Human Rights Diary: “मेरे बेटे ने मोदी की जीत पर बाजा बजवाया था, उसे क्‍यों मार दिया”?

इरशाद की अम्मी संजीदा, बहन सायबा व छोटा भाई

“मेरी अम्मी बावली होकर सबसे पूछती है कि मेरा बेटा इरशाद कब वापस आएगा?” फर्जी एनकाउंटर में मारे गए इरशाद की बहन सायबा का यह बयान सुन कर दिल में एक अजीब सा दर्द महसूस हुआ। इरशाद के तीन बहन व दो भाई थे। उनके घर का खर्चा बटाई व अधिया पर खेती करके चलता है, जिसमें इरशाद अपने अब्बू के साथ खेती में मदद करता था।

घटना रेवाली नगला, मुज़फ्फरनगर, बुधना की है। 27 नवम्बर, 2018 की रात तक़रीबन 9:30 बजे इरशाद घर से खाना खाने के बाद चाय पीकर खेत की सिंचाई करने के लिए निकला। खेत के बगल में ही पम्पिंग सेट है। जो भी खेत की भराई या देखरेख के लिए जाता है वो वहीं रुक जाता है और अगले दिन सुबह आता है। सुबह घर वाले उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसके अब्बू दूध लेने के लिए डेयरी पर जा रहे थे, तो उन्हें कुछ लोग रास्ते में पलट–पलट कर देख रहे थे। उसके अब्बू भी कुछ समझ नहीं पाए, तभी किसी ने बताया कि समाचार में तुम्हारे बेटे इरशाद के एनकाउंटर की खबर आ रही है।

वे एकदम सुध–बुध खोकर वापस घर आ गए। जब घर आये, तो इरशाद की मां ने बोला कि मुखिया बावले हो गए हो क्या कि बिना दूध लिए ही चले आए। उन्होंने अपने पत्नी से इरशाद के साथ हुई घटना को बताया, उसके बाद से इरशाद की मां अपना मानसिक संतुलन खो बैठी। कभी चौराहे पर भाग जाना, कभी खेत की तरफ।

उनके सामने लोग इरशाद का नाम भी नहीं लेते हैं। घर में जितनी भी उसकी फोटो, सामान या फिर उसके एनकाउंटर से सम्बंधित कागज हैं, सब कुछ पास में ही अपनी दादी के यहां रखते हैं।

इस घटना घटना ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया। सायबा कहती हैं, ”मेरे भाई ने आज तक एक चींटा भी नहीं मारा। उसके ऊपर इतना बड़ा इल्जाम? मेरा पूरा परिवार एकदम टूटकर बिखर गया। अब अब्बू का खेती-गृहस्थी में भी मन नहीं लगता। वो अन्दर से काफी कमजोर हो गए हैं। हम लोग अपना दुःख दर्द किससे कहें?”

“अम्मी की इस हालत से घर में चुप्पी रहती है। धीरे-धीरे अब घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। एक तरफ अम्मी के इलाज के लिए पैसे और दूसरी तरफ घर की रोज़ की जरूरतें। कुछ समय तक हम लोगों ने अपनी अम्मी का इलाज चैतन्य नर्सिंग होम, महावीर चौक, मुज़फ्फरनगर में करवाया लेकिन अब पैसे की कमी से मेडिकल स्टोर से ही दवा लाकर देते हैं। अभी रमजान में कुछ रिश्तेदारो ने ज़कात का पैसा दिया, जिससे घर का खर्च चला।”

घटना के तुरंत बाद प्रकाशित समाचार को गंभीरता से लेते हुए राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मुख्य सचिव को नोटिस भेजा और प्रेस रिलीज़ जारी किया।

ये फर्जी एनकाउंटर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान के बाद शुरू हुए। मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जब मुख्यमंत्री नहीं थे, तो संसद में अपने ऊपर हुए फर्जी मुकदमे पर रो रहे थे। बहुत जल्दी फर्जी मुकदमे और पुलिस द्वारा किये जाने वाले वाले अत्याचारों को वे भूल गए।

उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा किए जा रहे फर्जी एनकाउंटर और न्यायिक हिरासत में उत्‍पीड़न पर संयुक्त राष्ट्र संघ के ह्यूमन राइट्स कौंसिल ने भारत सरकार से जबाब मागा है। राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी प्रदेश में हुए फर्जी एनकाउंटर पर राज्य सरकार को नोटिस दिया है। किन्तु यह वो गंभीर प्रयास नहीं है जो सन् 2000 के आस पास हुआ था। सन् 2000 से पहले हर महीने उत्तर प्रदेश में लगातार एनकाउंटर होते थे। मानवाधिकार जन निगरानी समिति और पीयूसीएल जैसे संगठनों के प्रयास और हस्तक्षेप के कारण मानवाधिकार आयोग गंभीर हुआ और एनकाउंटर पर बने आयोग के निर्देशों को यहां सख्ती से लागू करवाया गया, जिससे फर्जी एनकाउंटर रुके और साथ ही कानून के राज का आरम्‍भ हुआ और माफिया द्वारा की जाने वाली हत्याओं में कमी आई। बड़े माफिया जेल गए।

इसी दौर में राजनीति का अपराधीकरण और अपराधिकयों का राजनीतिकरण शुरू हुआ था। बहन मायावती के ज़माने में माफिया डॉन बबलू सिंह के फर्जी एनकाउंटर के विरोध पर पुलिस ने मुझे धमकाने और फ़ंसाने के अनेक प्रयास किए। फर्जी एनकाउंटर के द्वारा राजनीतिक सत्ता माफिया में भय पैदा कर उसका राजनीतिक लाभ उठाती है। दूसरी तरफ पुलिस पैसा वसूली करती है। आधुनिक अपराध नियंत्रण में कानून के राज के लिए पुलिस सुधार के साथ न्यायिक सुधार और सामाजिक सुधार बहुत ज़रूरी है। योरप के देशों ने इसे लागू किया है। डेनमार्क के दौरे पर गए वाराणसी के सुप्रसिद्ध वकील तनवीर अहमद सिद्दीकी वहां की जेलों के अन्दर मानवाधिकार पर आधारित उत्कृष्ट व्यवस्था की स्थिति को देखकर दंग रह गए थे।

