संसद में मर्यादा और माफ़ी!

अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में राष्ट्रपत्नी शब्द चाहे सायास कहा हो या अनायास, आपत्तिजनक था। विवाद होना था। विवाद हुआ। उन्होंने इसे, अपने गैर हिंदी भाषी होने के कारण हुई चूक बताई और माफी मांग ली। भाषाई मर्यादा, चाहे वह प्रथम नागरिक के लिए हो या अंतिम व्यक्ति के लिए, बनी रहनी चाहिए। लेकिन इसे लेकर लोकसभा में जो विवाद और अशोभनीय दृश्य उपस्थित हुआ, उसके लिए किसे माफी मांगने के लिए कहा जाएगा और कौन माफी मांगेगा ? फिलहाल, अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति जी को एक पत्र लिख कर, उनसे लिखित माफी मांग ली है। यह प्रकरण अब समाप्त है, पर इस प्रकरण ने कुछ और नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

गलती, कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी की थी, पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इस विवाद को, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर मोड़ दिया। यह सत्ता और विपक्ष का सनातन विवाद रहता है। सत्ता हो या विपक्ष, कोई भी अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ, हमला या उसे असहज करने का कोई भी, मौका छोड़ना नहीं चाहता है, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था की इस रीति के कारण, यह भी कोई असामान्य बात नहीं है। अब आते हैं, मर्यादा के सवाल पर, जिसे अपनी अपनी सुविधा से हम सब, उठाते रहते हैं।

लोकसभा के भीतर, जो कार्यवाही टीवी पर दिख रही है उसमे स्मृति ईरानी बेहद आक्रामक अंदाज में सोनिया गांधी से माफी मांगने की बार बार बात कर रही हैं। वे अधीर रंजन चौधरी के बजाय, उनका जोर, सोनिया गांधी से माफी मांगने पर है। जबकि अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल, अधीर रंजन चौधरी ने किया था। और उस पूरे हंगामे के बीच, लोकसभा के स्पीकर, की मुद्रा ऐसी थी कि, वे समझ नहीं पा रहे थे, कि क्या करें और क्या कहें। अंत में उन्होंने सदन को स्थगित कर दिया और आसन से उठ कर चले गए।

तृणमूल कांग्रेस सांसद, महुआ मोइत्रा, जो इस घटना की चश्मदीद थीं ने कहा कि, “सदन से बाहर आते ही भाजपा के सांसद सोनिया गांधी पर लकड़बग्घों की तरह टूट पड़े और चिल्लान लगे। ऐसे में 75 साल की एक मास्क लगाए हुए महिला भला एक से कैसे भिड़ सकती है। एनसीपी की सुप्रिया सुले और मैं बाहर निकली। वहां कोई कांग्रेस का सांसद नहीं था। मैंने देखा कि सोनिया गांधी रमा देवी की तरफ जा रही हैं। वह पूरे समय मास्क पहने हुई थीं। वह रमा देवी से कुछ बात करने लगीं। स्मृति ईरानी रमा देवी के पीछे खड़ी थीं। वो उंगली उठाकर सोनिया गांधी से कुछ कहने लगीं। इसके बाद सभी भाजपा सांसद आ गए और सोनिया गांधी को घेर लिया। तभी अधीर रंजन भी आ गए और उन्होंने कहा कि जो भी बात करनी है उनसे करें। जिस तरह से भाजपा के सांसद चिल्ला रहे थे, पहले कभी ऐसा नहीं देखा। मैं उन्हें बाहर ले जाना चाहती थी लेकिन वह कह रही थीं कि मैं डरती नहीं हूं।”

इस घटना के बारे में, कांग्रेस ने दावा किया कि, “सोमवार को लोकसभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी समेत भारतीय जनता पार्टी के कई सांसदों एवं मंत्रियों ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ अमर्यादित और अपमानजनक व्यवहार किया तथा ऐसी स्थिति पैदा कर दी गई थी कि उन्हें (सोनिया को) चोट भी पहुंच सकती थी। अपनी मंत्री और नेताओं के इस व्यवहार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माफी मांगनी चाहिए।”

