घाट घाट का पानी : बाल बाल बच गए

उज्‍ज्‍वल भट्टाचार्य के साप्‍ताहिक स्‍तंभ का तेईसवां अध्‍याय

यूरोप की बारिश वैसे ही मनहूस होती है, फिर कोलोन का तो कोई जवाब ही नहीं.

नवंबर की वो एक शाम थी. हल्की बारिश में भीगते-भीगते अपने पुश्तैनी पब में पहुंचा. अंदर पहुंचते ही मूड खराब हो गया- एक भी परिचित चेहरा नहीं. बार के सामने एक ऊंचे स्टूल पर बैठा, हमारे मालिक, यानी पब के साकी हेलमुट ने बिना कुछ पूछे बियर का गिलास रख दिया. चुस्की लेते हुए इधर-उधर देखा, बगल के स्टूल पर एक युवती बियर पी रही थी. उनके हाथ में सिगरेट थी. उम्र कोई चालीस की रही होगी. मैंने भी सिगरेट का पैकेट निकाला- ऐशट्रे उनके सामने था, इससे पहले कि मैं कुछ कहता, मोहतरमा ने ऐशट्रे को दोनों के बीचोबीच रख दिया.

बियर की चुस्की ले रहा था, बोर हो रहा था. बाहर देखा तो धीमी-धीमी बारिश जारी थी. निर्मल वर्मा याद आए, लेकिन दिल नहीं बहला. महिला की ओर देखा और लगभग स्वगतोक्ति के अंदाज़ में मैंने कहा- कल धूप निकलने वाली है.

उन्होंने मेरी ओर देखा. चंद लमहों की ख़ामोशी. फिर उन्होंने कहा- “मैं लेसबियन हूं.”

पता नहीं मुझे क्या सूझा. मैंने जवाब दिया- “मैं भी.”

“क्या?” – महिला ने चौंककर पूछा- “आपका मतलब?”

अब मुझे ख्याल हुआ कि मैं क्या कह गया हूं. अब अपनी बात समझानी थी. लेकिन क्या खाक समझाता, जबकि मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा था.

फिर एक बियर की चुस्की, और मैंने कहना शुरू किया :

“देखिये, यह तो हर कोई देख सकता है कि मैं मर्द हूं. लेकिन बात यह है कि एक मर्द के जिस्म में मेरा एक औरत का वजूद है.”

“ओह, यानी कि आप समलैंगिक हैं.”- उन्होंने कहा.

“दरअसल, इतना आसान नहीं है”- अब मैं पब के मूड में आ गया था. “हालांकि मेरा वजूद एक औरत का वजूद है, लेकिन मुझे मर्द पसंद नहीं हैं. एक औरत के तौर पर मैं औरतों को पसंद करता हूं.”

“हुम्”, उन्होंने कहा. पूछा- “और यह चलता कैसे है?”

“हां, थोड़ा मुश्किल है. कोई औरत जब मेरे साथ होती है, वह सोचती है कि मैं मर्द हूं और वैसे ही मुझसे पेश आती है. जबकि मैं चाहता हूं कि वो मुझे औरत समझते हुए मेरे साथ पेश आवे. कभी-कभी मुझे लगता है कि वो मेरे साथ धोखा कर रही है.”

एक लंबी खामोशी. फिर उन्होंने पूछा: “और आपको पता कैसे चला कि आप औरत हैं?”

मुझे लगा कि मैं अपने ही बनाए फंदे से अब बाहर आ रहा हूं. मैंने कहा- “आप तो जानती ही हैं कि हम औरतों का सोचने का तरीका कुछ अलग होता है.”

हम दोनों ने अपने गिलास खाली किए. बेयरे ने मेरे सामने नया गिलास रखा. उन्होंने हाथ हिलाकर मना किया, पैसे चुकाकर वापस जाने लगी. अपना जैकेट पहनकर मेरी ओर देखते हुए मुस्कराकर उन्होंने कहा- “कहानी दमदार थी.”

‘घाट-घाट का पानी’ के सभी अंक पढने के लिए कृपया यहां क्लिक करें

First Published on:
Exit mobile version