30 अप्रैल: हिटलर मरता है जब ‘लाल सेना’ घुस कर मारती है!

जो लोग मार्क्सवाद और कम्युनिज्म को आए दिन अतार्किकों की तरह गालियां देते हैं और उनके प्रति घृणा का प्रचार करते हैं वे जान बूझकर कम्युनिस्टों की कुर्बानियों को छिपाते हैं।

आज के दिन को एकमात्र कम्युनिस्टों की शक्ति, विचारधारा और जनता की शक्ति के सहारे ही अर्जित किया जा सका। हिटलर और उसके सहयोगी अंतिम दम तक बर्लिन में संघर्ष कर रहे थे। हिटलर के बारे में कोई भी पूंजीवादी मुल्क यह सोच नहीं पा रहा था कि कभी हिटलर को उसके घर में घुसकर कोई मारेगा। लालसेना की शक्ति और स्टालिन के नेतृत्व का ही कमाल था कि हिटलर और उसकी सेना को उसके घर में घुसकर मारा गया। जर्मनी और सारी दुनिया को हिटलर की बर्बरता से आजाद किया। 28अप्रैल1945 को जब लालसेना बर्लिन में घुसी थी तो उस समय जर्मन सैनिक भयानक प्रतिरोध कर रहे थे, अनेक इलाकों में तो वे हाथापाई तक कर रहे थे।

बर्लिन की एक-एक गली और एक एक इमारत में जर्मन सैनिकों से लालसेना ने मोर्चा लिया और लालसेना ने एक-एक घर को जर्मन सैनिकों से मुक्त कराया। सेनाएं मोर्चों पर लड़ती हैं ,लेकिन जर्मनी में 28 अप्रैल से लालसेना बर्लिन की गलियों और घरों घुस-घुसकर जर्मन सैनिकों को मार रही थी और इसने हिटलर को गहरे अवसाद में डुबो दिया और अंत में उसने कायर की तरह आत्महत्या की और आज के दिन राइखस्टाग पर सार्जेंट म.अ.वेगोरोव और म.व.कतारिया ने विजय ध्वज फहराया। इन क्रांतिकारी सेनानियों का हम कृतज्ञता के साथ अभिनंदन करते हैं।

सोवियत सेनाओं के हिटलर को परास्त करके सारी दुनिया को अचम्भित ही नहीं किया साम्राज्याद की समूची मंशा को ही ध्वस्त कर दिया। कुछ तथ्य हमें हमेशा ध्यान रखने चाहिए। द्वितीय विश्व युद्ध 2हजार194 दिन यानी 6 वर्ष चला। उसकी चपेट में 61 राष्ट्र आए। जिनकी कुल आबादी 1 अरब 70 करोड़ थी। यानी विश्व की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा।

सामरिक कार्रवाइयां यूरोप, एशिया तथा अफ्रीका के 40 देशों के भूक्षेत्र में और अटलांटिक,उत्तरी,प्रशांत तथा हिंद महासागरों के व्यापक भागों में हुईं। कुल मिलाकर 11 करोड़ से अधिक लोगों को सेनाओं में भरती किया गया।

इस दौरान बेशुमार सैन्य सामग्री का उत्पादन किया गया। 1 सितम्बर 1939 से लेकर 1945 तक की अवधि के दौरान अकेले हिटलर विरोधी गठबंधन के सदस्य-देशों में 5 लाख 88हजार विमानों ( इनमें से 4 लाख 25 हजार नागरिक विमान थे), 2 लाख 36 हजार टैंकों, 14 लाख 76 हजार तोपों तथा 6 लाख 16 हजार मॉर्टरों का उत्पादन किया गया। इसी अवधि में जर्मनी ने कोई 1 लाख 9 हजार विमानों, 46 हजार टैंकों और एसॉल्ट गनों, 4 लाख 34 हजार से अधिक तोपों तथा मॉर्टरों तथा अन्य शस्त्रास्त्र का उत्पादन किया।