इस मामले में, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “आज लोकसभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अमर्यादित और अपमानजनक व्यवहार किया! लेकिन क्या लोकसभा अध्यक्ष इसकी निंदा करेंगे? क्या नियम सिर्फ विपक्ष के लिए होते हैं? राज्यसभा में कुछ भी हो रहा है। वित्त मंत्री को शून्यकाल में बोलने की इजाजत मिली। फिर सदन के नेता को प्रश्नकाल में अपना पक्ष रखने दिया गया। सभापति को स्वतंत्र होना चाहिए लेकिन अफसोस…… मैंने सुझाव दिया कि सभी विपक्षी सांसदों को निलंबित कर देना चाहिए जैसे गुजरात विधानसभा में होता था।”

लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा, “अधीर रंजन चौधरी पहले ही माफी मांग चुके हैं। अगर वे (भाजपा सदस्य) हमसे अपेक्षा करते हैं कि महिला नेत्री और राष्ट्रपति का सम्मान करें तो उन्होंने ऐसा व्यवहार क्यों नहीं दिखाया?”

ऊपर इस घटना के बारे में विभिन्न प्रतिक्रियाएं हैं, जो अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में लगातार छप रही हैं और लोग उस पर टीका टिप्पणी कर रहे हैं।

सदन की एक परंपरा होती है। लोकसभा हो या राज्यसभा, दोनों में पीठ यानी स्पीकर या सभापति का स्थान सर्वोच्च होता है। न केवल प्रोटोकॉल में बल्कि, सदन के अंदर हो रहे पूरे क्रिया कलाप में भी। स्मृति ईरानी द्वारा माफी मांगने की बात करना अनुचित न भी हो, तो भी वह सदन की सामान्य कार्यवाही और सदन के आचरण के विपरीत है। सदन में हर सदस्य, स्पीकर को संबोधित करके अपनी बात कहता है। पर यहां स्पीकर को संबोधित करके कुछ भी नहीं कहा जा रहा है।

इस पर यह कहा जा सकता है कि, क्या यह पहला हंगामा है ? तो इसका उत्तर होगा ना। न तो यह पहला हंगामा हैं और न ही अंतिम। लेकिन उस तरह का अजीबोगरीब हंगामा जरूर है, जिसमे इतने शोरगुल के बाद भी स्पीकर, स्मृति ईरानी को टोकते नजर नहीं आए। स्पीकर की यह कोई मजबूरी थी या वे इस हंगामे से किंकर्तव्यविमुढ हो गए थे, यह तो वही जानें। पर वे मूक दर्शक जरूर बने हुए दिखते रहे।

अब सवाल उठता है, स्मृति ईरानी किससे माफी मांगने की बात कह रही थीं ? गरीब आदिवासी राष्ट्रपति महोदया से या किसी और से? स्मृति ईरानी सरकार में हैं और यह सरकार, राष्ट्रपति की ही सरकार है क्योंकि सदन में राष्ट्रपति द्वारा इसे ‘मेरी सरकार’ कह कर संबोधित किए जाने की परंपरा है। और राष्ट्रपति का अपमान हुआ है तो, उसका उपचार माफी तो नहीं होनी चाहिए। सरकार की एक मंत्री होने के नाते स्मृति ईरानी को, अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव या जो, भी दंड संसदीय नियमों में संभव हो, उसका प्रस्ताव, सदन में, अध्यक्ष की अनुमति से रखना चाहिए और फिर सदन या अध्यक्ष जो भी निर्णय लेते वह देखा जाता। लेकिन ऐसे प्रस्ताव से वह हंगामा और न्यूज वैल्यू नहीं उपजती, जो उनके इस नाटकीय अंदाज से उपजी है। यह अलग बात है कि, उनके इस कृत्य पर उनके दल के ही लोगों ने सिवाय सदन में कोरस नारे के, उनसे दूरी बना ली।

स्मृति ईरानी की भाव भंगिमा, वाणी, स्वर और क्रोध का कारण, केवल अधीर रंजन चौधरी द्वारा कहा गया शब्द नहीं हो सकता है। वे माफी मांगने की बात, सोनिया गांधी से कर रही थीं, क्योंकि अधीर, कांग्रेस के लोकसभा सदस्य हैं और सोनिया पार्टी प्रेसिडेंट हैं। स्मृति ईरानी द्वारा लोक सभा के अध्यक्ष को, यह बताना चाहिए था कि, वे सोनिया गांधी से माफी मांगने पर जोर क्यों दे रही हैं। अध्यक्ष को भी बजाय, निरूपाय दिखने के मंत्री स्मृति ईरानी से यह पूछना चाहिए था और उन्हें, मंत्री को टोकना चाहिए था कि, वे, बार बार हंगामा क्यों कर रही थी।

