पहला पन्ना: सरकार के दावों का प्रचार करेंगे, कारनामे नहीं छपेंगे!

विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में गुरुवार को मतदान है। इसके लिए मंगलवार को चुनाव प्रचार का अंतिम दिन था। आप जानते हैं कि भाजपा इन राज्यों में दमखम के साथ चुनाव लड़ रही है और खबरें दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर भी छप रही हैं। इन खबरों के लिए दिल्ली की खबरों को छोड़ दिया जा रहा है या अंदर के पन्नों पर चली जा रही हैं। ऐसे में आज का अखबार बंगाल और केरल के चुनाव प्रचार से भरा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनाव क्षेत्र नंदीग्राम में थे तो प्रधानमंत्री केरल में।

ऐसे में हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने के अधपन्ने पर दो खबरें छापी हैं, “शाह, दीदी ने नंदीग्राम की लड़ाई में निशाना साधा” और इसके नीचे दूसरी खबर है, “दक्षिण में अभियान तेज हुआ तो मोदी ने वामपंथियों, कांग्रेस और डीएमके पर निशाना साधा”। इन दो खबरों के बीच इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इस खबर में बताया गया है कि कर्नाटक के मशहूर सेक्स सीडी कांड के हीरो और भाजपा नेता तथा पूर्व मंत्री रमेश जरकीहोली की गिरफ्तारी अब करीब लगती है। दरअसल महिला ने अब अदालत में अपना बयान दर्ज कराया है।

अगर आप इसे (भाजपा के) एक मंत्री के खिलाफ आरोप या सेक्स कांड या सीडी कांड के रूप में देखें तो आपको यह मामला आम लग सकता है और आप कह सकते हैं कि ऐसे कई मामले हुए हैं। इसमें क्या खास होगा। इसमें पहली खासियत यही है कि यह चुनाव के समय हो रहा है और भाजपा के नेता जब देश भर में घूम-घूम कर बड़े दावे कर रहे हैं तो यह उनकी सरकार और उनके लोगों का सच है या उनपर आरोप है। अगर चुनाव के समय किसी पार्टी के प्रचार की खबर छप सकती है तो उसके कारनामे क्यों नहीं? यही नहीं, यह मामला इसलिए भी खास है कि इसे दबाने की पूरी कोशिश हो चुकी है। शिकायत करने वाली महिला लापता हो गई थी और मंत्री बचने की हर कोशिश कर चुके हैं।

जनसत्ता में छपी 28 मार्च की खबर के अनुसार जवाब में कांग्रेस नेता शिवकुमार ने कहा है कि जरकीहोली हताश हैं। वे सरकार में हैं, उनके पास एसआईटी और अफसर हैं। उन्हें खुद ही जांच कर कार्रवाई करने दीजिए। इस मामले में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब वीडियो में कथित तौर पर दिख रही महिला के माता-पिता ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार पर उनकी बेटी का इस्तेमाल करते हुए ‘‘गंदी राजनीति’’ करने का आरोप लगाया। इसके बाद जरकीहोली ने भी पहली बार शिवकुमार का नाम लेते हुए उनके खिलाफ राजनीतिक और कानूनी लड़ाई लड़ने की घोषणा की। हालांकि शिवकुमार ने कहा कि इस मामले से उनका कोई लेना देना नहीं है क्योंकि वह इस महिला से कभी नहीं मिले हैं और जांच कर ली जाए।

