‘सुमित्रा एंड अनीस’– आईडिया ऑफ इंडिया जिसे लोगों ने जीया है!


इंडिया
, जो भारत हैहिन्दुस्तानबनने की ओर बढ़ रहा है 

 

सीमा चिश्ती की किताब,सुमित्रा एंड अनीस मुझे देर से मिली। इस किताब के लिए ऑर्डर तो मैंने उसी दिन कर दिया था जब इसके बारे में पता चला। तभी बताया गया था कि किताब देर से मिलेगी पर वह तारीख भी निकल गई और कोई अगली तारीख नहीं बताई गई तो मैंने इंतजार छोड़ दिया था। दरअसल कई किताबें पढ़ने के बाद संभाल कर रखने लायक लगती है जबकि कइयों के मामले में लगता है कि किसी को पढ़ने के लिए दी जाए। दूसरे शब्दों में उसे पढ़वाया जाए। लिखा तो किसी भी किताब के बारे में जा सकता है पर वह अलग मुददा है। 14 जुलाई की सुबह जब किताब आई तो लगा नहीं कि इसे पढ़ या देखकर किसी को दिया जा सकता है। वजह यह है कि इसमें एक, ‘खिचड़ी परिवारकी पाक विधियां भी हैं। 

सीमा चिश्ती को मैं काफी समय से जानता रहा हूं इसलिए किताब में क्या सब हो सकता है इसका अनुमान तो था लेकिन पाकविधियां वाकई अनमोल हैं। नाकभौं सिकड़ने वालों का ख्याल रखते हुए विस्तार में नहीं जाउंगा क्योंकि उन्हें पता है कि मैं करीम में खाने का शौकीन रहा हूं और महीनों रोज रात का खाना वहीं खाया है और इस चक्कर में मेरा साथ देने वाले मित्र, संजय सिन्हा की शाकाहारी पत्नी मांसाहारी हो गईं। पाक विधियों के लिए किताबों के बाद अब तो यू ट्यूब खजाना है और उसका अपना आनंद है लेकिन अगर आप सीमा चिश्ती को जानते हैं या पुस्तक पढ़कर जानेंगे तो इन पाक विधियों का महत्व भी समझ जाएंगे। 

हालांकि, इसके साथ यह बताना जरूरी है कि पुस्तक काउपसंहार वीर सांघवी ने लिखा है। हिन्दी के ज्यादातर पाठक उन्हें अंग्रेजी पत्रकार या लेखक के रूप में ही जानते हैं पर मैं उन्हें भोजन पर उनके कॉलम, ‘रूड फूडके लिए भी जानता हूं। भोजन के लिए अंग्रेजी का रूड शब्द अपरिस्कृत या रूखे का पर्याय हो सकता है पर आपको इसमें लिट्टी चोखा की चर्चा शायद मिले। मैंने तो नहीं देखा पर हां, दुनिया भर के घरों और पांच सितारा व्यंजनों तथा पकवानों का जो वर्णन वीर सांघवी ने किया है उसका विवरण मैं उनका प्रशंसक और पाठक होकर भी नहीं दे सकता हूं।  

कुल 190 पेज की इस पुस्तक का उपसंहार उन्होंने 16 पन्नों में लिखा है और इसकी शुरुआत, खिचड़ी से हुई है। वे लिखते हैं, कुछ वर्ष पूर्व आधिकारिक तौर पर यह संकेत दिया गया था कि सही अर्थों में सबसे अधिक भारतीय व्यंजन खिचड़ी है। हमारे यहां खिचड़ी शब्द का प्रयोग मिश्रण के तौर पर किया जाता है जबकि यह यौगिक है। भले ही दाल चावल नाप कर नहीं मिलाया जाता हो पर इसमें कुछ भी नहीं डाल दिया जाता है। मुझे यह 1977 की जनता पार्टी की सरकार के समय से ही खटक रहा है जब कांग्रेस के तमाम विरोधियों ने मिलकरखिचड़ी सरकारबनाई थी। 

यह अलग बात है कि शाकाहार की प्रचारक, भारतीय जनता पार्टी के उस समय के अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के चुनाव की तैयारियों से पहले भाजपा के 38वें स्थापना दिवस पर कहा था, ‘देश में जो मोदी की बाढ़ आई है उसके डर से कुत्ता, बिल्ली, सांप और नेवला सब मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।वीर सांघवी ने खिचड़ी को लेकर हाल के मी़डिया स्टंट की चर्चा की है और कहा है कि खिचड़ी को भारत को जोड़ने वाला डिश कहना सही भी है और नहीं भी। उनकी राय में भारत को सही अर्थों में दाल जोड़ती है और आप जहां भी जाएंगे दाल जरूर मिलेगी। चावल के व्यंजन की ही बात की जाए तो भारत को जोड़ने वाला खाना खिचड़ी नहीं बिरयानी या पुलाव है। 

जो मांसाहारी नहीं हैं वे शाकाहारी बिरयानी खाते हैं और इसपर बहस होती है कि मछली, मांस या मुर्गे के बिना बिरयानी कैसे बन सकती है। उन्होंने लिखा है, खिचड़ी को आधिकारिक मंजूरी मिलने और बिरयानी को नहीं मिलने का कारण है। खाद्य पदार्थों को लेकर इस समय चल रही कहानियों में बिरयानी को एक ऐसा व्यंजन माना जाता है जिसे लेकर मुसलमान भारत आए थे। दूसरी ओर, खिचड़ी की खोज स्पष्ट रूप से पवित्र हिन्दू परिवारों ने की थी जो हमलावरों द्वारा उन्हें अकेले छोड़ दिए जाने पर इसे पकाते थे। इसउपसंहारसे आप पुस्तक का महत्व समझ सकते हैं। 

