16 हज़ार OBC मेडिकल सीटें हज़म करके आरक्षण देने का ड्रामा कर रही है मोदी सरकार!

अदालत का बहाना बनाकर सरकार ने चार साल तक कोई फ़ैसला नहीं किया। अगर ज्ञापन देते हुए ओबीसी मंत्रियों के साथ फ़ोटो खिंचाने के 24 घंटे के भीतर फ़ैसला हो सकता था तो चार साल पहले क्यों नहीं किया गया। ओबीसी कोटे की 16000 मेडिकल सीटों का चले जाना किसी अपराध से कम नहीं है। ओबीसी समाज के इतने डाक्टरों का हक़ मार कर मोदी सरकार ख़ुद को OBC हितैषी बनने निकलेगी। उसे पता है कि गोदी मीडिया के सहारे और अपने प्रचार तंत्र के सहारे गाँव गाँव में प्रचार करेगी कि ओबीसी को आरक्षण का हक़ दिलाया है और यह बात पहुँच ही नहीं पाएगी कि 16000 ओबीसी नौजवानों का हक़ मारने के बाद मिला हुआ आरक्षण बहाल करने का नाटक किया है। EWS के साथ भी यही हुआ है। उन्हें भी 2019-2020 की परीक्षाओं में वंचित रखा गया है।

कांग्रेस को भी याद नहीं होगा कि सोनिया गांधी ने पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था कि नीट मेडिकल परीक्षा में ओबीसी आरक्षण दिया जाए। पिछले ही साल राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने इस सवाल को उठाया था। पिछड़ी जाति के कर्मचारियों के अखिल भारतीय संगठन ने इस मुद्दों को लेकर उठाया था। तेजस्वी यादव ने तो इसे पिछले साल भी उठाया और इस साल भी।डीएमके ने तो बक़ायदा मद्रास हाई कोर्ट में केस कर दिया कि राज्य भी ओबीसी का हक़ नहीं दे रहे हैं और डीएमके ने जीत हासिल की। असली श्रेय डीएमके को जाता है। लेकिन इसके बाद भी मोदी सरकार को अपने ड्रामे पर कितना भरोसा है उसकी मिसाल देखिए। अचानक से कुछ मंत्री प्रधानमंत्री से मिलने जाते हैं। ज्ञापन देते हुए फ़ोटो खिंचाते हैं। मीडिया में इन मंत्रियों को ओबीसी मंत्री बताया जाता है और कुछ घंटे बाद फ़ैसला हो जाता है कि आरक्षण मिलेगा।

अदालत का बहाना बनाकर सरकार ने चार साल तक कोई फ़ैसला नहीं किया। अगर ज्ञापन देते हुए ओबीसी मंत्रियों के साथ फ़ोटो खिंचाने के 24 घंटे के भीतर फ़ैसला हो सकता था तो चार साल पहले क्यों नहीं किया गया। ओबीसी कोटे की 16000 मेडिकल सीटों का चले जाना किसी अपराध से कम नहीं है। ओबीसी समाज के इतने डाक्टरों का हक़ मार कर मोदी सरकार ख़ुद को OBC हितैषी बनने निकलेगी। उसे पता है कि गोदी मीडिया के सहारे और अपने प्रचार तंत्र के सहारे गाँव गाँव में प्रचार करेगी कि ओबीसी को आरक्षण का हक़ दिलाया है और यह बात पहुँच ही नहीं पाएगी कि 16000 ओबीसी नौजवानों का हक़ मारने के बाद मिला हुआ आरक्षण बहाल करने का नाटक किया है। EWS के साथ भी यही हुआ है। उन्हें भी 2019-2020 की परीक्षाओं में वंचित रखा गया है।

