हिमाचल प्रदेश: पीएम मोदी के चेहरे पर भारी पड़ा प्रियंका गाँधी का करिश्मा

हिमाचल प्रदेश के नतीजे ने पीएम मोदी की अपराजेयता का ढोल बजा रहे गोदी मीडिया के लिए थोड़ी परेशानी तो खड़ी कर दी थी लेकिन उसने बेशर्मी से ये काम जारी रखा। हिमाचल प्रदेश और दिल्ली एमसीडी की हार के अलावा सात मेंं से पाँच उपचुनावों में हारने वाली बीजेपी के बारे में उसके पास केवल गुजरात की जीत की कहानी थी। हिमाचल को लेकर उसने तुरंत ये बताना शुरू कर दिया कि कांग्रेस जीत तो गयी है लेकिन मुख्यमंत्री चुनना मुश्किल हो जाएगा। पार्टी टूट भी सकती है।

लेकिन हिमाचल के एकजुट कांग्रेसजनों ने इसकी नौबत ही नहीं आने दी। 11 दिसंबर को शिमला के रिज मैदान में शपथग्रहण समारोह के दौरान पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गाँधी के अलावा प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह भी मौजूद थीं जिनके सहारे गुटबाजी की कथा गढ़ी जा रही थी। कांग्रेस ने हिमाचल की गाड़ी चलाने का ज़िम्मा उन सुखविंदर  सिंह सुक्खू नाम के ज़मीन से उठे कार्यकर्ता को सौंपी जिनके पिता कभी सचिवालय में गाड़ी चलाते थे। सुक्खू उन कांग्रेस नेताओं में हैं जिन्होंने कांग्रेस के छात्रसंगठन से होते हुए प्रदेश अध्यक्ष तक का सफ़र तय किया था। पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित सुखविंदर सिंह सुक्खू आम कार्यकर्ता के शिखर पर पहुँचने की कहानी हैं।

यह पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी की दृष्टि का भी नतीजा था जिनकी मेहनत और रणनीति को नहीं समझ सका। प्रियंका ने न सिर्फ़ इस ख़ूबसूरत राज्य के कांग्रेस जनों को एकजुट किया बल्कि पीएम मोदी के कथित जादू को भी हल्का साबित कर दिया जिनके नाम पर बीजेपी ने ‘ऑपरेशन रिपीट’ का ढिंढोरा पीटा था।

हिमाचल की जीत में कांग्रेस जनों की मेहनत के साथ-साथ प्रियंका गाँधी के करिश्मे का सर्वाधिक योगदान है।

जब हिमाचल में चुनाव प्रचार शुरू हुआ था तो मुक़ाबला बेहद कड़ा माना जा रहा था। वैसे तो हर पाँच साल में सरकार बदलने का हिमाचल प्रदेश में रिवाज है लेकिन दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अनुपस्थिति को कांग्रेस खेमा बेतरह महसूस कर रहा था। उधर, बीजेपी पीएम मोदी चेहरा सामने रखकर कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से लेकर राममंदिर तक का मुद्दा गरमाते हुए काफ़ी आक्रामक थी। इस माहौल में प्रियंका गाँधी ने कमान संभाली और हिमाचल प्रदेश के स्थानीय नेताओं के साथ जनता से जुड़े मुद्दों पर फ़ोकस किया जिसने बीजेपी को बैकफ़ुट पर डाल दिया। लोगों में पाँच साल बाद सत्ता पलट का ‘रिवाज’ बरक़रार रहने का भरोसा जगा। प्रियंका गाँधी के ‘हिमाचल-वासी’ होने की वजह से भी लोगों में उनके प्रति ख़ास गर्मजोशी देखी गयी।

हिमाचल प्रदेश में बीते पाँच साल का बीजेपी शासन नाकामियों की मिसाल था।  बीजेपी के प्रचार में ‘डबल इंजन सरकार’ के छलिया नारे के अलावा अपनी उपलब्धियाँ गिनाने के नाम पर कुछ नहीं था। उधर, प्रियंका गाँधी ने महिलाओं, नौजवानों, कर्मचारियों, पूर्व सैनिकों और बाग़वानों से जुड़े ठोस मुद्दों पर बात करना शुरू कर दिया। उन्होंने कांग्रेस सरकार बनने पर ‘दस गारंटी’ की घोषणा की जिन्होंने जनता के मन में कांग्रेस के पक्ष में घंटी बजा दी। प्रियंका की सभाओं में भीड़ लगातार बढ़ती गयी जो उनके प्रति बढ़ते भरोसे का सबूत थी।

प्रियंका गाँधी ने महिलाओं से सीधा संवाद किया और सरकार बनने पर उन्हें 1500 रुपये महीने भत्ता देने का ऐलान किया। पहाड़ के कठिन जीवन से जूझने वाली महिलाओं के लिए यह एक बड़ी सौग़ात थी जिस पर प्रियंका गाँधी के भरोसे की मुहर लगी थी। एक महिला नेता की ओर से किये गये इस वादे ने लाखों महिलाओं का दिल जीत लिया। उन्हें पता था कि डेढ़ हज़ार रुपये हर महीने मिलने पर उनकी जिंदगी की दुश्वारियों में काफ़ी कमी आ सकेगी।

