पहला पन्ना: चिताएँ जल रही हैं, मगर पीएम मोदी की रैलियाँ होंगी !!

आज खबर होनी थी पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए होने वाली रैलियों की। क्या बाकी के चरण के लिए चुनाव प्रचार नहीं होंगे? क्या रैलियां नहीं होंगी। कल की खबरों से यह सवाल उठा था और आज इसका जवाब मिलना चाहिए था। पर कल जब मुझे पता चला कि अब सबको टीका सबको लगाने की अनुमतिदे दी गई है तो समझ में आ गया कि रैली पर कोई फैसला नहीं हुआ है। रैली पर कांग्रेस और तृणमूल का फैसला कल ही छप चुका था। भाजपा के फैसले का इंतजार था पर वह टीके की खबर के रूप में आया। सरकार ने सबसे कठिन प्रश्न हल कर दिया है। बाकी फैसले (शायद) राज्य सरकारों को करना है। दिल्ली सरकार ने एक हफ्ते का लॉकडाउन लगा दिया है। लेकिन एनसीआर की कोई सूचना दिल्ली के चार अखबारों की इस खबर में नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगाने की इजाजत देकर सरकार ने अखबारों को बड़ी खबर दे दी है और इससे कई छोटी-मोटी खबरें छूट गई या पहले पन्ने पर जगह नहीं बना पाईं। 

ऐसा सिर्फ मैं नहीं कह रहा हूं, द टेलीग्राफ ने इसपर बाकायदा खबर की है और इसी को लीड बनाया है। बाकी अखबारों की स्थिति की आप कल्पना कर सकते हैं। टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक है, “कृतघ्नता के दिन सभी वयस्कों के लिए टीके की चाल।” इसमें सबकुछ है। हो सकता है आपको कड़वा लगे लेकिन जब कोई कुछ बता ही नहीं रहा है तो जो बताएगा वह कड़वा तो होगा। द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर खबर दी है कि भाजपा के स्टार प्रचारक और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बंगाल रैली होगी पर संकेत दिया है कि कार्यक्रम दो की बजाय एक दिन में होंगे और कोशिश की जाएगी कि रैली में 500-1000 लोग ही हों। अखबार ने बताया कि भाजपा ने यह निर्णय ममता बनर्जी के बाद लिया। ममता भी कलकत्ता में अपनी रैलियां कम करेंगी और कोलकाता की एक ही रैली में ज्यादा देर नहीं बोलेंगी। यानी चिताएं जलती रहेंगी, रैलियां होती रहेंगी, खबरें भी नहीं छपेंगी।   

देश में कोरोना के कारण स्थिति काफी खराब है लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से ताली-थाली बजवाने या लॉकडाउन जैसा कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम अभी तक नहीं हुआ है। सरकार बंगाल चुनाव में व्यस्त है और कोविड से मौत के आंकड़े कम करके बताने के आरोप भी अखबारों में हैं। लेकिन इनकी पुष्टि या खंडन की बजाय केंद्र सरकार का व्यवहार ऐसा है जैसे यह सब राज्य सरकारों को करना है और इस मामले में डबल इंजन वाली सरकारें भी अलग छोड़ दी गई लगती हैं। दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन का निर्णय लिया तो इंडियन एक्सप्रेस की खबर का शीर्षक है, “24 घंटे में 240 मौतों के बाद दिल्ली सरकार ने हफ्ते भर के लॉकडाउन की घोषणा की।” इंडियन एक्सप्रेस में ही एक खबर है, “व्यवस्था चरमरा गई है, हाईकोर्ट ने 5 जिलों में लॉकडाउन का आदेश दिया लेकिन उत्तर प्रदेश ने मना कर दिया। आपको यह खबर अपने अखबार में दिखी? इससे आप समझ सकते हैं कि कोरोना नियंत्रण की स्थिति क्या है। दूसरी ओर, दिल्ली में लॉकडाउन की खबर के साथ केंद्र सरकार की टीके की खबर है। यूपी वाली खबर तो नाम मात्र की छपी है जबकि मामला कितना गंभीर है आप समझ सकते हैं।  