पिछले कुछ सालों से सवर्णों को बरगलाया गया कि आरक्षण ख़त्म होगा जबकि यह कभी हो नहीं सकता है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा में ओबीसी के आरक्षण का हक़ मार कर इस प्रचार को और बल दिया गया। इस पूरी घटना का सबक़ यह है कि किसी दूसरे का हक़ चोरी से नहीं लेना चाहिए। नीट परीक्षा में आरक्षण का न देना चोरी थी। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की चपेट में आए अपर कास्ट लोगों से बात कीजिए। बहुतों में दो चीज़ें

एक समान मिलेंगी। मुसलमानों और आरक्षण से भयंकर नफ़रत। दोनों ही मामलों में नफ़रत की ज़मीन आधे अधूरे और झूठे तथ्यों से तैयार की गई है। इसी कारण अपर कास्ट का एक हिस्सा अपने ही देश के समाजों से नफ़रत करने लगा।पहले भी करता था लेकिन इस बार उसका स्तर भयंकर हो गया। इसके ज़रिए बड़ी संख्या में अपर कास्ट के एक हिस्से को हर तरह की मुख्य धारा से अलग कर दिया गया। अपर कास्ट के इस हिस्से को समझना पड़ेगा कि जल्दी सांप्रदायिकता की खटारा बस से नहीं उतरे तो उनके पास इसके नाम पर जयकारा लगाने के लिए झंडा ही बचेगा। मुसलमानों से नफ़रत सभी जातियों में पसर गई और धर्म के नाम पर सांप्रदायिक एकता बन गई है इसलिए अब अब उनकी ज़रूरत झंडा उठाने भर की ही रह गई है। शायद उसकी भी नहीं।

आप 2015 का बिहार विधान सभा चुनाव याद कीजिए। भीतरखाने से आरक्षण विरोधी बातों को हवा दिया जा रहा था। राबड़ी देवी ने संघ को खुल कर इसके पक्ष में बोलने के लिए मजबूर कर दिया था। इंटरनेट पर पुरानी ख़बरों को पढ़ा कीजिए।जिस तरह से बिना सोचे-समझे और किसी से पूछे-बताए कश्मीर से धारा 370 हटा और राज्य का दर्जा समाप्त हुआ, कश्मीर के साथ इस अन्याय को हिन्दी प्रदेश सांप्रदायिक ज़हर के नशे में पचा गया। उस दौरान मुझे कई व्हाट्स एप मैसेज इस तरह के मिले थे कि जैसे धारा 370 हटा वैसे ही आरक्षण हटेगा और वो मोदी ही करेंगे। ये सारी समझ व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से फैलाई जा रही थी। नरेंद्र मोदी हर मोर्चे पर फेल हो चुके हैं। वो नहीं देश फेल हो चुका है। अब उनके पास सत्ता में बने रहने का यही मंत्र है। ओबीसी की राजनीति का मंत्र। 2014 के बाद से ओबीसी नेताओं के ख़िलाफ़ कितनी नफ़रत फैलाई गई कि ये सब जातिवादी हैं। परिवारवादी हैं। लेकिन अब बताया जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार में कितने ओबीसी मंत्री हैं।

सांप्रदायिकता और आरक्षण ने भारी संख्या में अपर कास्ट के युवाओं का मानसिक और राजनीतिक विकास रोक दिया है। उन्हें कुंठित बना दिया है। राजनीतिक में उनकी ज़रूरत समाप्त हो चुकी है क्योंकि वे सामाजिक न्याय की मुख्यधारा से कट गए हैं। काट दिया गया है। इन दो नफ़रतों के कारण अपर कास्ट की राजनीतिक ज़रूरत ही समाप्त हो चुकी है।बेहतर है आप आरक्षण के महत्व को समझें। उसके नाम पर ख़ुद को मुख्यधारा से अलग न करें। अपने भीतर जातिगत नफ़रत को मिटाइये। थोड़ी कोशिश करेंगे तो इस नफ़रत से मुक्ति मिल जाएगी। आप अच्छा महसूस करेंगे।