‘सदन सुचारू रूप से चले, यह सरकार की जिम्मेदारी है।’ यह वाक्य मेरा नहीं है, बल्कि इसे कहा है देश की बेहतरीन सांसद और बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने। सुषमा जी तब विपक्ष में थी। और विपक्ष में रहने के नाते वे विपक्ष का धर्म निभाते हुए सदन में अपनी बात कहती थी। संसद तब भी यूंही स्थगित होती थी, हंगामे तब भी होते थे, इस्तीफे तब भी मांगे जाते थे, सांसद तब भी, सदन के वेल में उतरते थे, वे वॉक आउट तब भी किया करते थे, पर इन हंगामों पर थोक भाव में विपक्ष को, सदन से निलंबित नहीं किया जाता था। इक्का दुक्का उदाहरण है, पर सदन से विपक्ष को निलंबित कर, उनका संख्याबल कम कर के, मनमर्जी से कोई कानून पारित नहीं कराया जाता था।

याद कीजिए, रविवार के एक दिन, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने सारी संसदीय मर्यादाओं को ताक पर रख कर, तीनों कृषि कानून इस तरह पास कराया, जैसे उन्होंने, इसे पारित कराने का ठेका लिया हुआ था। वोटिंग कराने की मांग के बावजूद भी, ध्वनि मत से उन कानूनों को पास, घोषित कर दिया। मिशन पूरा हुआ, मेरे आका, बिलकुल इसी मुद्रा में। लेकिन सरकार तमाम तिकड़मों के बाद भी उस कानून को वापस लेने पर मजबूर हुई। सरकार ने जब यह कानून पारित किया, तब भी यह नहीं बताया कि यह कानून क्यों लाया जा रहा है और जब इन कानूनों को वापस लिया तब भी यह नहीं बताया गया कि, इन कानूनों को क्यों वापस लिया जा रहा है। जिस ध्वनिमत से वे, पास घोषित हुए थे उसी ध्वनि से वे रद्द हो गए। प्रधानमंत्री, इस कानून की बारीकी, देश और जनता को समझा नहीं सके, क्योंकि उनकी तपस्या में कुछ कमी रह गई थी। पर आज तक यह नहीं पता चला कि, आखिर वे तपस्या, हो किसके लिए रही थी।

स्मृति ईरानी एक मंत्री है और वे पीठ के दाहिने तरफ बैठती हैं, जिसे ट्रेजरी बेंच कहते हैं यानी वे सब जिम्मेदार लोग हैं, अतः उनसे जिम्मेदारी पूर्ण आचरण की अपेक्षा है। पर जिस तरह से वे क्रोधातुर, दिख रही थीं, उनमें उस जिम्मेदारी का अभाव है। वे गांधी परिवार की पुरानी विरोधी हैं और प्रतिद्वंदी भी हैं। राजनीति में विरोधी और प्रतिद्वंद्वी होना अनुचित भी नहीं है। पर जब बात सदन में हो रही हो, और सवाल मर्यादा भंग और अपमान से जुड़ा हो तो, उस बहस में इस तरह का आचरण शोभनीय तो नहीं ही, कहा जा सकता है।

स्मृति ईरानी का विवादों से, पुराना नाता रहा है। सिली सोल्स रेस्टोरेंट एंड बार के विवाद के पहले, उनकी डिग्री पर जब विवाद हुआ तो उन्होंने, येल यूनिवर्सिटी में, पंद्रह दिन के किसी कोर्स में मिले सर्टिफिकेट को ही, ‘मेरे पास येल यूनिवर्सिटी की डिग्री’ बता दिया। जब वे केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री बनी तो शिक्षा जगत के विद्वानों और केंद्रीय यूनिवर्सिटी के कुलपतियों के साथ उनका क्या व्यवहार रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। जब वे टेक्सटाइल मंत्री बनी तो उन पर जबरन साड़ी खरीदने और उसका भुगतान न करने का मामला भी उछला था। इसी दौरान फेब इंडिया के एक शोरूम में निरीक्षण के दौरान, ट्रायल रूम में पोशीदा कैमरे का मामला उठा था। अमेठी में नगरी नगरी, द्वारे द्वारे घूमते हुए, राहुल गांधी के बारे में लगातार होने वाली उनकी तफ्तीश किसी से छुपी नहीं है। और अब यह एक ताजा विवाद है।