इंडियन एक्सप्रेस में बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री की रैलियों से संबंधित खबर का शीर्षक है, “आखिरकार, भाजपा ने बंगाल में कटौती की : अब बड़ी रैली करना खतरनाक है”। कहने की जरूरत नहीं है कि इस शीर्षक का मतलब हुआ, रैली तो होगी पर कम लोग आए तो समझना हमने बुलाया ही नहीं वरना हमारी रैली तो …..। आप जानते हैं कि केंद्र सरकार ने पिछली बार ताली थाली बजवाने के साथ-साथ बत्ती बुझाकर दीया जलवाने का भी कार्यक्रम रखा था। इस बार मामला बिल्कुल अलग लग रहा है। ऐसे में आपको यह नहीं लगे कि सरकार चुनाव में व्यस्त है। इसलिए सरकार ने कल इतना बड़ा फैसला किया जो आज कई अखबारों में लीड है। यह अलग बात है कि जो फैसला लेना था वह नहीं लिया। यह ना कोई बताएगा ना ज्यादातर लोग समझेंगे। यही है सरकार की रणनीति या योग्यता। इस मामले में यह महत्वपूर्ण है कि सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा तो टल गई लेकिन प्रायोगिक परीक्षाओं के संबंध में कोई निर्णय नहीं है। नतीजतन स्कूल, प्रशासन, छात्र अभिभावक सब परेशान हैं। पर निर्णय कौन ले और ले तो कैसे। क्या पता कब कौन बदल दे या निर्णय लेने वाला ही फंस जाए। पहले ऐसे मामले संपादक के नाम पत्र से सुलझ जाते थे पर अब सब कुछ टलता रहता है।     

दूसरी ओर, केंद्र सरकार कभी गलत नहीं होती। अखबारों में तो बिल्कुल नहीं। राहुल गांधी ने टीकों पर सलाह दी तो पहले उनका मजाक उड़ाया गया फिर पूरी सलाह मान ली गई। सरकार गलत थी यह किसी ने नहीं कहा ना बताया। मनमोहन सिंह ने सलाह दी तो राजनीतिक ज्ञान देने के लिए हर्षवर्धन को लगा दिया गया और उन्होंने अपना काम बखूबी निभा भी दिया। कभी बाबा रामदेव के प्रचारक कभी सरकार के प्रवक्ता। दरअसल राहुल गांधी वाले मामले में रविशंकर प्रसाद की किरकिरी कुछ ज्यादा हो गई। इसलिए नया प्रचारक ढूंढ़ा गया है। ये सब खबरें अखबारों में नहीं होतीं। आज के अखबारों में टीके की खबर से दिल्ली में लॉकडाउन की खबर का महत्व जैसे कम किया गया है वह अपने आप में उदाहरण है। वरना प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का जवाब कोई मंत्री दे – ऐसा होता नहीं है और इसीलिए हुआ होगा कि अखबारों में कुछ जगह घेरे पर बाद में यह उतना दमदार नहीं लगा तो दूसरी बड़ी खबर जारी हुई।  

 

 

हिन्दुस्तान टाइम्स ने दोनों को बराबर महत्व दिया है और टाइम्स ऑफ इंडिया ने बराबर में छापा है। और इंडियन एक्सप्रेस का खेल स्पष्ट है। हिन्दू में यह दो कॉलम की खबर रह गई। उसे भी, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसे नहीं मानने की खबर के साथ मिलाकर छापा गया है। सिर्फ टेलीग्राफ ने पूरे मामले को स्पष्ट किया है। यही नहीं, द टेलीग्राफ ने यह भी बताया है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मास्क नहीं लगाते हैं। आपने सुना होगा कि दिल्ली की एक दंपत्ति ने कार में मास्क नहीं लगाने के लिए रोके जाने पर काफी हंगामा किया था। इसका वीडियो भी वायरल हुआ था। आज के अखबारों में उस दंपत्ति को जेल भेज दिए जाने की खबर है। अखबार आम आदमी को जेल भेजे जाने की खबर तो छाप देते हैं पर यह नहीं पूछते कि गृहमंत्री मास्क क्यों नहीं लगाते हैं। पुलिस तो उनके मातहत ही है वह क्या पूछेगी जब मीडिया की हिम्मत नहीं हो। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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