एक बात राजनीतिक रुप से भी समझ लें। सामाजिक न्याय की मुख्यधारा ही मुख्य है। यह हिन्दुत्व की धारा के नीचे भी बहती है और दूसरी धाराओं के नीचे भी। इसे छेड़ कर कोई धारा ज़िंदा नहीं रह सकती है।चाहे ओबीसी समाज में सांप्रदायिकता का कितना ही ज़हर घोल दिया जाए, यह समाज अपने इस संवैधानिक अधिकार को हाथ से नहीं जाने देगा। आप भूल गए कि नरेंद्र मोदी ने 2014 में राष्ट्रीय राजनीति में की यात्रा ओबीसी नेता के रूप में की थी। थोड़ा और पढ़ें तो पता चलेगा कि इसके कुछ समय पहले गुजरात में उनकी जाति को ओबीसी में शामिल किया गया था या नहीं। मायावती ने एक बार इस पर टिप्पणी की थी। सबका साथ सबका विकास करने वाली सरकार के समर्थन में होर्डिंग लग रही है कि कितने ओबीसी मंत्री बने।

सभी समाज के लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि आरक्षण के कारण अवसर ख़त्म नहीं होते हैं। अवसर ख़त्म होते हैं दूसरी नीतियों के कारण। चार पूँजीपतियों की पूँजी बढ़ती रहे इसके लिए आर्थिक नीतियों का जाल बिछाने के कारण अवसर समाप्त होते हैं। लोग यह समझ नहीं पाते हैं कि उनकी नौकरी में रुकावट आरक्षण नहीं है। अवसर की कमी है। सरकार की मूर्खतापूर्ण हरकतों के कारण अवसर समाप्त हो चुके हैं। प्राइवेट हों या सरकारी क्षेत्र में। ये आरक्षण के कारण नहीं हुआ है। चूँकि आप आर्थिक जगत के मुश्किल खेल को नहीं समझ पाते तो फिर से आरक्षण पर पहुँच जाते हैं कि इसकी वजह से नौकरी नहीं मिल रही है। जबकि जिन्हें आरक्षण मिला है उन्हें भी नहीं मिल रही है।

अब आते हैं ओबीसी पर। केवल केंद्र सरकार के संस्थानों में शिक्षकों के ख़ाली पदों को जोड़ लें तो पता चलेगा कि ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति के चालीस से साठ फ़ीसदी तक पद ख़ाली हैं। मोदी सरकार तीन साल से भर नहीं पाई है। तो ओबीसी को भी वाजिब हक़ नहीं मिल रहा है। ओबीसी नेता और अपने मंत्रिमंडल में ओबीसी मंत्रियों की गिनती कराने वाले नरेंद्र मोदी के राज में ओबीसी को भी नौकरी नहीं मिल रही है। वर्ना केवल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कई हज़ार ओबीसी और अनुसूचित जाति जनजाति के नौजवान लेक्चरर बन गए होते। कितना बड़ा सामाजिक बदलाव होता। इन पदों पर बहालियां होती हैं तो जनरल के नौजवानों को भी लाभ मिलता।

सभी को यह लाभ कैसे मिले, तरीका मैं बताता हूँ। प्राइम टाइम में जिस तरह की होर्डिंग बनाई है वैसी होर्डिंग बनाकर शहर-शहर में लगा दें कि ओबीसी से लेकर जनरल के इतने पद ख़ाली हैं। मोदी जी भरती कब होगी। छह महीने के भीतर भर्तियाँ होने लगेंगी।

उसके बाद आप लोग एक होर्डिंग मेरे नाम की लगा दीजिएगा। रवीश जी आभार। नौकरी मिल गई। मज़ाक कर रहा हूँ। लेकिन नौकरी का हक़ माँगने का यही तरीक़ा है।

बाकी आप वहीं करें जो आई टी सेल कहता है। आइये और कमेंट बाक्स में अनाप अनाप बकने का कार्यक्रम चालू कीजिए।

 

लेखक मशहूर टी.वी.पत्रकार हैं।

 

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