राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के देवी प्रसाद त्रिपाठी (डीपीटी) की गणना विद्वान सासंदों में होती है। वे जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं और इमरजेंसी के दौरान उन्होंने 14 महीने की जेल भी काटी थी। लेकिन, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में हुई बहस के दौरान सरकारी पक्ष की ओर से इमरजेंसी की बात बार-बार उठाये जाने पर वे बिफर गए और 5 फऱवरी को अपने संबोधन में उन्होंने आरोप लगाया कि शाह कमीशन में दोषी सिद्ध हुए दो लोगों को बीजेपी ने मंत्री बनाकर इमरजेंसी विरोधी शानदार संघर्ष को अपमानित किया है। डीपीटी ने नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका इशारा साफ़तौर पर मौजूदा कैबिनेट मंत्री मेनका गाँधी अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में मंत्री रहे जगमोहन की ओर था। वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र दुबे उर्फ़ भाऊ ने डीपीटी के भाषण को लेकर फे़सबुक पर यह टिप्पणी लिखी है–संपादक
मेरा भी मानना है कि योगी वह है जो समस्त भौतिक जगत ऐश्वर्य , पद और भोग का त्याग करता है । आध्यात्म की अज्ञात और एकांत की ओर एक बड़ी छलांग है, योग । जब मन की गतिविधि समाप्त हो जाती है तब योग का जन्म या प्रादुर्भाव होता है ।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान राज्यसभा में सांसद डीपी त्रिपाठी ने अपने पांडित्यपूर्ण वक्तव्य में कहा — हू इज योगी. हू रीनाउंसेस आल द मैटीरियल लाइफ इज योगी । भारतीय जनता पार्टी अपने राजनीतिक फैसलों में संस्कृति सभ्यता और यहां तक कि हिंदुत्व के सभी आधारभूत मूल्यों के खिलाफ जा रही है। यह अभिनव प्रयोग है कि एक मठ के प्रधान को राजपाट दे दिया गया , मुख्यमंत्री बना दिया गया। स्वामी विवेकानन्द से लेकर महात्मा गांधी तक ने किसी ने राजपाट की चिंता नहीं की ।
उन्होंने इशारों में (अमित शाह की ओर) कहा — आपने तो ‘ हिरोइक एन्टी इमरजेंसी स्ट्रगल को ह्यूमिलिएट’ किया है । यह मैं आत्म प्रशंसा में नहीं कह रहा कि आपातकाल के दौरान मैं चार माह भूमिगत और 14 माह जेल में रहा हूं । तत्कालीन जनता पार्टी द्वारा गठित शाह कमीशन से दोषसिद्ध दो लोगों को तो आपने मंत्री बनाया । इसलिए मैं कह रहा हूं कि आपात काल के खिलाफ नेतृत्वकारी संघर्ष को हतोत्साहित तो आपने किया ।
त्रिपाठी जी ने 1952 का राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का भाषणभी उद् धृत किया जिसमें ‘ विजन ऑफ न्यू इंडिया’ , भारत का लोकतांत्रिक गन्तव्य , हाई डेस्टिनी ऑफ इंडिया, उसका मुस्तकबिल और 6 पैराग्राफ में विदेश नीति का भी रेखांकन था । उन्होंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय 1998 के राष्ट्रपति के अभिभाषण का उल्लेख किया । जिसमें कहा गया था कि सेक्युलरिज्म , भारत की सुदीर्ध परम्परा की आंतरिक संरचना – सज्जा और प्राण ऊर्जा है ( सेक्युलरिज्म इज इंटीग्रल टू इंडियन ट्रेडिशन )। कहा — लेकिन आपलोगों ने उनसे भी सीख नहीं ली । यह राष्ट्रपति का अबतक का सबसे खराब संबोधन है जिसमें अटल जी के शब्दों में कहूं तो ‘ स्माइल ‘ नहीं है । लोकमन, आकांक्षा और सपनों का भी जिक्र नहीं । जनतंत्र की परिभाषा अगर दो शब्दों में की जाये तो यह साधारण की असाधारणता है । राष्ट्रपति की स्पीच में तो यह जनता सिरे से अनुपस्थित है । अगर इसमें साम्प्रदायिक सदभाव का जिक्र नहीं है तो कोई आश्चर्य नहीं ।
सुविज्ञ दुबे जनेवि में , सांसद डीपी त्रिपाठी को सुनते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र होने का गर्व जरूर ज्वार बन गया होगा । उसके जैसे हजारों में जो उन्हें , अपना गुरु मानते हैं । उन्हें गुरु तो दिल्ली में रह रहे मेरी बुआ के बेटे , राजनीतिक विश्लेषक अनिल उपाध्याय और मेरे पुत्र देवेश देव तक मानने लगे हैं । किसी फिरके से हो , धर्म की निहायत गलत व्याख्या और आपराधिक दक्षता से उसके इस्तेमाल से दुखी युवा पीढ़ी में डीपी त्रिपाठी जैसे राजनीतिज्ञ एक आश्वस्ति हैं ।
त्रिपाठी जी का यह सवाल तो अब सबका है —
तरक्की का यह आपका कौन सा मॉडल है जिससे हैपिनेस इंडेक्स में भारत , पाकिस्तान , भूटान और नेपाल से भी पीछे है ।
उन्होंने कहा — यह शर्मनाक स्थिति है ।
डीपीटी का यह भाषण यहाँ सुन सकते हैं–