यूपी में में 2017 में छह महीने के अन्दर 420 एनकाउंटर में 15 लोग मारे गए और 2018 में 1038 एनकाउंटरों में 32 लोग मारे गए। बीजेपी के लिए प्रचार करने वाले सुमित गुज्जर जैसे लोगों को पुलिस ने पैसे के लिए फर्जी एनकाउंटर में मार दिया। जब मैं और शबाना ताज मोहम्मद के साथ सुमित के घर गए, तो सुमित की मां और पिता की लगातार रुलाई, घर के बच्चों में डर और दूसरों में आक्रोश को देखकर अहसास हुआ कि स्‍थायी विकास और कानून के राज के लिए ये खतरनाक संकेत हैं।

यह मामला ग्राम चिरचिटा, थाना बनौली, जिला बागपत का है। सुमित की मां श्‍यामपति कहती हैं, “मेरे परिवार के लोग खेती गृहस्थी करते हैं जिसमे सुमित हमारी पूरी मदद करता था।‘’ 30 सितम्बर, 2018 को घटना के दिन दोनों भाई खेत जोतने की तैयारी कर रहे थे। वे बताती हैं, ‘’मैंने उनसे कहा कि पहले रोटी खा लो तब खेत जाना लेकिन मेरा छोटा बेटा सुमित बोला कि मां, तू रोटी बना तबसे मै गाजर में डालने के लिए बनौली से दवा लेकर आता हूँ। इतना कहकर सुमित घर से पैसा लेकर दवाई लेने चला गया। काफी देर तक मै उसका इंतज़ार करती रही। शाम के समय मेरे घर वाले और बेटा बनौली गए। वहां से मालूम हुआ कि सादे कपड़ों में आए कोई चार पांच लोग सुमित को गाड़ी में बैठाकर कही ले गए।‘’

श्‍यामपति आगे कहती हैं, ‘’अगले दिन मेरे बेटे प्रवीन (सुमित का चचेरा भाई) के नंबर पर फ़ोन आया कि तीन लाख रूपया दे दो और सुमित को वापस ले जाओ। घर में पैसे का पेड़ तो था नहीं। हम लोगों ने कर्जा उधारी और गिरवी रखकर पैसा इकट्ठा किया। फिर प्रदीप के मोबाइल पर फ़ोन आता है कि हम नोएडा पुलिस से बोल रहे हैं, सुमित को पूछताछ करके छोड़ देंगे।‘’

2 अक्टूबर, 2018 की रात 11 से 2 बजे के बीच 30-40 वर्दीधारी पुलिसवालों ने पूरे घर में टॉर्च जलाकर ढूंढा कि सुमित कहां है। पुलिस सुमित के बैग से उसका पहचान पत्र, मोबाइल का ख़ाली डिब्बा अपने साथ ले गई। उन लोगों ने घर में अनाज की कोठी से सारा अनाज जमीन में बिखरा दिया।

श्‍यामपति बताती हैं, ‘’मैंने उनको बोला कि सुमित तो तुम्हारे ही पास है, यहां क्यों तलाश रहे हो। पुलिस ‘देख लेंगे’ की धमकी देते हुए लौट गई। मुझे सुमित की इतनी फ़िक्र हो रही थी कि हम लोगो का खाना और सोना छूट गया था। हम लोग हर मुमकिन प्रयास कर रहे थे कि हमारा सुमित मिल जाए।‘’

वे बताती हैं, ‘’पुलिस ने 3 अक्टूबर, 2018 को सुमित का एनकाउंटर कर दिया है और हम लोगो को 4 अक्टूबर को उसकी लाश मिली। हम लोगों ने लाश को रखकर सीबीआई जांच की मांग की। उस वक़्त बागपत की पुलिस ने आकर सांत्वना दी। तब हम लोगों ने उसका अंतिम संस्कार किया। जब मैंने अपने बेटे का मृत शरीर देखा तो उसकी आंख से खून निकल रहा था, हाथ भी टुटा हुआ था और आगे के दो दांत भी।‘’

वे बताती हैं कि पुलिस लगातार उनके परिवार पर इस मामले में सुलह का दबाव बना रही है। यहाँ तक कि रिश्तेदार के द्वारा भी दबाव कायम किया जा रहा है। पुलिस ने सुमित के चचेरे भाई प्रवीण को भी फर्जी मुकदमों में फंसा दिया है।

श्‍यामपति कहती हैं, ‘’अभी भी मैं खाना खाने के पहले गाय को दोनों समय रोटी देती हूं कि भगवान मेरे बेटे की आत्मा को शांति दे। यहां तक कि मैं रिश्तेदारों के यहां खाने और रुकने से पहले आग्रह करती हूं कि मेरे लिए दो रोटी ज्यादा बनाना।‘’

वे बताती हैं कि सुमित ने पूरे गांव में घूम-घूम कर नरेंद्र मोदी को वोट देने के प्रचार किया था। जिस दिन मोदी प्रधानमंत्री बन गए, उसने पूरे गांव में बाजा बजवाया था।

‘’अभी मेरे दोनों बेटों की शादी नहीं हुई है लेकिन पुलिस ने मेरे माथे पर चोर की मां का कलंक लगा दिया है।”

First Published on:
Exit mobile version