लुई ग्लक: मोहभंग की कवयित्री!

ग्लक के यहां दो मूल भाव हैं । एक ठेठ नारीवादी है। सत्ता के ढांचे इस वृत्त को और अधिक निष्ठुरता प्रदान करते हैं और वे आश्रय प्रदान करने के बजाय और अधिक शक्ति पैदा करते हैं। ओडिसी के पेनोलोप का पुनः सृजन उनकी 'Musing on Marriage' (विवाह पर विचार) कविता में ओल्ड टेस्टामेंट से अभिषाग की कहानी के पुनर्कथन में यह विचार और अधिक विस्तृत करुणा से व्यक्त हुआ है । Meadolands के Parrables of Swans में वे लिखती हैं," ऐसा कुछ प्रकाश में आया है कि औरत और मर्द / उड़े अलग-अलग पताकाओं के साथ: मर्द मानते रहे कि जो उन्होंने महसूस किया दिल से वही है प्यार/औरत ने माना जो भी किया जाता है वही है प्यार।"

प्रताप भानु मेहता

 

साहित्य के नोबेल पुरस्कार में एक घमंड पूर्ण सनक होती है। अक्सर मानव इतिहास, अनुभूति, विधा और भूगोल, जहां से मानव साहित्य का उद्भव होता है, को लेकर हठी संकीर्णता के प्रमाण मिलते रहते हैं । समिति अक्सर अपनी कल्पना को वहां तक खींचती है जहां उसको यूरोप में साहित्य के नए अग्रदूत मिले और यूरोप ही साहित्य की उपयुक्त जगह लगे और यह कमेटी की कल्पना उसकी प्रादेशिकता को ही रेखांकित करती है । हमेशा ही प्रशस्ति पत्र में कुछ दार्शनिक अर्धसत्य होते हैं : महान साहित्य की सार्वभौमिक अपील होनी चाहिए या थीम का सार्वभौमिक महत्व होना चाहिए। लेकिन सार्वभौमिक है क्या ? कैसे यह बनता है और इस विशिष्ट संवर्ग में क्या आएगा?

ये प्रश्न कई नोबेल चयनों के ऊपर छाया की तरह मंडराते रहे हैं । कविता जो कि स्वयं में एक हाशिये पर पड़ी हुई विधा है, के मामले में सीमस हीनी या विस्लावा चिमबोरस्का जैसे कुछ चयन चमक, मेघा , संक्षिप्तता और प्रभावित करने की क्षमता के स्वत: प्रकट उदाहरण है । इस वर्ष की विजेता लुई ग्लक इसकी सर्वथा योग्य हकदार हैं । लेकिन इस तथ्य की स्वीकृति भी इस मान्यता के साथ असंगत नहीं है कि वह सर्वमान्य पसंद नहीं है। उनकी मान्यता उनकी पाठकीयता के बजाय उनके पुरस्कारों से ज्यादा हुई है या हीनी या चिमबोरस्का पुरस्कृत होने के पहले ही वैश्विक नाम बन चुके थे और ग्लक के प्रबल प्रशंसक भी मानेंगे कि उनके साहित्य में बहुत अधिक स्मरणीय जुमले , जो कि आपकी मानसिक बुनावट का हिस्सा बन जाए, नहीं मिलेंगे। उनकी कविता का प्रभाव अकस्मात चमकीली कौंध नहीं है बल्कि धीरे-धीरे इकट्ठा होता विक्षुब्धकारी अनुभव है। मैंने भी ग्लक के बारे में तब तक कुछ नहीं सुना था जब तक कि मेरे एक मित्र ने उनके संकलन (ग्रामीण जीवन) विलेज लाइफ की एक प्रति नहीं दी थी । आधुनिक कविता में बहुत कुछ ऐसा है जो संशयवाद को आमंत्रित करता है जहां अनुपात में पुरस्कृत करने का प्रयास बिल्कुल सही प्रतीत नहीं होता। मैं संशयालु था लेकिन पहला पैरा ही आकर्षक था । “इस तरह का समय और होना चाहिए, बैठकर स्वप्न देखें / यह तो जैसा उनकी चचेरी सहोदर कहती है : रहना रहना आपको बैठने से दूर करता है।” अगली पांच कविताओं में बैठने के बिंब थे। बैठने में कोई विशेष काव्यत्व नहीं सिवाय कठिनाई से प्राप्त विराम के आशय के, आहिस्ता होने और देखते रहने का सुझाव।

