प्रियदर्शन मालवीय
शुरुआत में ऐसा लगा कि कोरोना के कारण सड़क दुर्घटनाएं नहीं के बराबर हो रही हैं मगर बाद में एक के बाद एक तमाम दिल दहलाने वाली दुर्घटनाएँ हुईं। लखनऊ से साइकिल से अपने गांव जा रहे एक श्रमिक दम्पति की कार दुर्घटना में दर्दनाक मौत तो बेहद दर्दनाक थी। इस दुर्घटना में दम्पति की तुरंत मौत हो गई और बच्चों को गंभीर चोटे आईं। फिर तो ऐसा लगने लगा जैसे दुर्घटनाओं की बाढ़ आ गई। एक ही दिन में तीन बड़ी दुर्घटनाएं हुई जबकि सारे देश में लॉकडाउन है। पहली दुर्घटना औरैया में हुई जिसमें 25 लोग मारे गए और दूसरी छतरपुर में जिसमें छः लोग और तीसरी गुना में हुई जिसमें भी छः लोग मारे गए एवं अनेक लोग घायल हुए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सड़क दुर्घटनाओं को दुनिया भर में सबसे बड़े कातिल के रूप में पहचान की है। इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने देश की सड़कों को राक्षसी हत्यारे (जायंट किलर) कहा है। भारतीय सड़कें अराजकता के घर हो गईं हैं जिसमें लावारिस पशु, साइकिल, ट्रैक्टर, जुगाड़, मोटरसाइकिल, कारें और भारी वाहन एक साथ चलते हैं फिर भी चालक अत्यधिक तेज गति से वाहन चलाते हैं। सड़क हादसों के लिए कम प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस नियमों से लेकर यातायात नियमों का खुलेआम उल्लंघन होना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। केंद्रीय सड़क एवं यातायात मंत्री नितिन गडकरी ने स्वीकार किया कि दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जहां लाइसेंस बहुत आसानी से बन जाता है और एक व्यक्ति चार चार राज्यों से जाकर ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लेता है। इन लाइसेंसों के बल पर सड़क नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि देश का तकरीबन पूरा यातायात महकमा भारी भ्रष्टाचार से ग्रस्त है।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए तेज गति और शराब खोरी की जुगलबंदी सबसे अधिक जिम्मेदार है। बिहार में शराबबंदी के 1 साल बाद एकत्रित किए गए आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि शराब और सड़क दुर्घटनाओं का सीधा संबंध है। शराबबंदी के बाद बिहार में सड़क दुर्घटनाओं में भारी कमी आई है। शराब पीकर वाहन चलाने के कारण हो रही दुर्घटनाओं को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राष्ट्रीय मार्ग एवं राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों पर रोक लगाई है। तकरीबन 62 फ़ीसदी दुर्घटनाएं तेज गति से गाड़ी चलाने के कारण होती है। तेज गति एक मानसिक बीमारी की तरह हमारे समाज में फैलती जा रही है। हमारे युवाओं में तेज गति से वाहन चलाने में मजा लेने की नागवार आदत पड़ती जा रही है और इसमें उन्हें थ्रिल मिलता है। हमारे युवा तेज गति से भाग रहे हैं और यह नहीं पता कि उनकी मंजिल कहां है ? वे गति के पीछे भागते रहते हैं उन्हें ठहराव का मजा लेना नहीं आता। विलंबित उनके मिजाज से गायब होता जा रहा है और वे द्रुत और तेज़ द्रुतगति को ही जानते हैं। तेज गति भी जीवन के लिए जरूरी है और ठहराव भी जरूरी है और यह जानना चाहिए कि जाना कहां है?
चलता हूं थोड़ी दूर तक तेज रव के साथ,पहचानता नहीं हूं रहगुजर को मैं – ग़ालिब।
आज के युवा की यही कहानी है । नेपाल से आने वाली ट्रकों में दोनों तरफ लिखा रहता है थांबा (ठहरिए). यह हमारी पीढ़ी के लिए बड़ा संदेश हो सकता है – थांबा थांबा थांबा।
लेखक वरिष्ठ कथाकार और यूपी के भूतपूर्व उप परिवहन आयुक्त हैं।