मोहिदीन ने बताया कि लगभग आधा दर्जन पुलिसकर्मियों ने उसकी कार पर “कई मिनटों” तक डंडा बरसाया था, वह कार के अंदर बैठी इस नरकीय यातना पर चीख चिल्ला रही थी- वो सब उसे बख्श दें।

रिफ़त ने टेलीग्राफ को बताया कि- मैंने इस की गालियां पहले कभी नहीं सुनी थी जो कि वो मुझे दे रहे थे। पहले उन्होंने मुझ पर चोट की उन्होंने अपने डंडों से मेरी कार को पीटा, हालांकि खिड़कियां बख्श दी गईं। मैंने रोना शुरू कर दिया, लेकिन कोई भी मेरे बचाव में नहीं आया।

मैं अभी भी सदमे में हूं। मेरे लिए अपने परिवार को समझाना पहले ही बहुत मुश्किल था कि इन हालात में भी एक पत्रकार के रूप में मैं सुरक्षित हूं। अगर मैं उन्हें ये बताऊं कि आज मेरे साथ क्या हुआ, तो वे मुझे पत्रकारिता जारी रखने की अनुमति नहीं देंगे।

पत्रकारों ने सरकारी मीडिया सेंटर द्वारा घाटी के रिपोर्टर समुदाय को आधिकारिक तौर पर आवंटित किए गए एक मात्र सेलफोन का उपयोग करके पुलिस और सूचना विभाग को फोन करने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। श्रीनगर के पुलिस प्रमुख हसीब मुगल को एक टेक्स्ट मैसेज भेजा गया उसका जवाब नहीं आया।

5 अगस्त के नाकेबंदी के बाद से घाटी के पत्रकारों को अपनी गतिविधियों पर कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है – कईयों को तो अभी तक अपना “कर्फ्यू पास” प्राप्त नहीं हुआ और  एकमात्र उपलब्ध इंटरनेट और मोबाइल सुविधाओं का उपयोग करने के लिए मीडिया सेंटर में कतारों में इंतजार करना पड़ता है। घाटी की दर्जन भर महिला पत्रकारों को भी अपने पुरुष सहयोगियों की तरह ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

एक अंतरराष्ट्रीय टेलीविजन चैनल के लिए काम करने वाली महिला पत्रकार ने बताया कि हाल ही में जब श्रीनगर के नौहट्टा में पुराने क्वार्टर में कैमरामैन ने उनके साथ कुछ शॉट फिल्माए तो सैन्य बल ने देखते ही उन पर लगभग हमला कर दिया था।

5 अगस्त के बाद का प्रशासन का सबसे कड़े प्रतिबंध के साथ, घाटी के पत्रकारों के लिए रविवार को शायद सबसे बुरा दिन था।

एक स्थानीय संपादक, मंज़ूर ज़हूर को सुरक्षा बलों के साथ बहस करने के बाद, शहर के केंद्र से दूर रखा गया। घाटी में मीडिया सेंटर्स पर पत्रकारों की उपस्थिति में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। रिफत ने बताया कि राजबाग़ स्थित उनके घर से मीडिया सेंटर तक की 3 किमी की दूरी भर में 15 स्थानों पर रोका गया था।

रिफ़त ने बताया कि –“जहाँगीर चौक पर, सुरक्षा बलों ने सख्ती से कहा कि मुझे लौट जाना चाहिए। मैंने उनसे आग्रह किया कि वे मेरे साथ अशिष्टता न करें। इससे वे क्रोध से भर गए हुए और उसके बाद जो हुआ वह नारकीय था। कई मिनट तक वे मेरी कार को पीटते रहे और मुझे और मेरे परिवार को गालियां देते रहे।”

“मैंने उन्हें बताया कि मेरे पास कर्फ्यू पास है लेकिन उन्होंने नहीं सुना। मुझे नहीं समझ में आ रहा था कि मैं क्या करूं? आखिरकार, सीआरपीएफ का एक जवान ने पर्याप्त दया दिखाते हुए मुझ गाड़ी बढ़ाने को कहा। मैंने अपनी कार कहीं खड़ी कर दी थी और मीडिया सेंटर के पूरे रास्ते रोती रही।

रिफ़त ने बताया कि कुछ लोग जिन्होंने उस पर आई आफत को कुछ दूर से देखा उन्होंने दूर से ही कहा कि यह ज़ुल्म (अत्याचार) है, लेकिन नजदीक आकर एकजुटता दिखाने की हिम्मत नहीं दिखाई। घाटी की महिला पत्रकार एसोसिएशन के प्रवक्ता ने कहा कि इस क्षेत्र के पत्रकारों को “सरकारी बलों के हाथों अक्सर अपमान और गालियों का सामना करना पड़ता है”।

(द एसोसिएशन) सरकारी बलों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति की कड़ी निंदा करती है और पुलिस विभाग द्वारा कड़ी कार्रवाई का आह्वान करता है। हम पुलिस विभाग से एक सर्कुलर जारी करने के अपील करते हैं जो पत्रकारों को अपना काम निर्बाध रूप से करने अनुमति दे । “एसोसिएशन ने कहा कि मुहर्रम के जुलूसों को कवर करते हुए रविवार को कुछ पुरुष पत्रकारों को जदीबाल में पीटा गया था। बहुत से पत्रकारों ने सरकारी बलों द्वारा उत्पीड़न और दुर्व्यवहार की शिकायत की है। वैध आईडी प्रूफ और कर्फ्यू पास होने के बावजूद, पत्रकारों को स्वतंत्र और निर्बाध आवाजाही की अनुमति नहीं दी जा रही है।


हिंदी अनुवाद सुशील मानव ने किया है .

 

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