डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी-1

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.अांबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को  मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है।  ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं- संपादक

 

 

स्रोत सामग्री: डा. बाबासाहेब आंबेडकर और अछूत आन्दोलन

 

संकलन-कर्ता : डा. बी. जी. कुन्ते, एम.ए. पीएच.डी.,

सहायक बी. एन. पाठक, एम.ए.

डा. बाबासाहेब आंबेडकर स्रोत सामग्री प्रकाशन समिति

संपादकीय परिषद : श्री एम. बी. चिटनिस, अध्यक्ष

डा. पी. टी. बोरले,

प्रो. एस. पी. भागवत,

श्री बसन्त मून, विशेष सेवाधिकारी

अनुवादक : कॅंवल भारती

 

परिचय

इस खण्ड की सामग्री उन फाइलों से संकलित की गई है, जो हमें बम्बई के पुलिस आयुक्त से प्राप्त हुई थीं। पहले हमारी इच्छा इस सामग्री को भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास के लिए एक स्रोत सामग्री के रूप में प्रकाशित कराने की थी। किन्तु चूॅंकि महाराष्ट्र सरकार ने डा.आंबेडकर के साहित्य के प्रकाशन हेतु एक पृथक समिति ‘डा. बाबासाहेब आंबेडकर सोर्स मेटीरियल पब्लिकेशन कमेटी’ के नाम से गठित कर दी थी, इसलिए सरकार ने इस सामग्री को इसी कमेटी को सौंपना उचित समझा। इस कमेटी के संपादकीय बोर्ड के सदस्यों ने पाण्डुलिपि का संपादन किया है और अब यह जनता के हाथों में है।

संपादकीय बोर्ड इस बात को जानता है कि यह स्रोत सामग्री पर्याप्त नहीं है। इसमें केवल पुलिस अधिकारियों की कुछ आख्याएॅं, डा. आंबेडकर के जीवन और उनके द्वारा आरम्भ किए गए अछूत आन्दोलन की कतिपय घटनाओं पर अखबारों की कतरनें शामिल हैं। ये कतरनें भी अधिकतर ‘दि बाम्बे क्राॅनिकल’ तथा ‘दि टाइम्स आॅफ इण्डिया’ की हैं।

इस खण्ड की सामग्री डा. आंबेडकर के जीवन की घटनाओं और उनके अछूत आन्दोलन को चित्रित करने के लिए न तो सम्पूर्ण है और न पर्याप्त है। चूॅकि ये रिपोर्टें बम्बई पुलिस आयुक्त के कार्यालय से प्राप्त हुईं थीं, इसलिए उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती थी कि उनमें राज्य से बाहर की घटनाएॅं भी होंगी। इस खण्ड का सम्पादन अभिलेखागार के पूर्व निदेशक डा. बी. जी. कुंते ने काफी पहले किया था, पर जब तक वह अन्य सामग्री तक पहुॅंचते, सरकार ने उन्हें पब्लिकेशन कमेटी से हटा दिया।

सम्पादकीय बोर्ड ने डा. आंबेडकर के पक्ष और विपक्ष में जो कुछ भी रिपोर्टों में था, उसे ज्यों-का-त्यों रखा है। इसलिए इसमें उनकी आलोचनाएॅं भी हैं, जो उनके विरुद्ध उनके समकालीनों के  मनोभावों को बताती हैं।

एक चैथाई सदी समाप्त होने के बाद पूर्वाग्रह की धूल साफ होने लगी है। अब हम अतीत के बारे में शान्त होकर सोच सकते हैं और बुद्धिसंगत निष्कर्ष निकाल सकते हैं। डा. आंबेडकर के विचारों, कथनों, भाषणों, लेखों आदि सभी रचनाएॅं अर्थपूर्ण हैं, जिनका हमें तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में गहन अध्ययन करने की आश्यकता है। अतीत का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद यदि कोई इस निष्कर्ष पर पहुॅंचता है कि डा. आंबेडकर पूर्वाग्रह के शिकार थे, तो उस पर दोष लगाने की जरूरत नहीं है। यदि हम राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति उनके दृष्टिकोण को समझने का नजरिया रखते है, तो उन गम्भीर परिणामों के लिए, जिन्हें देश को भोगना है, पछिताना नहीं पड़ेगा।

