गुरुग्राम में नवरात्र में मांस बेचने की ख़बर को लेकर ‘हिंदू’ बन गए हिंदी अख़बार!

संजय कुमार सिंह


हिन्दुस्तान टाइम्स में आज प्रकाशित खबर के अनुसार गुरुग्राम के हिन्दू संगठन मांस दुकानें जबरदस्ती नहीं बंद कराएंगे। इससे पहले छह लोगों को गिरफ्तार कर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी। कुछ ही घंटों के बाद 22 हिन्दू संगठनों के प्रतिनिधियों ने एलान कर दिया कि वे जबरन बंद नहीं कराएंगे। गुरुवार को अखबारों में खबर थी कि गुरुग्राम में हिंदू संगठनों ने धमकी दी है कि नवरात्र के दौरान वे जिले में मांस नहीं बेचने देंगे। आज खबर है कि इस संबंध में गुरुवार को ज्ञापन सौंपने पहुंचे संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों को उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने फटकार लगाई। उन्होंने साफ कहा कि यह 100 प्रतिशत गैरकानूनी है। अगर भविष्य में संगठनों की तरफ से जबरन दुकानें बंद कराई गईं तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

हिंदू संगठनों के प्रतिनिधि ने उपायुक्त से मांग की कि शहर में चल रही अवैध मांस की दुकानों को बंद कराया जाए। इसके जवाब में उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने कहा कि यह काम प्रशासन का है और इस संबंध में गुरुग्राम नगर निगम (एमसीजी) को निर्देश दिया जा चुका है। नगर निगम सीलिंग की कार्रवाई कर रहा है। उपायुक्त ने साफ कहा कि यह काम आपका नहीं है। बुधवार को आप लोगों ने शहर में जबरन दुकानें बंद करवाई। आगे ऐसा नहीं चलेगा। उधर, नवरात्र में मांस बिक्री का विरोध करने और मांस विक्रेताओं के साथ मारपीट के आरोप में पकड़े गए छह आरोपियों को जिला अदालत ने गुरुवार को जमानत दे दी। पूरी खबर जितनी महत्वपूर्ण है उतनी प्रमुखता से छपी नहीं है। हालांकि, मैं गाजियाबाद में हूं और मुमकिन है कि गुड़गांव संस्करण में खबर छपी हो। बहरहाल, नेट पर भी दुकानें बंद कराने की खबर ज्यादा है अपील वापस ले ली गई – यह नहीं के बराबर है।

इससे पहले पीटीआई के हवाले से ‘द वीक’ ने खबर दी थी कि शिवसेना और अन्य हिन्दू संगठनों ने दावा किया है कि उन्होंने गुड़गांव में भिन्न जगहों पर मांस और मुर्गे की करीब 400 दुकानें बंद कराई हैं। इनकी मांग है कि नवरात्र के दौरान ये दुकानें बंद रहनी चाहिए। शिवसेना की गुड़गांव यूनिट के प्रमुख गौतम सैनी ने पीटीआई से कहा था कि भिन्न हिन्दू संगठनों के करीब 300 लोग बुधवार को पुराने रेलवे रोड पर शिव मंदिर के पास इकट्ठे हुए और मांस की दुकानें बंद कराने के लिए भिन्न इलाकों में चले गए। इनलोगों ने दावा किया था कि झगड़े के डर से आधी दुकानें पहले से बंद थीं क्योंकि 2014 में केंद्र और हरियाणा में भाजपा के सत्ता में आने के बाद हर साल नवरात्र के दौरान दुकानें बंद कराने का काम किया जाता है। पहले मिली सफलता के मद्देनजर इस बार योजना बड़ी थी लेकिन प्रशासन की सख्ती से स्थिति संभल गई।

हालांकि, अखबारों और मीडिया में भी दुकानें जबरन बंद कराने की खबर ज्यादा है और कल के फैसले की खबर कम। ऐसे मौकों पर अमूमन हिन्दी अखबार हिन्दू ही हैं और हिन्दू संगठनों की ‘अपील’ का प्रचार करने लगते हैं और इस तरह उसे जायज बना दिया जाता है। गुड़गांव जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुख्यालय वाले शहर के लिए यह अजीब बात है। मांस बेचना तब बंद कराया जा रहा है जब सरकार को विदेशी निवेश चाहिए। जीएसटी के लिए “एक देश, एक टैक्स” के नारे के बावजूद अलग-अलग शहरों, जिलों और राज्यों में हिन्दू संगठनों की मनमानी से अलग गैरकाननी नियम बन जाते हैं। झगड़े होते हैं जो कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए भी ठीक नहीं है। गुड़गांव के मामले में स्पष्ट है कि शुरुआती प्रशासनिक सख्ती से ऐसी स्थिति आने से पहले ही रोकी जा सकती है।

प्रशासन पहले से सतर्क होता तो बुधवार की घटना नहीं घटती। उस दिन सुबह राजीव कॉलोनी में मांस की दुकान बंद कराने के दौरान दो समुदाय के लोगों में मारपीट हो गई। सूचना मिलते ही सेक्टर 14 थाना पुलिस मौके पर पहुंची। शिकायत के आधार पर अखिल भारतीय हिन्दू क्रांति दल के प्रदेश अध्यक्ष चेतन शर्मा, जिलाध्यक्ष प्रवीण कुमार, बजरंग दल के जिला संयोजक अभिषेक गौड़ सहित कई लोगों को हिरासत में ले लिया गया। हिन्दू क्रांति दल के राष्ट्रीय प्रभारी राजीव मित्तल ने प्रशासन के संरक्षण में नवरात्र के दौरान मांस बेचने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि नवरात्र के दौरान मीट की बिक्री न करने की अपील की गई है। काफी लोगों ने दुकानें बंद कर दी लेकिन कुछ लोग मानने को तैयार नहीं। उन्हें समझाने के लिए कार्यकर्ता गए थे लेकिन दूसरे समुदाय के लोगों ने ही मारपीट शुरू की। अब उन्हें समझा दिया गया है कि मांस की दुकानें बंद कराना उनका काम नहीं है। गुड़गांव में पहले भी मांस की दुकानें और केएफसी तक को बंद कराया जा चुका है।

दैनिक जागरण के आज के गुरग्राम संस्करण की इस ख़बर को देखिए। आपको कहीं पढ़ने को नहीं मिलेगा कि हिंदू संगठनों को मिली फटकार के बाद मांस की दुकान बंद करने की अपील वापस ले ली गई है

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।



 

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