प्रभाव के स्तर पर यह बैठना और खिड़की के बाहर देखना, रहने से आश्रय एक तरह की आजादी की बात है जो बहुत आकर्षक है केवल इसलिए कि यह स्थिर है। आरामदायक है। हम में से स्थिरता की प्रकृति वालों को यह अच्छा लगता है लेकिन यह एक महान धोखा ही सिद्ध हुआ। आहिस्ता होते जाने की क्रिया, खिड़की से बाहर देखना, शनै: शनै: किंतु निश्चित ही एक हिमस्राव अवमुक्त करता है जिससे रहना आसान लगने लगता है। एक अंतरिक्षीय चुटकुला है कि यदि आप बैठकर गहन चिंतन में लीन हैं और आप सोचते हैं कि आप रहने से मुक्त हैं तो आप गलत हैं। महज अपने आपको देखते रहने से जो अवमुक्त हो सकता है उससे रहना ही बचाता है।

लगभग आधी शताब्दी तक फैले साहित्यिक जीवन में विलेज लाइफ ( ग्रामीण जीवन ) बाद की रचना है । इसमें उनकी प्रारंभिक बेबाकी नहीं है लेकिन आप देख सकते हैं कि वे मोहभंग की महान कवयित्री हैं। उनकी कविता का एक महत्वपूर्ण लक्षण था कि वे प्रकृति का आह्वान करती हैं। वर्षा ,वृक्ष, ऋतुएं, पौधे, पर्वत सब भावनात्मक जीवन की एक प्रकार की सजातीयता के रूप में दिखते हैं लेकिन वह आह्वान एक अनिर्णय की स्थिति में करती हैं । न्यू इंग्लैंड के इमर्सन और रॉबर्ट फ्रास्ट जैसे पूर्ववर्तियों के विपरीत इनके यहां प्रकृति आश्वस्त नहीं करती । न ही व्यवस्था का स्रोत है । लैंडस्केप में एक निश्चित स्थायित्व है लेकिन यह बेचैनी को बढ़ा देता है और शांत नहीं करता। कोई राहत नहीं है।

इजराइली उपन्यासकार डेविड ग्रासमैन ने एक बार कहा था कि ज्यादातर महाकाव्यात्मक नाटक हमारे जीवन में घटित होते हैं ना कि सार्वजनिक जीवन में । वह अधिकतर हमारे अंतरंग वृत्त में होते हैं । ज्यादातर महाकाव्यतामक लड़ाइयों का स्थान परिवार ही होता है। सारी मानवीय भावनाओं को अवमुक्त करने वाली और स्व नियंत्रण की मायावी तृष्णा को उद्घाटित करने वाली घटनाएं सार्वजनिक वृत्त में नहीं घटती। पुरानी किताबों को पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है लेकिन आधुनिक जीवन में यह एक विलक्षण बोझ है जो परिवार और अंतरंग वृत्त उठाए फिरते हैं। एक अर्थ में यह स्वाधीनता का व्रत है, वह स्थल जहां प्यार और सार्थकता बनाए जाते हैं, लेकिन यह एक ऐसा बोझ है जो यह नहीं उठा सकता।