 इसलिए यह उपयुक्त होगा कि हम डा. आंबेडकर का अध्ययन करें, जिनका जीवन उन तमाम लोगों के लिए पे्ररणास्पद है, जो विषमताओं से ऊपर उठना चाहते हैं। इसके सिवा एक नायक के रूप में, जिस अर्थ में कार्ले ने इस शब्द का प्रयोग किया है, उन्होंने अपने जीवन और विचारों से करोड़ों के भाग्यों को बनाया है। एक विद्वान ने ठीक ही कहा है, डा. आंबेडकर अपने समय में जितना महान थे, उससे ज्यादा महान वे आज के समय में हैं।

संपादकीय बोर्ड का विश्वास है कि जितना ज्यादा लोग डा. आंबेडकर को समझेंगे, उतना ही ज्यादा यह देश एक लोकतन्त्र के रूप में सुरक्षित रहेगा। हमें आशा है कि यह स्रोत सामग्री डा. आंबेडकर और उनके आन्दोलन को समझने के लिए लोगों को जागरूक करने की दिशा में एक कदम है।

                                                                                                                                     सदस्य,    संपादकीय बोर्ड

1

 

भीमराव रामजी आंबेडकर                                                    16 जनवरी 1915

 

35, प्रस्तर 1103/1913- स्पेशल ब्रांच। बम्बई, 16 जनवरी। सेंसर लिखता है- शिक्षा मन्त्री, बड़ोदा का निम्नलिखित पत्र संख्या 509, दिनाॅंक 8 जनवरी 1915 बी. आर. आंबेडकर, एसक्वायर, बी. ए., 554, वेस्ट 114 वीं स्ट्रीट, न्यूयार्क को भेजा गया है-

‘‘उन्हें सूचित करें कि ‘आपको छात्रवृत्ति जारी रखने के लिए हिज हाईनेस महाराजा साहब के समक्ष प्रस्ताव रखा जाएगा’ और परिणाम से अवगत करा दिया जाएगा।’’

 

2

 

भीमराव रामजी आंबेडकर                                                       30 जनवरी 1915

 

81, प्रस्तर 35, बड़ोदा, 25 जनवरी। स्थानीय सहायक लिखता है- ‘भीमराव रामजी आंबेडकर एक बम्बई निवासी पारवाड़ी है, जिसे गायकवाड़ ने वित्त एवं समाजशास्त्र की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा है। यद्यपि बड़ोदा सेवा सूची में उनका नाम मिलिट्री प्रोबेेशनर के रूप में दर्ज है, किन्तु उन्होंने कोई मिलिट्री ट्रेनिंग नहीं ली है और केवल वेतन निकालने के मकसद से उनकी नियुक्ति की गई लगती है। उन्हें जून 1913 में अमेरिका भेजा गया था, और माना जाता है कि वह अभी वहीं पर हैं। उन्हें एक पहचान-पत्र दिया गया था।’

 

3

 

भीमराव रामजी आंबेडकर                                                        13 फरवरी 1915

 

107, प्रस्तर 81, बम्बई, 8 फरवरी। भीमराव रामजी आंबेडकर महार जाति के हैं और आम्बेड, तालुका दापोली, जनपद रतनगिरी के निवासी हैं। वह बम्बई विश्वविद्यालय से स्नातक हैं, जिन्होंने एलफिन्स्टन कालेज से बी. ए. किया है। उसके बाद उन्होंने बड़ोदा राज्य सेवा में भाग लिया और 1913 में उन्हें बड़ोदा राज्य द्वारा अर्थशास्त्र की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा गया। उन्होंने 15 जून 1913 को बम्बई से प्रस्थान किया।

लगता है कि आंबेडकर ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए अमेरिका में दो वर्ष और रहने की अनुमति माॅंगी है, जिसमें वह अपना अध्ययन समाप्त कर लेंगे।

 

4

 

गोपनीय                                                                      संख्या डी, 234

कार्यालय पुलिस आयुक्त

बड़ोदा, 22 दिसम्बर 1917

प्रिय विन्सेण्ट,

मैं आपको बी. आर. आंबेडकर पर एक सूचना (नोट) भेज रहा हूॅं, जो इन दिनों बम्बई में काम की तलाश में ठहरे हुए हैं।

भवदीय (ह.)