इसके अलावा प्रियंका गाँधी ने ऐलान किया कि कांग्रेस सरकार बनने पर पहली ही कैबिनेट बैठक में एक लाख युवाओं को नौकरी देने और पुरानी पेंशन योजना की बहाली का फ़ैसला होगा। इन दोनों घोषणाओं ने ख़ासतौर पर पूरे राज्य की फ़िज़ा बदल दी। चूँकि कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दी है, इसलिए हिमाचल के सरकारी कर्मचारियों के पास इस गारंटी पर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं थी।

कांग्रेस की गारंटी में इसके अलावा पाँच साल में पाँच लाख युवाओं को रोज़गार देने, 300 यूनिट मुफ़्त बिजली, बाग़वानों को फसल रेट करने का अधिकार, बेरोज़गार युवाओं के लिए 680 करोड़ के स्टार्ट अप फंड, मोबाइल क्लीनिक और मुफ़्त इलाज, हर विधानसभा क्षेत्र में चार इंग्लिश मीडियम स्कूल, प्रति दिन पशुपालकों से 10 लीटर दूध और दो रुपये किलो की दर से गोबर ख़रीदने की बात शामिल थी जिसने समाज के हर वर्ग के बीच कांग्रेस को लोकप्रिय बना दिया। प्रियंका गाँधी के नाम ने इन गारंटियों पर भरोसा जमाने में ख़ास मदद की।

बीजेपी की ओर से पीएम मोदी और हिमाचल निवासी राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने पूरा ज़ोर लगाया लेकिन उनके पास इस बात का जवाब नहीं था कि ‘डबल इंजन’ सरकार होते हुए महँगाई, बेरोज़गारी या भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लगी। आम जनों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने की योजनाएं शिलान्यास तक ही क्यों सीमित रह गयीं?

प्रियंका गाँधी ने 14 अक्टूबर से 10 नवंबरके बीच सोलन, मंडी, नगरोटा, हरौली और शिलाई में पाँच रैलियाँ कीं जिनमें भारी भीड़ उमड़ी। जब प्रियंका गाँधी “परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली” में बीजेपी राज में हुए पीपीई किट, पुलिस भर्ती और शिक्षक भर्ती घोटाले का सवाल उठाती थीं जो जनता जमकर तालियाँ बजाती थी। यही नहीं, हिमाचल के नौजवान बड़ी तादाद सेना में जाने का ख़्वाब देखते हैं जो चार साल की सेवा वाली केंद्र की अग्निवीर योजना से आहत थे। प्रियंका गाँधी ने इसे भी आड़े हाथों लिया और दावा किया कि केंद्र में सरकार आने पर इस योजना को बंद किया जाएगा।  प्रियंका के इस तेवर को काफ़ी सराहा गया।

बीजेपी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि भीषण बेरोज़गारी के बावजूद खाली पड़े 63000 सरकारी पद भरे क्यों नहीं गये और प्रदेश पर 70 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ कैसे चढ़ गया जबकि विकास की गाड़ी डबल इंजन सरकार के दावे के बावजूद पटरी पर ही खड़ी रह गयी। बीजेपी की ओर से हर सवाल का जवाब था प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा, लेकिन हिमाचल की जनता ने इसकी जगह प्रियंका गाँधी के चेहरे पर भरोसा किया जिसकी वजह से रिवाज बरक़रार रहा और कांग्रेस सरकार बनाने में क़ामयाब हुई।

हिमाचल की राजधानी शिमला के रिज पर खड़ी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की आदमक़द प्रतिमा पर उनका यह बयान आज भी लिखा हुआ है कि ‘हिमाचल की शांति और सुंदरता देखकर मन करता है कि यहीं बस जाऊँ।’ प्रियंका गाँधी ने हिमाचल में घर बनाकर देश के लिए शहीद हुईं अपनी दादी का एक अधूरा सपना पूरा किया है। हिमाचल के लोगों ने प्रियंका को जब-जब देखा उन्हें इंदिरा गाँधी और हिमाचल से उनके रिश्ते की याद आई। प्रियंका गाँधी ने अपने भाषणों ने इस भावनात्मक रिश्ते को ख़ासी अहमियत भी दी और नतीजे बताते हैं कि इसने हिमाचल की जनता का दिल छू लिया।

इन नतीजों के आईने में पूरा भारत यह भी देख रहा है कि हिमाचल प्रदेश की ख़बूसूरत पर्वतशृंखलाओं के बीच राजनीति के आकाश में एक नये सूर्य का उदय हुआ है, जिसका नाम है- प्रियंका गाँधी।

 

 

 

 

 

First Published on:
Exit mobile version