विश्वयुद्ध में सन् 1938 के दाम के अनुसार 260 अरब डालर की संपत्ति का नुकसान हुआ। 5करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए।सबसे ज्यादा क्षति सोवियत संघ की हुई। सोवियत संघ के 2 करोड़ से ज्यादा नागरिक मारे गए। एक हजार नगर और 70 हजार गांव नष्ट हुए। 32 हजार औद्योगिक उत्पादन केन्द्र नष्ट हुए। पोलैंड के 60 लाख,यूगोस्लाविया के 17 लाख, अमेरिका के 4 लाख,ब्रिटेन के 3 लाख 70 हजार,जर्मनी के 1 करोड़ 36 लाख आदमी मारे गए या बंदी बनाए गए। इसके अलावा यूरोप के सहयोगी राष्ट्रों के 16 लाख से अधिक लोग मारे गए।

आमतौर पर सेनाएं दुश्मन के शहरों पर कब्जे करती हैं, लूटमार करती हैं, औरतों के साथ बलात्कार करती हैं और विध्वंसलीला करती हैं। लेकिन बर्लिन को हिटलर से आजाद कराने के बाद सोवियत सेनाओं ने एक नयी मिसाल कायम की। उस समय बर्लिन शहर पूरी तरह तबाह हो गया था, आम बर्लिनवासी हिटलर के जुल्मो-सितम से पूरी तरह बर्बाद हो चुका था, लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था,दवाएं नहीं थीं,ऐसी अवस्था में सोवियत सैनिकों ने अपना राशन-पानी बर्लिन की आम जनता के बीच में बांटकर खाया। इसके अलावा बर्लिन शहर को संवारने और संभालने में मदद की।

सोवियत सरकार ने बर्लिनवासियों को 96हजार टन अनाज, 60हजार टन आलू, कोई 50 हजार मवेशी, और बड़ी मात्रा में चीनी, बसा और अन्य खाद्य सामग्रियां मुहैय्या करायी गयीं। महामारियों की रोकथाम के लिए तात्कालिक कदम उठाए गए और 96 अस्पताल (जिनमें 4 शिशु अस्पताल), 10 जच्चाघर,146 दवाईयों की दुकानें और 6 प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र खोले गए। सोवियत सैनिकों ने किसी भी नागरिक के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया। इस तरह सोवियत सेना ने सैन्य व्यवहार की आदर्श मिसाल कायम की। सोवियत सेना के इस व्यवहार की रोशनी में अमेरिका और नाटो सेनाओं के हाल ही में इराक और अफगानिस्तान में किए गए दुराचरण और अत्याचारों को देखें तो समाजवादी सेना और पूंजीवादी सेना के आचरण के अंतर को आसानी से समझा जा सकता है।

बर्लिन आपरेशन के दौरान सोवियत सेनाओं ने शत्रु की 70 इंफेंट्री 12टैंक और 11मोटराइज्ड डिविजनों को नष्ट किया। 16 अप्रैल से 7 मई के बीच शत्रु के 4लाख 80 हजार सैनिकों और अफसरों को युद्धबंदी बनाया और डेढ़ हजार से अधिक टैंकों, साढ़े 4 हजार विमानों और कोई 11 हजार तोपों और मॉर्टरों पर कब्जा किया। सोवियत लोगों को भी फासिस्ट जर्मनी पर इस अंतिम विजय की भारी कीमत चुकानी पड़ी। 18 अप्रैल से 8 मई 1945 के बीच दूसरे बेलोरूसी मोर्चों और पहले उक्रइनी मोर्चे पर 3लाख आदमी हताहत हुए। इसके विपरीत आंग्ल-अमरीकी फौजों ने पश्चिमी यूरोप में 1945 की सारी अवधि में केवल 2लाख 60 हजार आदमी गंवाये थे।

लालसेना के बर्लिन आपरेशन का सबसे मुख्य परिणाम था फासिस्ट जर्मनी का बिना शर्त आत्मसमर्पण और यूरोप से युद्ध का अंत।बर्लिन आपरेशन की सफल परिणति का अर्थ था हिटलरी “नयी व्यवस्था” का विध्वंस,गुलाम बनाए गए यूरोप के सभी राष्ट्रों की मुक्ति और नाजीवाद,फासीवाद से विश्व सभ्यता का उद्धार।