एफ. ए. एम. एच. विनसेण्ट

पुलिस आयुक्त

 

5

 

गोपनीय

एस. बी. नं. 09378/191/एम/513

पुलिस मुख्यालय

बम्बई, 14 दिसम्बर 1920

 

प्रिय मि. सेडान,

 

आपका अ. शा. पत्र दिनाॅंक 8 दिसम्बर 1929,

व्यक्ति का पूरा नाम मि. भीमराव रामजी आंबेडकर है। वह पिछली 5 जुलाई को बार (कानून) की पढाई के लिए और लन्दन विश्वविद्यालय से अपनी एम. एससी. की डिग्री लेने के लिए इंग्लेण्ड गए हैं। उनका वर्तमान पता है- 96 ब्रूक ग्रीन, हामरस्मिथ, लन्दन। वह दो साल तक भारत लौटने वाले नहीं हैं।

उनका संक्षिप्त इतिहास संलग्न है।

भवदीय

(ह.)..                                                                    13 दिसम्बर 1920

माननीय मि. सी. एन. सेडान

सदस्य परिषद, बम्बई।

 

 

6

 

गवर्नमेन्ट हाउस,

बम्बई, 1 अप्रेल 1920

प्रिय ग्रिफ्थ,

मैं आपको अवैतनिक सचिव, बहिष्कृत हितकारिणी सभा से प्राप्त एक पत्र भेज रहा हूॅं। कृपया मुझे अवगत कराएॅं कि यह सभा क्या है और क्या यह संस्था ‘महामहिम’ (गवर्नर) से मिलने की योग्यता रखती है?

 

भवदीय,

(ह.) सी. जी. आदम

एफ. सी. ग्रिफ्थि,

पुलिस आयुक्त, बम्बई

 

 

7

 

संख्या ओ 2736/पी/131,

14 अप्रेल 1920

प्रिय आदम,

आपका इसी 1 अप्रेल का अर्द्ध शासकीय पत्र।

बहिष्कृत हितकारिणी सभा नामक संस्था गत फरवरी माह में महार जाति के पाण्डुरंग नन्दराम भटकर द्वारा आरम्भ की गई थी। इसके अध्यक्ष पूना के रामचन्द्र कृष्णजी कदम हैं, और वह भी महार हैं। इसके सदस्यों की संख्या दो से तीन सौ तक है। इसका वार्षिक चन्दा एक आना से एक रुपए तक है। ‘सभा’ का कार्यालय पोय बावड़ी, परेल में हाररवाला भवन के एक छोटे से कमरे में है। इसी कमरे से पाण्डुरंग भटकर अपना पाक्षिक पत्र ‘मूकनायक’ प्रकाशित करते हैं। ‘सभा’ छोटी है और उसका कोई प्रभाव नहीं है, पर विचारणीय तथ्य यह है कि प्रस्तावित शिष्टमण्डल का नेतृत्व कोल्हापुर के महाराजा करेंगे। अतः महामहिम के स्वागत की सभा की यह योग्यता पर्याप्त है।

पुनश्चः

मुझे उपरोक्त में यह भी कहना है कि गवर्नर इस शिष्टमण्डल से मिल सकते हैं, क्योंकि कोल्हापुर के महाराजा द्वारा उसका नेतृत्व करना ही इसे महत्व देता है, अन्यथा उसे अधिकार नहीं है। अतः मुझे लगता है कि महामहिम उससे मिलने से इन्कार नहीं करेंगे, भले ही जनता में उसकी कोई महत्ता न हो।

हाॅं श्रीमान जी, महाराजा ने पिछली 12 तारीख को, जब ‘सभा’ के लोग उनसे कोल्हापुर में मिले थे, गवर्नर से मिलने जाने वाले शिष्टमण्डल का नेतृत्व करने का वचन दिया था। ‘सभा’ ने अब तक सौ रुपए का चन्दा जुटा लिया है। इसमें से आधे धन को वे ‘सभा’ की बैठकें आयोजित करने और परचे छपवाने में खर्च करेंगे तथा शेष राशि ‘सभा’ के पास रहेगी।

(ह.)………………

 

 

8

 

गवर्नमेन्ट हाउस, बम्बई

14 अप्रेल 1920

सेवा में,

पुलिस आयुक्त

बम्बई

 

