पहले पन्ने का खेल: ग़ायब रहते हैं सरकार की कारग़ुज़ारियों पर उठने वाले सवाल

खड़गे ने बिड़ला और धनखड़ के अधिकार क्षेत्र से दूर कई प्रश्न पूछे

 

लखनऊ में निवेशक सम्मेलन के दिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा और अगले दिन निवेशक सम्मेलन की खबर के साथ टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड का शीर्षक रहा, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि निवेशकों को अडानी जैसे जोखिम से कैसे बचाया जा सकता है। लीड का लगभग ऐसा ही शीर्षक द हिन्दू में है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लखनऊ के सम्मेलन की खबर को सेकेंड लीड बनाया है और टॉप रखा है। दरअसल इसमें प्रधानमंत्री का भाषण हुआ और अखबार में शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने कहा, दुनिया धीमी हो रही है लेकिन भारत गति और पैमाने (विस्तार) के रास्ते पर है। लखनऊ के निवेशक सम्मेलन की खबर, इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुखता से है और शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने वैश्विक निवेशकों से कहा – भारत पर दांव लगाइए, दुनिया की संपन्नता भारत की संपन्नता में है। (शायद उसी में जिसमें 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देना पड़ रहा है)।        

कहने की जरूरत नहीं है कि मुद्दे पर बात नहीं हो रही है। अडानी मामले की जांच नहीं हो रही है, उसपर जो बोला गया उसे एक्सपंज कर दिया गया फिर भी दावा है कि भारत पर दांव लगाइए। सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है कि निवेशकों की रक्षा के लिए सरकार के पास क्या उपाय हैं लेकिन प्रचार निवेश सम्मेलन का है। चर्चा इसके लिए प्रकाशित विज्ञापन और प्रधानमंत्री के बयान की है। आप जानते हैं कि पीएम मोदी ने कहा है, विज्ञापनों में मेरी भी फोटो चमक सकती थी पर हम जिंदगी में बदलाव लाने के लिए जीते हैं। अब यह बदलाव 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलना, इस स्थिति में पहुंच जाना या पहुंचे हुओं के लिए कुछ नहीं कर पाना है या और कुछ यह आपको कभी पता नहीं चलेगा। प्रधानमंत्री जिसे जवाब देते हैं वो पूछेगा नहीं और जो पूचेगा उसे प्रधानमंत्री जवब नहीं देते। भक्तों की इराय में उसका संज्ञान नहीं लेते हैं। 

ऐसे में निवेश सम्मेलन पर द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की खबर की खास बात है कि सम्मेलन में गौतम अडानी नहीं आए। प्रधानमंत्री के साथ जो लोग इस सम्मेलन में आए उनके बावजूद। हाल में शेयर मार्केट के शिकार हुए अडानी का निवेश सम्मेलन में नहीं आना महत्वपूर्ण है। पता नहीं वे अकेले पड़ जाने से नाराज हैं या सरकारी संरक्षण में शेयर के भाव बढ़ने के आरोपों से दुखी हैं या उन्हें अलग रहने के लिए कहा गया है। लेकिन उनके समधी की लॉ फर्म ने अमेरिका की अमेरिका की सबसे महंगी लीगल फर्म में से एक, वाचटेल से संपर्क किया है। निवेश सम्मेलन की खबर द हिन्दू में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। 

देश में जब प्रचार और प्रचारकों की ही चल रही है और बहुमत का राज होने से अच्छे दिन चल रहे हैं तब कांग्रेस अध्यक्ष ने राज्यसभा में कहा कि आप मुझे बर्खास्त कर सकते हैं, मेरे विचारों को एक्सपंज कर सकते हैं लेकिन मैं अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता हूं। और उन्होंने एक प्रेस कांफर्स की कई सवाल उठाए जो मेरे पांच अखबारों में सिर्फ द टेलीग्राफ में है। अखबार ने लिखा है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आजादी के सात दशकों के बाद आए “मित्रकाल” (अमृतकाल भी) में लोगों के मन और राष्ट्र-संवाद से सवाल खत्म न हों, खड़गे ने बिड़ला और धनखड़ के अधिकार क्षेत्र से दूर पार्टी मुख्यालय में एक समाचार सम्मेलन में कई प्रश्न पूछे। 