आज के दिन सोवियत कम्युनिस्टों, लाल सेना और सोवियत जनता की कुर्बानियों के कारण हिटलर को पराजित करने सफलता मिली। हिटलर और उसकी बर्बर सेना को परास्त करके कम्युनिस्टों ने दुनिया की महान सेवा की । आज के दिन का संदेश है कि कम्युनिस्ट विश्व मानवता के सच्चे सेवक और संरक्षक हैं।

 

जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे / बर्तोल ब्रेख्त

जर्मनी में
जब फासिस्ट मजबूत हो रहे थे
और यहां तक कि
मजदूर भी
बड़ी तादाद में
उनके साथ जा रहे थे
हमने सोचा
हमारे संघर्ष का तरीका गलत था
और हमारी पूरी बर्लिन में
लाल बर्लिन में
नाजी इतराते फिरते थे
चार-पांच की टुकड़ी में
हमारे साथियों की हत्या करते हुए
पर मृतकों में उनके लोग भी थे
और हमारे भी
इसलिए हमने कहा
पार्टी में साथियों से कहा
वे हमारे लोगों की जब हत्या कर रहे हैं
क्या हम इंतजार करते रहेंगे
हमारे साथ मिल कर संघर्ष करो
इस फासिस्ट विरोधी मोरचे में
हमें यही जवाब मिला
हम तो आपके साथ मिल कर लड़ते
पर हमारे नेता कहते हैं
इनके आतंक का जवाब लाल आतंक नहीं है
हर दिन
हमने कहा
हमारे अखबार हमें सावधान करते हैं
आतंकवाद की व्यक्तिगत कार्रवाइयों से
पर साथ-साथ यह भी कहते हैं
मोरचा बना कर ही
हम जीत सकते हैं
कामरेड, अपने दिमाग में यह बैठा लो
यह छोटा दुश्मन
जिसे साल दर साल
काम में लाया गया है
संघर्ष से तुम्हें बिलकुल अलग कर देने में
जल्दी ही उदरस्थ कर लेगा नाजियों को
फैक्टरियों और खैरातों की लाइन में
हमने देखा है मजदूरों को
जो लड़ने के लिए तैयार हैं
बर्लिन के पूर्वी जिले में
सोशल डेमोक्रेट जो अपने को लाल मोरचा कहते हैं
जो फासिस्ट विरोधी आंदोलन का बैज लगाते हैं
लड़ने के लिए तैयार रहते हैं
और शराबखाने की रातें बदले में मुंजार रहती हैं
और तब कोई नाजी गलियों में चलने की हिम्मत नहीं कर सकता
क्योंकि गलियां हमारी हैं
भले ही घर उनके हों

अंग्रेज़ी से अनुवाद : रामकृष्ण पांडेय

 

अज्ञात क्रांतिवीर का शिलालेख / बर्तोल ब्रेख्त

क्राँति का
अज्ञात वीर मारा गया
मैंने उसका शिलालेख
सपने में देखा
वह कीचड़ में पड़ा था
दो शिलांश थे
उन पर कुछ नहीं लिखा था
पर उनमें से एक कहने लगा-
जो यहां सोया है
वह दूसरे की धरती को
जीतने नहीं जा रहा था
वह जा रहा था
अपनी ही धरती को मुक्त करने
उसका नाम कोई नहीं जानता
पर इतिहास की पुस्तकों में
उनके नाम हैं
जिन्होंने उसे मिटा दिया
वह मनुष्य की तरह जीना चाहता था
इसीलिए एक जंगली जानवर की तरह
उसे जिबह कर दिया गया
उसने कुछ कहा था
फँसी-फँसी आवाज़ में
मरने से पहले
क्योंकि उसका गला रेता हुआ था
पर ठंडी हवाओं ने उन्हें चारों ओर फैला दिया
उन हज़ारों लोगों तक
जो ठंड से जकड़े हुए थे।

अंग्रेज़ी से अनुवाद : रामकृष्ण पांडेय

 

(प्रो.जगदीश्वर चतुर्वेदी प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ और कलकत्ता विश्विवद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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