अर्थव्यवस्था के मामले में भारत क्यों बांग्लादेश से नीचे 161वें पायदान पर है?

क्या तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था के हिसाब से भारत का स्थान दुनिया में 164 है? दुनिया के 193 देशों में से हम 164 वें नंबर पर हैं? प्रोफेसर कौशिक बसु के ट्वीट से यही जानकारी मिलती है। प्रो बसु विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और अमरीका की कॉरनेल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हैं। प्रोफेसर बसु ने लिखा है कि 5 साल पहले भारत अग्रिम कतार के देशों में था। आज 164 वें नंबर पर है।

प्रोफेसर बसु ने statisticstimes.com का लिंक दिया है। इस साइट पर सबसे पहले यही लिखा है कि आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिए गए हैं। 2020 में किस देश की कितनी जीडीपी रहेगी उसका अनुमान लगाया गया है। दुनिया के सिर्फ तीन देश हैं जिनकी जीडीपी 3 प्रतिशत से ऊपर रहेगी उनमें से एक भारत का पड़ोसी बांग्लादेश है। बांग्लादेश से ऊपर गुयाना और दक्षिण सुडान हैं। इसके अनुसार दुनिया की 193 में से 167 अर्थव्यवस्थाएं माइनस में रहेंगी। निगेटिव। सोचिए दुनिया की 79 प्रतिशत अर्थव्यवस्था निगेटिव में हैं। केवल 26 अर्थव्यवस्थाएं 2020 में सकारात्मक विकास दर हासिल करेंगी। जिनमें से 12 एशिया और अफ्रीका में हैं। सभी यूरोपीय और अमरीकी अर्थव्यवस्था का विस्तार रूक जाएगा।

चौपट अर्थव्यवस्था के दौर में भारतीय जनता ने महंगाई को जिस तरह गले लगाया है वह अद्भुत है। हर बढ़ती हुई कीमत जनता को स्वीकार है। जनता ने महंगाई को लेकर सरकार को मनोवैज्ञानिक दबाव से मुक्त कर दिया है। लोग ख़ुशी ख़ुशी 98-100 रुपये लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं बिज़नेस मंदा है। सैलरी कम है। कमाई कम है। नौकरी नहीं है। इसके बाद जिस तरह से जनता झूम कर एक लीटर पेट्रोल के लिए 98-100 रुपये दे रही है वह अद्भुत है। तेल कंपनियां चाहें तो मौके का फायदा उठाकर 200 तक कर सकती हैं। जनता वह भी ख़ुशी ख़ुशी दे देगी। वह विपक्ष के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा मारने का कोई मौक़ा नहीं गंवाना चाहती है।

विपक्ष सर धुन रहा है कि जनता ही विरोध नहीं कर रही है तो वह कहां पोस्टर बैनर लेकर धरना देने जाए और जाने से भी कोई दिखाएगा नहीं, कोई छापेगा नहीं। गोदी मीडिया ने भी महंगाई नाम के मुद्दे की मौत का एलान कर दिया है। महंगाई और रोज़गार इन दो मुद्दों से भारत मुक्त हो चुका है। नौकरी की मांग करने वाले बेरोज़गारों को एक मिनट में काबू किया जा सकता है। तुरंत धर्म के ख़तरे से संबंधित कोई मीम भेज कर या उसकी रक्षा करने से संबंधित बयान देकर। इन चीज़ों से भारत के युवाओं को जितनी मनोवैज्ञानिक सुरक्षा मिलती है उतनी किसी चीज़ से नहीं। नौकरी नहीं चाहिए। उन्हें दो चीज़ चाहिए। एक धर्म से नफ़रत। एक धर्म पर गौरव। मेरी राय में यह दोनों ही चीज़ें प्रचुर मात्रा में सबको दी जा रही हैं।

हम एक ऐतिहासिक दौर से गुज़र रहे हैं। जनता महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान नहीं है। जो सरकारी कंपनियां बिक रही हैं वहां इस फैसले का विरोध करने वाले इस बात से कम दुखी हैं कि सरकार बेच रही है, इस बात से ज़्यादा दुखी है कि भक्त लोग सरकार के फैसले के साथ हैं। इन कंपनियों के कर्मचारी ही कहते हैं कि अभी भी बहुत लोग हैं जो कहते हैं कि मोदी जी जो कर रहे हैं वो सोच समझ ही कर रहे हैं। सही बात है। सोच समझकर करने से ही तो अर्थव्यवस्था की ये हालत है। कि अभी हम डूबे हैं। उस पर ताला बंद नहीं हुआ है। इसके लिए तारीफ़ तो होनी ही चाहिए।


रवीश कुमार, जाने-माने टीवी पत्रकार हैं। संप्रति एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।

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