पुस्तक की शुरुआत या परिचय में सीमा लिखती हैं, “उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों, समाजवादी पार्टी द्वारा कथित मुस्लिम तुष्टिकरण का खुलासा करने की कोशिश में श्मशान और कब्रिस्तान के अंतर को जोरदार ढंग से रेखांकित किया था। यह इतना जबरदस्त था कि चुनाव में कहे गए शब्दों को भूल जाना चाहिए और इसके लिए माफ कर दिया जाना चाहिए के बावजूद इस वाले का गहरा असर हुआ।प्रधानमंत्री इसे तृप्तिकरण तक ले जा चुके हैं पर वह अलग मुद्दा है।   

हमारा नेता एकता का संकेत नहीं दे रहा था बल्कि हमारी विविधता से खेल रहा था और कलह के बीज बो रहा था। 2018 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी वैवाहिक चुनाव के पीछे के कारणों की जांच कर रही थी। और यह निजी मामलों में सरकारी ताकझांक का कोई अकेला मामला नहीं था। नए कानून बनाए गए जो अब प्यार करने के दो वयस्कों के निर्णय को अपराध बनाते हैं और इसे धर्म की उपेक्षा का मामला बना दिया गया है तथा इसके लिए लंबे समय तक कैद का प्रावधान भी कर दिया गया है। यह सब तब जब, दहेज कानून के बावजूद दहेज खत्म नहीं हुआ, बेटियों को जायदाद में हिस्सा नहीं मिलता और कन्या दान करने के लिए ही पैदा की जाती है। शायद इसलिए कि जब जाति से बाहर शादी नहीं हो सकती है धर्म से बाहर क्यों हो।       

पुस्तक के नाम और लेखक सीमा चिश्ती तथा किताब के बारे में ऊपर बताई गई बातों से अगर अभी तक आप यह नहीं समझे हैं कि सीमा ने यह किताब अपने मातापिता और उनके जीवनपरिवार के बारे में लिखा है तो पुस्तक के अंत में (बाहरी कवर पर), ‘एन इंडियन मैरेजशीर्षक से जो छपा है उसके हवाले से आपको बता दूं कि पत्रकार सीमा चिश्ती अंतर धार्मिक विवाह की पैदाइश हैं और यह विवाह ऐसे समय का है जब आईडिया ऑफ इंडिया महज आईडिया नहीं था बल्कि एक वास्तविकता थी जिसे लोगों ने जीया है। इस पुस्तक में सीमा अपने मातापिता की कहानी बताती हैं। 

पुस्तक में शाहिद अमीन का लिखा एक अध्याय है, नेफ्यू रीमेम्बर्स। इसकी शुरुआत होती है, अनीस मामू के बारे में मेरी पहली याद मुझे देवरिया के राजकीय विद्यालय में ले जाती है। यह जुलाई 1960 की बात है। मैंने कक्षा चार पास कर ली थी जो उस समय दिल्ली के हमारे स्कूल में जे-2 कहा जाता था। हम विशेषाधिकार प्राप्त लोग थे। हमारे स्कूल में स्विमिंग पूल और सीनियर्स की घुड़सवारी के लिए डायना जैसे नाम वाले आधा दर्जन घोड़े थे। पर चीजें बदलने वाली थीं। मेरे पिता दो साल के लिए अमेरिका जा रहे थे और परिवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वजों के घर में शिफ्ट होना था। इसमें सीमा के पिता और उनके परिवार के बारे में बताया गया है और इसी से पता चलता है कि चिश्ती उनके पिता का उपनाम है और मुसलमानों का उपनाम होता है। मैं आज और अभी तक नहीं जानता था सीमा को वर्षों से जानने के बावजूद। ऐसे में मुझे लगता है कि जो लोग मुसलमान मतलब पंक्चर लगाने वाला समझते हैं उन्हें यह पूरा अध्याय जरूर पढ़ना चाहिए। इस लिहाज से यह कुछ लोगों को पढ़वाने लायक है पर दुर्भाग्य से अंग्रेजी में है। 

अनीस सीमा के पिता हैं और आप समझ गए होंगे कि वे उत्तर प्रदेश में देवरिया से सैयद मुस्लिम हैं। मां, सुमित्रा, कर्नाटक में मैसूर की क्षत्रीय हिन्दू हैं। दोनों की कहानी में सुमित्रा की रसोई की पाकविधियां हैं। यह रसोई उस विविधतापूर्ण पाक कलाओं का संगम थी जिसकी वोमहाराजहो गई थीं। यह छोटी सी पुस्तक सुमित्रा और अनीस के साथ को संभव बनाने वाली अच्छाइयों का गुलदस्ता है। इंडियाजो भारत है, के बड़े वादे को पूरा करना है जिसे अपने साधारण से घर में उन्होंने सच बनाया। मेरे लिए इंडिया भारत है, हिन्दुस्तान नहीं। अभी देखा कि इस नाम से एक किताब भी आई है, इंडियादैट इज भारत।

 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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