इस घटनाक्रम के बाद महिला ने एक वीडियो बयान जारी किया और दावा किया कि उसके माता-पिता किसी के दबाव में बोल रहे हैं तथा यह सब देखने के बाद वह अपना बयान दर्ज कराने के लिए एसआईटी के समक्ष उपस्थित होने से डर रही है। महिला ने अपने साथ हुए अन्याय के बारे में एक न्यायाधीश के समक्ष अपना बयान दर्ज कराने में मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा, राज्य के गृहमंत्री बासवराज बोम्मई, विपक्षी नेता सिद्धरमैया और शिवकुमार से मदद की गुहार भी लगाई। महिला के माता-पिता और भाई इस कांड की जांच कर रही विशेष जांच टीम (एसआईटी) के समक्ष पेश हुए। अपहरण की उनकी शिकायत और वीडियो क्लिप के बारे में उनसे करीब छह घंटे तक पूछताछ की गई। महिला के पिता ने बाद में संवाददाताओं से कहा, ‘‘…हमारे पास सबूत हैं, हमने एसआईटी के अधिकारियों से बात की और यह उन्हें सौंप दिया है, हम आपको (मीडिया को) भी यह देंगे। मेरी बेटी अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय की महिला के राजनीतिक इस्तेमाल का उदाहरण है। यदि हमारे परिवार को कुछ भी हुआ तो इसके लिए डी के शिवकुमार जिम्मेदार होंगे।’’ इससे आप इस मामले की गंभीरता को समझ सकते हैं।

चुनाव के समय जब अखबार चुनाव प्रचार छाप रहे हैं तो यह भी बताना चाहिए कि जो पार्टी सत्ता में आना चाहती है वह जहां सत्ता में है वहां क्या कर रही है। पहले ऐसी खबरें ढूंढ़कर छापी जाती थीं। या चुनाव प्रचार के दावे को गलत साबित करने के लिए अखबार यूं ही ऐसी खबरें ढूंढ़ निकालते हैं। अब जो खबरें होती हैं वह नहीं छपती हैं। इसी क्रम में आज टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर है, “सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैदियों के मामले में उत्तर प्रदेश के आदेश को ‘हंसने योग्य’ माना”। खबर के अनुसार, तीन उम्र कैदियों की सजा कम न करने के राज्य सरकार के फैसले का आधार यह है कि उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति उपयुक्त नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों को अंतरिम जमानत दी है ताकि कोई 16 साल बाद ये जेल से बाहर आ सकें। सजा कम करने की इन कैदियों की अपील को खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की खिंचाई की है और कहा है कि ऐसा दिमाग लगाए बगैर किया गया है। और ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया है कि वे जेल से बाहर नहीं आ सकें।

अखबार ने खबर के साथ अदालत के फैसले के इस अंश को हाईलाइट किया है (अनुवाद मेरा), “राज्य जब ऐसा बर्ताव करते हैं तो हमें तकलीफ होती है। वे (तीन उम्र कैदी) पिछले 16 साल से जेल में हैं बिना पैरोल के ….. हम पास किए गए आदेश को पढ़कर चकित हैं …. संबंधित अधिकारी को संभवतः यह भी नहीं समझ में आता है कि जो किया जाना चाहिए वह कैसा होता है।” आप चाहें तो इसे संजीव भट्ट के मामले से जोड़ कर देख सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गवाही देने के बाद वे एक पुराने मामले में दोषी ठहरा दिए गए हैं और दो साल से जेल में हैं। हाईकोर्ट में उनकी जमानत याचिका फिर टल गई। जब ऐसी खबरें नहीं हैं तो यह खबर पहले पन्ने पर क्या होनी है। ढूंढ़िए, आपके अखबार में है?

