चुनाव चर्चा: बिहार को रौदेंगे या रफ़्तार देंगे राजनीति के डिजिटल घोड़े !

मोदी सरकार के लिए कोरोना काल में इसी बरस अक्तूबर-नवम्बर में संभावित बिहार विधान सभा चुनाव के मायने बहुत गहरे हैं। 2014 के लोक सभा चुनाव से ही मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी  (भाजपा) के रणनीतिकार बने हुए पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने 7 जून को दिल्ली से  बिहार वासियो को कोरोना काल की पार्श्वभूमि में सम्बोधित अपनी डिजिटलरैली में दावा किया कि बिहार में पहले ‘जंगल राज’ था अब जनता राज है. शाह जी ने स्पष्ट कर दिया है कि एनडीए, अगला बिहार चुनाव मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के ही नेतृत्व में लड़ेगी .ये मोदी सरकार के लिए बिहार चुनाव के गहरे मायने होने का तकाजा था कि शाह जी को एक ही सांस में इस रैली का चुनाव से कोई सम्बन्ध नहीं होने और चुनाव में एनडीए की दो-तिहाई बहुमत से जीत होने का परस्पर-विरोधी दावा करने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

मीडिया विजिल पर हमारी #चुनावचर्चा की दूसरी पारी की शुरुआत ही मंगलवार 9 जून को इस रैली के विस्तृत विश्लेषण से हुई थी, जिसे दोहराने की जरुरत नहीं है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल तो अब खुल कर कहते हैं कि अमित शाह की भारी खर्च से राज्य भर में एलईडी स्क्रीन ( टीवी टाइप ) सैट के जरिये दिखाई गई इस रैली से उनकी पार्टी के ‘डिजिटल चुनाव प्रचार’ का शंखनाद हो गया है। 

ये चुनाव बिहार की 17 वीं विधान सभा के लिए होने हैं. मौजूदा 16वीं विधानसभा का गठन 20 नवम्बर 2015 को हुआ था। जिसकी पहली बैठक कुछेक दिन बाद हुई थी। उसका पांच वर्ष का निर्धारित कार्यकाल 29 नवम्बर को खत्म होना है। कार्यकाल की गणना सदन की पहली बैठक के दिन से की जाती है। राज्य विधान मंडल के इस निम्न सदन में कुल 243 सीट हैं. इनमें राज्य के छठी बार मुख्यमंत्री पद पर विराजे हुए नीतिश कुमार के जनता दल (युनाइटेड) के 73 और इस सरकार में शामिल भाजपा के 53 विधायक है. कुुुल 131 विधायकों के समर्थन वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए)  की सरकार में शामिल केंद्रीय मंत्री रामविलास  पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के भी दो विधायक हैं. इस सरकार को चार निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है. विजय कुमार चौधरी विधान सभा के मौजूदा अध्यक्ष हैं. भाजपा के मोर्चा का नाम बिहार के सिवा हर राज्य में अलग-अलग है। बिहार के बाहर एनडीए का अस्तित्व सिर्फ संसद में है।


इतिहास

बिहार विधान सभा 1937 से अस्तित्व में है. तब इसके 152 मेम्बर होते थे, जिसे आज़ादी के बाद 1952 में कराये गये प्रथम आम चुनाव में एक मनोनीत सदस्य समेत 331 कर दिया गया. उस चुनाव के बाद डा. श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री और डा अनुग्रह नारायण सिंह उपमुख्यमंत्री बने .

विधान सभा की सीट बढ्ती-घट्ती रही है. 1957 के आम चुनाव में 318 सीट थी जो 1977 के चुनाव में 324 हो गई. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व वाली एनडीए द्वारा संसद में पारित अधिनियमों के तहत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के पुनर्गठन से क्रमश: छत्तीसगढ, उत्तराखंड और झारखंड राज्य बने जो खनिज सम्पदा से भरपूर हैं.

राँची अवस्थित जनसेवी संगठन पीपुल्स मिशन के अध्यक्ष एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू ) नई दिल्ली से शिक्षित राजनीतिक विश्लेषक उपेंद्र प्रसाद सिंह के अनुसार इन तीनों राज्यों का गठन वहां स्वायत्तता की जन आकांक्षाओं के कारण नहीं बल्कि कम खनिज सम्पदा की लूट के लिए लालायित लम्पट पूंजीपतियों के लिए किया गया। इसकी विस्तृत चर्चा हम अलग से फिर कभी करेंगे।

बहरहाल, पृथक झारखंड राज्य बन जाने से बिहार विधान सभा की सीटें घट कर 243 रह गई. झारखंड में पिछले वर्ष ही चुनाव हुए हैं। वहाँ अमित शाह की सियासी ‘चाणक्यगीरी’ की एक नहीं चली और वहाँ झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन की साझा सरकार कायम है.