ग्लक के यहां दो मूल भाव हैं । एक ठेठ नारीवादी है। सत्ता के ढांचे इस वृत्त को और अधिक निष्ठुरता प्रदान करते हैं और वे आश्रय प्रदान करने के बजाय और अधिक शक्ति पैदा करते हैं। ओडिसी के पेनोलोप का पुनः सृजन उनकी ‘Musing on Marriage’ (विवाह पर विचार) कविता में ओल्ड टेस्टामेंट से अभिषाग की कहानी के पुनर्कथन में यह विचार और अधिक विस्तृत करुणा से व्यक्त हुआ है । Meadolands के Parrables of Swans में वे लिखती हैं,” ऐसा कुछ प्रकाश में आया है कि औरत और मर्द / उड़े अलग-अलग पताकाओं के साथ: मर्द मानते रहे कि जो उन्होंने महसूस किया दिल से वही है प्यार/औरत ने माना जो भी किया जाता है वही है प्यार।”

लेकिन और अधिक गहन और गंभीर मूल भाव से पीछा छुड़ाना मुश्किल है । एक ऐसी दुनिया में जो हमें वस्तुनिष्ठ आशय के प्रतिबंधों से मुक्त करती है। उसमें माना जाता है कि हम अपने मनोवेग की साधना करेंगे लेकिन तब क्या जब यह मनोवेग रहस्यात्मक हैं, विकृत है और अक्सर वक्री और अनियंत्रित हैं ? ग्लक की प्रतिभा यह दिखाने में है कि इस अंधपक्ष की अभिव्यक्ति सार्वजनिक कृतियों में नहीं होती बल्कि रिश्तो में सहजता से बहती रहती है । या हमेशा संदिग्ध चरित्र का संघर्ष। ‘ Descending Figure’ में वे लिखती हैं “यह पूर्णता की वही आवश्यकता है/ मृत्यु जिसका उपोत्पाद है।”

उनको प्राय: संबंधों का कवि कहा जाता है: विवाह, सहोदर प्रतिस्पर्धा , मित्रता , धोखा ,शरीर और पारिवारिक संघर्ष और सबसे ऊपर मृत्यु । लेकिन उनके साहित्य की सराहना उनके मोहभंग की भावना पर निर्भर है? वे बहुत अच्छी तरीके से मानव अनुभूति को सजा सकती हैं लेकिन यह दावा कि ‘वे सार्वभौमिक महत्व की हैं’, को उनकी ज्यादातर कविताओं के अंतिम भाग के पाठ पर निर्भर करता है : बेचैन विसम्मोहन की संयमित अभिव्यक्ति । कविता के कौशल की तकनीकी बहस में पड़े बगैर यह कहा जा सकता है कि कभी डब्लू बी येट्स और रविंद्र नाथ टैगोर भी सार्वभौमिक समझे जाते थे पुनःसम्मोहन के कारण।

वह पुन:सम्मोहन अब हमारी आज की मनोदशा में एक प्रकार की भावुकता है । ग्लक के चयन में हम न केवल एक शिल्प का सम्मान कर रहे हैं बल्कि हम एक ऐसे साहित्य का सम्मान कर रहे हैं जो कि मुक्ति और पुनः सम्मोहन का प्रतिरोध करता है । यह हमें बचाने के लिए नहीं बल्कि हमें उस तत्व से सामना कराने के लिए है कि हम पूरी तरह से अपने आवेगो पर आश्रित हैं यहां तक कि भगवान भी उन्हें आदेश देना छोड़ देंगे जैसा कि उनके सर्वोत्तम संकलन Ararat, Meadowlands,Wild Iris से जाहिर होता है।

Parados में वह लिखती हैं “मैं एक ऐसे व्यवसाय में पैदा हुई / जिसमें मुझे ग्रहण करना था साक्ष्य महान रहस्यों का/ अब जब मैं देख चुकी हूं जन्म और मृत्यु / मैं जानती हूं यह अंध प्रकृति के सबूत हैं रहस्य नहीं।” वह मोहभंग पाये हुए अस्तित्व का सबूत देती हैं।

 

प्रताप भानु मेहता का यह लेख मूल रूप से इंडियन एक्स्प्रेस में छपा। अनुवाद- आनंद मालवीय, इलाहाबाद।



 

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