बात इतनी ही नहीं है। ऐसी बहुत सारी खबरें नहीं छापने वाले द हिन्दू में आज दो खबरें उल्लेखनीय हैं। पहली, “कोविड-19 प्रोटोकोल का पालन नहीं करने वाले विमान यात्रियों से जुर्माना वसूला जाए” और दूसरी, “सोने के कुछ टुकड़ों के लिए केरल के साथ धोखा किया गया”। विमानयात्रियों पर जुर्माना लगाने की खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम में इसीलिए अखरती नहीं है। लेकिन पहले पन्ने पर दो कॉलम की खबर लगाने वाले को क्या पता नहीं होगा कि अमित शाह के रोड शो में मास्क नहीं के बराबर दिखे? यहां यहां उल्लेखनीय है कि कल नंदीग्राम के रोड शो में ना तो गृहमंत्री और ना उनके साथ चल रहे लोगों ने मास्क लगाया था। ममता बनर्जी और उनके साथ के लोगों के मुंह पर मास्क था। कुछ ने हटा भी रखे थे। पर अमित शाह के साथ ऐसा नहीं था। ऐसे में डीजीसीए का आदेश पहले पन्ने की खबर है या रोडशो में मास्क नहीं लगाने की। अलग-अलग शायद दोनों न हो पर डीजीसीए का आदेश कल ही आने पर कल की दूसरी खबर तो अपने आप हाईलाइट होनी चाहिए थी। पर ऐसा हुआ नहीं। वैसे द हिन्दू के बारे में यह बता देना चाहिए कि मोदी की खबर के साथ प्रियंका गांधी की खबर लगभग उतनी ही बड़ी है। हालांकि पहले पन्ने पर बंगाल चुनाव की कोई खबर नहीं है।

आज द टेलीग्राफ का पहला पन्ना बंगाल चुनाव की खबरों से भरा है पर एक खबर उल्लेखनीय है, “केंद्र सरकार ने कहा है कि देश के प्रभावित जिलों में 45 पार के सभी लोगों को दो हफ्ते के भीतर टीके की पहले खुराक दी जाए।” यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में लीड है। छह कॉलम की इस लीड का फ्लैग शीर्षक है, “सरकार ने खतरे की घंटी बजाई” मुख्य शीर्षक है, “स्थिति खराब से बहुत खराब हो रही है, प्रभावित जिलों में 45 पार वालों को दो हफ्ते में टीके की पहली खुराक लगाई जाए”। उपशीर्षक है, “दैनिक मामले छह राज्यों में बढ़े: चिन्ता महाराष्ट्र और पंजाब को लेकर है”। आप जानते हैं कि दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। पर चिन्ता वाली खबर 45 पार वालों को दो हफ्ते में टीका लगाने का आदेश है। इससे तो लगता है कि जबरन टीका लगा दिया जाएगा जबकि अभी ना तो इसके प्रभावी होने का यकीन हैं और ना इसकी गारंटी कि टीके से नुकसान नहीं होगा। कल एक खबर थी जिसके अनुसार टीकों में एक, कोविशील्ड की शेल्फ लाइफ बढ़ा दी गई है।

आपको याद होगा, इस टीके की दो खुराक बढ़ने की खबर कितनी प्रमुखता से छपी थी। अब इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ा दी गई। इससे लगता है कि टीके की खुराक पूरी है और जितनी है उस रफ्तार से लोग लगवा नहीं रहे हैं। इसलिए 45 पार वाले आदेश के साथ शेल्फ लाइफ बढ़ाई गई है पर खबर को प्रमुखता नहीं मिली है क्योंकि रोज-रोज के ऐसे आदेश से दवा के साथ-साथ दवाई मंत्रालय की साख भी खराब होती है। भले स्वास्थ्य मंत्री इससे दूर-दूर रह रहे हैं। दिलचस्प यह है कि एक्सप्रेस के इतने बड़े शीर्षक में शेल्फ लाइफ बढ़ाने की बात नहीं है। शेल्फ लाइफ बढ़ाने का एक मतलब यह तो है ही बाजार में उपलब्ध टीके खप नहीं रहे हैं।

हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड का शीर्षक है, सरकार ने चेतावनी दी मामले बढ़ने से संसाधन कम पड़ सकते हैं। इसके साथ मुंबई की खबर है, सप्ताहांत से सख्त पाबंदियों की संभावना, पूर्ण लॉक डाउन नहीं। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक है, “भारत जोखिम में, स्वास्थ्य संरचना कम पड़ सकती है: केंद्र ने राज्यों से कहा”।  हिन्दू में शीर्षक है, (कोविड के) “मामलों में वृद्धि चिन्ता का कारण:केंद्र”।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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