प्रश्न इस प्रकार थे: (i) क्या अदानी घोटालों की जांच नहीं होनी चाहिए? (ii) क्या अडानी की कंपनियों में निवेश किए गए एलआईसी के पैसे के गिरते मूल्य पर पूछताछ नहीं की जानी चाहिए? (iii) क्या एसबीआई और अन्य बैंकों द्वारा अडानी को दिए गए 82,000 करोड़ रुपए के कर्ज पर सवाल नहीं पूछे जाने चाहिए? (iv) क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि अडानी के शेयरों में 32 प्रतिशत से अधिक की गिरावट के बावजूद एलआईसी और एसबीआई के 525 करोड़ रुपये अडानी एफपीओ में क्यों लगाए गए? (v) क्या यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि एलआईसी और एसबीआई के शेयरों का मूल्य शेयर बाजार में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक क्यों गिर गया? (vi) क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि विदेशों में टैक्स हेवन से अडानी की कंपनियों में डाले जाने वाले हजारों करोड़ रुपये किसके हैं? (vii) क्या मोदी ने श्रीलंका और बांग्लादेश में अडानी के लिए ठेके हासिल किए? किन अन्य देशों में प्रधानमंत्री ने अडानी की मदद की? (viii) क्या यह सच है कि फ्रांस की टोटल एनर्जीज ने अडानी की कंपनी में 50 अरब डॉलर के निवेश को रोक दिया है, जिसके खिलाफ जांच पूरी होने तक समूह के खिलाफ है? क्या दुनिया के सबसे बड़े इक्विटी निवेशक नॉर्वे सॉवरेन फंड ने अदाणी के 200 मिलियन डॉलर मूल्य के सभी शेयर बेच दिए हैं? क्या एमएससीआई ने अडानी की कंपनियों की रैंकिंग घटाई है? क्या स्टैंडर्ड चार्टर्ड, सिटीग्रुप, क्रेडिट सुइस ने अडानी के डॉलर बॉन्ड के बदले कर्ज देना बंद कर दिया है? क्या डाउ जोंस ने अदानी की कंपनी को ‘सस्टेनेबिलिटी इंडिसेज’ से हटा दिया है? (ix) क्या कारण है कि मोदी और उनकी सरकार संसद में “अडानी” शब्द का उच्चारण तक नहीं करने देती है? (x) ऐसा क्यों है कि आरबीआई, सेबी, ईडी, एसएफआईओ, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, आयकर विभाग और सीबीआई, सभी पक्षाघात का शिकार हो गए हैं और अडानी के खिलाफ जांच के नाम पर अपनी आंखें बंद कर ली हैं? खड़गे ने कहा कि देश इन सवालों के जवाब चाहता है और आश्चर्य है कि मोदी सरकार जांच का आदेश देने से कतरा रही है। उन्होंने संकेत दिया कि कांग्रेस संसद में प्रक्रिया के नियमों का “उल्लंघन” करते हुए विपक्षी नेताओं के तर्कों को हटाने के पीठासीन अधिकारियों के प्रयासों का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना जारी रखेगी। 

ऐसे में सवाल है कि देश का मीडिया क्या करेगा और किसलिए है? क्या उसका काम सरकार का प्रचार करना ही है और है भी तो क्या वह बिल्कुल बेलगाम है या अपनी आजादी का दुरुपयोग कर रहा है। इसकी चर्चा कब होगी और जब तक नहीं होगी ये इसी तरह मनमानी करते रहेंगे? टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी खडगे की खबर को पहले पन्ने पर नहीं लिया है। हालांकि अंदर होने की सूचना पहले पन्ने पर है। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध  अनुवादक हैं।

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