महोदय,

मुझे सूचित करना है कि कोई पूना निवासी रामजी सखाराम गायकवाड़, महार, हैं, जो अपने आप को बम्बई में स्थापित ‘महार एसोसिएशन’ के सदस्य बताते हैं, मेरे परिक्षेत्र के हर गाॅंव के हर महार से दो से तीन रुपए तक चन्दा इकट्ठा कर रहे हैं। मि. आंबेडकर, बार-एट-लाॅ इसके अध्यक्ष और रामचन्द्र कृष्णजी, भाऊराव सखाराम तथा गोविन्द सखाराम गायकवाड़ इसके सदस्य बताए जाते हैं। इन तीनों महारों ने बरार के महारों से भी चन्दा लेना शुरु कर दिया है और जो भी धन वे प्राप्त करते हैं, उसे मनीआर्डर से अध्यक्ष को भेज देते हैं। मि. आंबेडकर पोइबावड़ी में नरहर मन्त्याली भवन के निकट घोरप प्रिन्टिगं प्रेस के भवन में रहते हैं। उनका उद्देश्य कानूनी तरीके से महारों के ‘बलूता हकों’ को दिलाना है। कहा जाता है कि इस संस्था ने इससे सम्बन्धित केस बम्बई हाईकोर्ट में जीत लिया है। इसलिए अब वे बरार के महारों के लिए प्रयास कर रहे हैं। चूॅंकि रामजी सखाराम ने न अपने अध्यक्ष को लिखा था और न चन्दे में एकत्र किए गए धन का हिसाब दिया था, बल्कि चन्दे में मिले धन को उन्होंने शराबखोरी में खर्च कर दिया था, इसलिए आईपीसी की धारा 54/420 के तहत उन्हें 24 नवम्बर 1925 को गिरफ्तार कर लिया गया। वह 1 दिसम्बर 1925 तक जेल कस्टडी में हैं।

अतः मुझे अनुरोध करना है कि अभियुक्त रामजी का बयान बम्बई में सत्यापित किया जाए और उसकी सूचना मुझे तत्काल दी जाए। उपरोक्त व्यक्तियों के साथ भी अभियुक्त के अगले-पिछले चरित्र का सत्यापन किया जाए।

आदर सहित,

आपका आज्ञाकारी सेवक

(ह.) डी. रामराव

उप-निरीक्षक, माहुली।

 

9

 

महोदय,

संलग्नक का सन्दर्भ लें। मुझे अवगत कराना है कि महारों के ‘बलूता हक’ आन्दोलन के बारे में कुछ भी अभिलेखों में नहीं है। ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ के अध्यक्ष भीमराव आंबेडकर, बार-एट-लाॅ ( न कि आंबेरडेकर, जैसा कि पत्र में उल्लिखित है) द्वारा की गई जाॅंच-पड़ताल बताती है कि बम्बई में ‘महार बलूता हक’ जैसी कोई संस्था नहीं है। आंबेडकर कहते हैं कि उन्होंने किसी को भी किसी से भी चन्दा लेने के लिए अधिकृत नहीं किया है, पर संलग्न पत्र में जिन महारों का उल्लेख है, वे आंबेडकर को नहीं जानते हैं। उनकी संस्था का काम अछूतों का सुधार करना है और उसकी सदस्यता-शुल्क एक रुपए वार्षिक है।

रामजी सखाराम गायकवाड़ सम्भवतः मिथ्या प्रतिनिधि बनकर धन उगाही कर रहे हैं।

(ह.)……

12/12

 

 

10.

 

संख्या एच-3221

दिनाॅंक: 16 दिसम्बर 1925

 

सेवा में,

जिला पुलिस अधीक्षक

अमरावती।

 

विषय – रामजी सखाराम गायकवाड़, महार और ‘बलूता हक’

 

महोदय,

 

आपके पृष्ठांकन सं. 1213, दिनाॅंक 2 दिसम्बर 1925, जो उपपुलिस निरीक्षक, माहुली की रिपोर्ट के सम्बन्ध में  है, मुझे आपकी प्रतिष्ठा में सूचित करना है कि जाॅंच-पड़ताल भीमराव आंबेडकर, बार-एट-लाॅ, अध्यक्ष ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’, बम्बई द्वारा की गई है। किन्तु वह उन महारों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, जिनका उल्लेख आपके उपनिरीक्षक ने किया है। उनकी संस्था का काम सिर्फ अछूतों का सुधार करना है और उन्होंने ‘सभा’ की ओर से किसी भी व्यक्ति को धन इकट्ठा करने के लिए अधिकृत नहीं किया है।

 

सादर,

(ह.)..

डी. सी. पी., विशेष शाखा

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत, दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए ख्‍यात, कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार।

 



 

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