यूपी का भर्ती घोटाला: युवाओं के भविष्य के साथ मज़ाक़ करती सरकार किस काम की?

 

हमारे देश में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया की जो दुर्गति है, उसका खामियाजा सिर्फ बेरोजगार युवाओं को ही नहीं बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था को भुगतना पड़ता है। अलग अलग राज्यों में सबसे ज़्यादा धरना प्रदर्शन, सवाल और शंकाएं शिक्षकों या शैक्षिक ट्रेनिंग कर चुके युवाओं के मुद्दे पर ही होते हैं। ज़्यादातर सरकारें सबसे अधिक धांधली और भ्रष्टाचार शिक्षकों की नियुक्ति में ही करती हैं।

पिछले साल तक के आंकड़ों के अनुसार देश में 12 लाख से ज़्यादा शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। हमने इस पर सरकार से सवाल पूछे व समाधान भी सुझाया। ज़रूरत पड़ी तो आंदोलन किए, अदालत भी गए। लेकिन किसको परवाह है? सरकारों को इन मुद्दों या सवालों से अब फर्क नहीं पड़ता।

बिहार में नियोजन शिक्षकों से लेकर, बीएड डीएलएड या एसटेट क्वालिफाइड हो, झारखंड में पैरा-शिक्षक हो, यूपी में शिक्षामित्र, अनुदेशक या बीएड, बीटीसी टेट क्वालिफाइड हो, दिल्ली के गेस्ट टीचर या सीटेट क्वालिफाइड हो, हरियाणा, पंजाब, एमपी, बंगाल से लेकर कई राज्यों में इनकी नियुक्ति को लेकर गड़बड़ियों के आरोप हैं। हर राज्य में समूह हैं जो सरकारों से न्याय की गुहार लगा रहे हैं व नेता, मीडिया वालों और वकीलों के चक्कर काटते रहे हैं।

सरकार ने तो सुनना बंद कर ही दिया है, आम लोगों में भी इनके संघर्ष के प्रति समर्थन तो दूर सहानुभूति भी नहीं दिखती। लोग मरें, जियें, लाठी-डंडे खाएं, जेल जाएं, अदालत के चक्कर काटें, लेकिन जो आवाज़ उठा रहा होगा उल्टे उसी का विरोध हो जाएगा।

आज मैं आपसे उत्तर प्रदेश की शिक्षक भर्ती पर बात करूंगा जिसको लेकर काफी बहस चल रही है। जिस यूपी के शिक्षा विभाग में एक महिला के एक साथ 25 स्कूलों में नौकरी करते हुए एक करोड़ वेतन लेने का घोटाला सामने आया, उसी प्रदेश के उसी विभाग में दो साल से 69000 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। जहाँ एक मोहतरमा के पास एक करोड़ वेतन के साथ 25 नौकरियां हैं वहीं लाखों शिक्षित युवा बेरोज़गार दर दर भटक रहे हैं।

दरअसल बात शुरू होती है 2017 से जब सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के शिक्षामित्र वाले मामले में उन्हें तरजीह देते हुए आगामी शिक्षक भर्ती निकालने का सरकार को आदेश दिया। इसके बाद यूपी सरकार ने 68500 शिक्षकों के लिए एक भर्ती निकाली और फिर 69000 शिक्षकों के लिए अलग। 68500 की भर्ती में भी कई तरह की शिकायतें आयी और आरोप लगे कि सरकार निष्पक्ष ढंग से चयन प्रक्रिया नहीं करवा रही।

69000 शिक्षक भर्ती का मामला दिसंबर 2018 में आया था और तब से इस पर हंगामा चल रहा है। इसमें बीएड छात्रों, बीटीसी छात्रों, शिक्षामित्रों, कटऑफ का मुद्दा, ओबीसी आरक्षण के नाम पर हेराफेरी, ‘आंसर की’ में गड़बड़ी से लेकर पेपर लीक और सीटें बेचने तक के आरोप लग चुके हैं। स्थिति ये है कि परीक्षा में टॉप करने वाले 150 में से 142 नम्बर लाने वाले को भारत के राष्ट्रपति का नाम नहीं पता। मामला ज़्यादा हाइलाइट होने के बाद अब गिरफ़्तारी भी हुई है। लेकिन हमेशा की तरह ये नहीं पता कि किसके आशीर्वाद से इतने बड़े पैमाने पर अनियमितता, पेपर लीक और भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा था। हाँ, ये ज़रूर होगा कि कुछ एक लोगों को पकड़ कर उसे गिरोह का सरगना बता दिया जाएगा। और कुछ दिन बाद जब सब भूल जाएंगे तो वो छोटा मोटा अपराधी भी स्वच्छंद होकर अपने ‘सरगना’ वाले काम में लग जायेगा।

यही होता आया है हमारे देश में। पहले की सरकारों में भी होता था। किसी भ्रष्टाचार की पोल अगर खुल भी जाये तो किसी दलाल, किसी दफ्तर के क्लर्क को मास्टरमाइंड बनाकर मामला रफा दफा कर दिया जाता है। ज़्यादा से ज़्यादा किसी बड़े अधिकारी, किसी सचिव टाइप के आईएएस का तबादला कर दिया जाता है। सरकार पर छींटा तक नहीं पड़ता और वो एकदम पाक साफ रह कर बच जाती है। जबकि हम सब जानते हैं कि राजनीतिक शह और सत्ता के शीर्ष में बैठे नेता के आशीर्वाद के बिना ये सब संभव नहीं होता।

मेरा मानना है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री यदि व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार हैं, तो 69000 शिक्षकों की भर्ती पर जो गंभीर सवाल उठ रहे हैं, उनका जवाब उन्हें तुरंत देना और अभ्यर्थियों को बताना चाहिए कि..

– दो साल से अधिक बीतने के बावजूद भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी क्यों नहीं हुई?

– भर्ती में इतनी सारी अनियमितता, हेराफेरी और भ्रष्टाचार के आरोप क्यों?

– युवाओं के भविष्य के साथ इस कदर मज़ाक क्यों कर रही है सरकार?

लेकिन आपको और हमको भी सजग होना पड़ेगा। खुलकर बोलना पड़ेगा इन असल मुद्दों पर। ये कैसी परंपरा कि छात्र पढ़ लिख कर योग्य बनें.. फिर सरकार के भरोसे बैठकर भर्ती का इंतज़ार करे.. देरी हो तो आंदोलन करे, लाठी खाएं.. भर्ती निकल भी जाये तो पूरी कराने के लिए सालों इंतजार करे.. परीक्षा पास कर जाएं तो फिर हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट जाएं.. नेता, मीडिया और वकीलों के चक्कर लगाए.. ट्विटर ट्रेंड कराए.. और फिर भी न्याय न पाए तो कौन जिम्मेदार? किस काम की है फिर हमारी सरकार?


 

 अनुपम, युवा-हल्लाबोल आंदोलन के संस्थापक हैं।

 


 

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