COVID-19 के दौरान घरेलू प्रवासी मज़दूरों के लिए सरकारों को संबोधित मांगपत्र

कोविड-19 महामारी की चुनौतियों के बीच रोज़गार की तलाश में गाँव से शहर की ओर जानेवाले प्रवासी मज़दूरों पर ज़्यादा बड़ा क़हर टूटा है। वैसे तो कई राज्य सरकारों ने राहत की घोषणा की है और वित्त मंत्री ने ग़रीब और प्रवासी लोगों के लिए आर्थिक पैकेज घोषित किया है, लेकिन 13.9 करोड़ कामगारों को नज़रंदाज़ किया जाना जारी है! जिन क़दमों की घोषणा की गई है उसके तहत उन लोगों को लाभ मिलेगा जिन्हें अभी तक विभिन्न कार्यक्रमों के तहत मिलता रहा है पर प्रवासी इनमें नहीं आते क्योंकि इनका इन कार्यक्रमों में पंजीकरण ही नहीं हो पाता। वजह यह है कि प्रवासियों के पास जिस शहर में वे काम कर रहे होते हैं, उस शहर का बाशिंदा होने का पहचान पत्र या कोई और दस्तावेज़ नहीं होता।   

इनमें से अधिकतर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और मुसलमान होते हैं जो समाज के हाशिए पर खड़े समूहों से आते हैं। प्रवासियों का यह वर्ग देश का सर्वाधिक ग़रीब और आर्थिक रूप से असुरक्षित वर्ग है। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और सामाजिक दूरी बनाए रखना इस महामारी को रोकने की केंद्रीय रणनीति का हिस्सा है। पर इस वजह से प्रवासी कामगारों को अपने रोज़गार और दैनिक मज़दूरी से हाथ धोना पड़ा है क्योंकि जहाँ वह काम कर रहे थे वह काम अब रुक गया है। यह कामगारों का ऐसा वर्ग है जो किसी एक नियोक्ता के पास काम नहीं करता कि ऐसे समय में वे बंदी के दौरान वेतन की माँग कर सकें। यहाँ तक कि जहाँ भी वह सालों से एक ही नियोक्ता के यहाँ काम कर रहे हैं, वहाँ भी उन नियोक्ताओं के साथ उनका औपचारिक रोज़गार क़रार नहीं होता जिससे कामगार के रूप में उनका दावा पुख़्ता हो।

मतलब यह कि ये लोग जिन राज्यों में काम करते हैं उन राज्यों की किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। पहचानपत्र उन्हें उस जगह का निवासी होने का प्रमाण देता है जो उनके पास नहीं होता और इस वजह से प्रवासी मज़दूर खाद्य, जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य सुविधा या आवास की सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते। उलटे, ये झुग्गी-झोपड़ियों, खुली जगहों जैसे सड़क के किनारे, रेल की पटरियों के किनारे या सार्वजनिक/निजी ज़मीनों पर अस्थायी झोपड़ी बनाकर और अनौपचारिक रूप से किराए पर उपलब्ध मकानों में रहने के लिए बाध्य होते हैं। ये स्थान अमूमन बहुत छोटे और स्वास्थ्य के लिहाज़ से रिहायश लायक़ नहीं होते। कई बार ये जिस निर्माण स्थल, फ़ैक्ट्री, दुकान या ढाबे में काम करते हैं वहीं रहते हैं।

पिछले कुछ दिनों से चूँकि वे प्रतिष्ठान जहाँ वे काम कर रहे थे, लॉकडाउन होने के कारण अब बंद हो गए हैं, इन प्रवासी कामगारों को काम से हटा दिया गया है, उनके बकाए का भुगतान नहीं किया गया और जिन शहरों में वे अटके पड़े हैं, वहाँ उनके पास अब कोई रोज़गार नहीं है। जिन घरों में वे रह रहे थे, मकान मालिकों ने उन्हें वहाँ से निकाल दिया है क्योंकि वे किराया चुका पाएँ इस बात की कोई संभावना नहीं है और जो अपने कार्यस्थल पर रह रहे थे उन्हें भी जगह छोड़कर चले जाने को कह दिया गया है। इस बात की आशंका है कि जिस खुली जगह में वे लोग रहे रहे हैं वहाँ से हटने को उन्हें कह दिया जाए। इसके अलावा ऐसी जगहों पर उन्हें बेवजह परेशान भी किया जाता है। न तो उनके पास राशन ख़रीदने के पैसे हैं, न रहने की कोई जगह है, अपने गाँव लौटने के सारे रास्ते बंद हैं क्योंकि परिवहन के सारे साधन बंद कर दिए गए हैं, ऐसी स्थिति में हज़ारों की संख्या में मज़दूर शहरों में भुखमरी का सामना कर रहे हैं। महामारी के समय में जहाँ उन्हें सुरक्षित स्थान पर होना चाहिए, वे अपने स्वास्थ्य पर सर्वाधिक गंभीर ख़तरे से जूझने के लिए अकेले छोड़ दिए गए हैं। अनेक शहरों में लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गाँव के लिए अपने छोटे बच्चों को कंधे पर उठाए भोजन और पानी की किसी भी तरह की व्यवस्था के बिना पैदल ही चल पड़े हैं। सीमा पर लगे पुलिस चौकियों पर उन्हें लंबी क़तारों में खड़ा होना पड़ रहा है जिससे उनमें संक्रमण का ख़तरा और बढ़ गया है और इससे लॉकडाउन का उद्देश्य पराजित होता दिख रहा है।

अगर वे किसी तरह अपने गाँव पहुँच भी जाते हैं, तो भी उनके पास पैसे नहीं होंगे क्योंकि वह काम बंद हो चुका है जिनसे उनकी आजीविका चलती थी। ऐसे में ये लोग ज़िंदा बचे रहने के लिए अपनी ज़रूरत का कोई सामान नहीं खरीद सकते। अपने गाँव में उनको पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलेगी। उलटे, वापसी पर उन्हें अपने गाँव के लोगों और पड़ोसियों से यह ताने सुनने होंगे कि वे गाँव में संक्रमण फैला सकते हैं। इन बातों की वजह से इन प्रवासियों को ख़ुद अपने गाँव में विरोध झेलना होगा और इस तरह ये काफ़ी बड़ी मुश्किलों में घिर गए हैं।

पहले से ही कुपोषण, टीबी, और अन्य बीमारियों को झेल रहा प्रवासी कामगारों का यह समूह बहुत ही भयानक स्थिति का सामना कर रहा है और इनकी इन मुश्किलों को तत्काल दूर किए जाने की ज़रूरत है। राज्यों और केंद्र सरकार की संस्थाओं को चाहिए कि वे इसके लिए सम्मिलित प्रयास करें।

आजीविका ब्यूरो और वर्किंग पीपल्ज़ चार्टर महामारी को देखते हुए प्रवासी मज़दूरों के सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन के लिए निम्नलिखित माँग रखती है –

जहाँ प्रवासी मज़दूर काम करते हैं उन शहरी और औद्योगिक क्षेत्र में उठाए जाने वाले क़दम:  

ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ से प्रवासी आते हैं वहाँ उठाए जानेवाले क़दम

केंद्र सरकार यह क़दम उठाए:

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