एक किस्सा और पढ़ लें। स्मृति ईरानी एक बार नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग को लेकर अनशन पर बैठने वाली थी। 2004 में गोधरा मसले पर यूसी बनर्जी कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी पर आक्षेप था। तब दिल्ली से, लोकसभा चुनाव हार चुकीं स्मृति ईरानी ने नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग की और अनशन पर बैठी थीं। तब, संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। प्रमोद महाजन ने तत्काल मुंबई में विनोद तावड़े से बात की और पार्टी की ओर से कड़ी काररवाई की संभावना बढ़ गई तो देर शाम तक ईरानी ने क्षमा माँगते हुए अपनी मांग और कार्यक्रम वापस ले लिया। यह कार्यक्रम उन्होंने विजय गोयल के उकसाने पर किया था।

कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर ओम बिरला से सदन में मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा की गई टिप्पणी को हटाने की अपील की है। उन्होंने आरोप लगाया गया है कि जिस तरह से भाजपा सांसद ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का नाम लिया है, वह उनके पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। लोकसभा अध्यक्ष को लिखे एक पत्र में अधीर रंजन ने कहा कि “ईरानी सदन में अपने संबोधन के दौरान राष्ट्रपति मुर्मू का नाम “चिल्ला रही थीं”। उन्होंने इस दौरान ना तो मैडम और ना ही श्रीमती शब्द का इस्तेमाल किया। मैं यह भी बताना चाहूंगा कि स्मृति ईरानी जिस तरह सदन में माननीय राष्ट्रपति महोदया का नाम ले रही थीं, वह उचित नहीं था। माननीय राष्ट्रपति के पद के अनुरूप नहीं था। बिना माननीय राष्ट्रपति या मैडम या शब्द का इस्तेमाल किए वह बार-बार ‘द्रौपदी मुर्मू’ चिल्ला रही थीं।”

होगा इस पर भी कुछ नहीं, सिवाय इसके कि कुछ जरूरी मुद्दे बहस के इंतजार में पड़े रहेंगे और, इस तरह के फालतू मुद्दे सड़क से लेकर संसद तक सुर्खियों में छाए रहेंगे। इस पूरे प्रकरण में, स्मृति ईरानी का उध्देश नारी सम्मान, गरीब और आदिवासी अस्मिता का मुद्दा है ही नहीं, मुद्दा है राजनीतिक विरोध और खीज का। यदि गोवा के सिली सोल्स रेस्टोरेंट और बार का विवाद न उठा होता तो, यह मुद्दा भी उतनी जिद और तमाशे के साथ नहीं उठाया जाता। इन्ही आठ सालों में महिला उत्पीड़न, बलात्कार, आदि के उन मामलों में, जिनमे, बीजेपी के नेता शामिल रहे हैं, न तो स्मृति ईरानी आक्रामक हुई और न ही किसी से माफी मांगने के लिए कहा गया। वे ऐसे मामलों में स्मृति भंग की शिकार हो गईं।

बीजेपी सरकार की उपलब्धियों की बात की जाय तो, आर्थिकी से लेकर लोकतांत्रिक अधिकारों तक मोदी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद दयनीय है। सरकार की सारी ऊर्जा सरकार गिराने और अपनी सरकार बनाने के लिए है। इन्होंने निर्लज्जता के साथ इस योजना का नाम भी रखा है, ऑपरेशन लोटस। इस तोड़फोड़ में आज जो सबसे अधिक और बेहद शर्मनाक तरह से सरकार का बगलगीर है वह है ईडी यानी इंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट। ऐसी स्थिति में जब महंगाई, बेरोजगारी, वादाखिलाफी, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य, जांच एजेंसियों के खुले दुरुपयोग सहित तमाम मामले सामने दिख रहे हैं, और जिनपर सरकार के पास कुछ बोलने के लिए है भी नहीं तो, ऐसे मूर्खतापूर्ण विवाद, जो अंततः सरकार को ही, किसी न किसी तरह से लाभ पहुंचाते हैं, उठाने की जरूरत नहीं है। संसद अब आवारा हो चुकी है, अब सड़कों का और अधिक सूना रहना, देश समाज और लोकतंत्र के लिए घातक होगा।

विजय शंकर सिंह भारतीय पुलिस सेवा के अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं।

 

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