 

अमित शाह की चाणक्यगीरी

भाजपा,  2015 विधान सभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) और काँग्रेस के महागठबंंधन से परास्त हो गई थी। अमित शाह ने तब सार्वजनिक रूप से यहां तक कह दिया था कि चुनाव में महागठबंधन की हार निश्चित है। उन्होंने ये भी कहा था कि इतने बजे परिणाम निकलेंगे. इतने बजे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंत्रिमंडल की बैठक बुला कर अपना इस्तीफा देने राजभवन जायेंगे। और उसके बाद भाजपा की खुद की सरकार का गठन हो जाएगा। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यह दीगर बात है कि महागठबंधन की नीतीश कुमार के ही मुख्यमंत्रित्व में बनी नयी सरकार ज्यादा समय टिक नही सकी। कारण जो भी थे, नीतीश कुमार ने पलटी मारी। उन्होंने अपनी सरकार से महागठबंधन के अन्य दलों को बाहर करने के लिए 26 जुलाई 2017 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा से महागठबंधन की वह सरकार गिर गई। नितीश कुमार ने नए सिरे से भाजपा को शामिल करते हुए सरकार बना ली। 

 

उलट -पुलट की सरकार

बिहार में नीतीश कुमार की इस उलट-पुलट की सरकारके गठन के लिए भी क्या अमित शाह की चुनावी चाणक्य बुद्धि को ही श्रेय देना चाहिए? सब जानते हैं कि यह सब उस महागठबंधन के सबसे बड़े घटक, आरजेडी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के पुत्र एवं तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और उनके परिजनों को कथित भ्रष्टाचार के नए आरोपों में  ृमोदी सरकार के इशारे पर केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जुलाई 2017 में घेर लिए जाने की पृष्ठभूमि में हुआ था। इसकी कलई बहुत बाद में सीबीआई के आंतरिक उठापटक में उसके ही एक प्रताड़ित’  अफसर के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामा में किये रहस्योद्घाटन से खुल चुकी है।

नीतीश कुमार ने 26 जुलाई 2017 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी वो सरकार खुद गिरा दी। उन्होंने अगले ही दिन यानि 27 जुलाई को उसी भाजपा से समर्थन लेकर अपनी नई सरकार बना ली जिसके साथ फिर कभी हाथ न मिलाने की वे खुले आम कसम पर कसम खा चुके थे। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की छठी बार शपथ लेने के अगले दिन 28 जुलाई को विधान सभा में अपनी सरकार की ओर  से पेश विश्वास मत प्रस्ताव के समर्थन में बहुमत से कुछ ज्यादा कुल 131 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया।


डिजिटल चुनाव प्रचार

दरअसल प्रदेश भाजपा ने, अमित शाह की डिजिटल रैली से पहले ही चुनावी मुद्रा में आकर 31 मई को  प्रधानमंत्री के मन की बात सप्त ऋषि के साथके नाम से चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर दिया था। पार्टी के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं के बीच चलाये गये इस अभियान में मोदी जी के रेडियो से प्रसारित की जाने वाली मन की बातकार्यक्रम की रिकार्डिंग सुनाई गई। शाह जी की रैली के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पार्टी के जिला अध्यक्षों के साथ वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिये गहन विचार विमर्श भी किया। खबर है कि  पार्टी ने राज्य में 72727 पोलिंग बूथों पर अपने कार्यकर्ताओं को नेट कनेक्शन ऐसे नए मोबाइल हैंडसेट खरीद कर प्रदान किये हैं जिनसे मुफ़्त में असीमित समय तक व्हाट्स अप फोन किये जा सकते हैं। जनता दल (यूनाइटेड)  ने भी लॉक डाउन में  चुनाव प्रचार के लिए अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शाहजी की 7 जून की रैली के तुरंत बाद अपनी पार्टी के जिला अध्यक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मंत्रणा की.

मीडिया की खबरों के मुताबिक़ मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने भी बिहार चुनाव की तैयारी के लिए अपनी कमर कसने के साफ संकेत देते हुए कहा है कि इस चुनाव के लिए नेशनल वोटर सर्विस पोर्टल और निर्वाचन आयोग के ईसीआई ऐप को चुस्त दुरुस्त किया जा रहा है।

 

विपक्ष 

विधान सभा में मुख्य विपक्ष, आरजेडी की बागडोर संभाले हुए तेजस्वी यादव को 15 बरस से मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के सामने राजनीतिक समझ के हिसाब से बहुत कमजोर माना जाता है। लेकिन उनकी अपनी पार्टी पर अच्छी पकड़ है। उनके भाजपा विरोधी विभिन्न दलों के आला नेताओं से अच्छा निजी सम्बन्ध बताया जाता है। 

कोरोना काल में अवाम, मोदी सरकार से ज्यादा नीतीश सरकार से नाराज़ बताई जाती है जिसने बिदेसिया मजदूरों के बिहार लौटने के केंद्र सरकार के प्रस्तावित प्रबंध का औपचारिक विरोध किया था। ये मजदूर बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं जो बिहार से बाहर अपनी कमाई का आधा से कुछ अधिक हिस्सा भेजते रहे हैं। कोई मजदूर बिहार में रोजाना औसतन 300 रूपये से ज्यादा नहीं कमा पाता है। बिहार से बाहर उन्हें प्रतिदिन करीब एक हज़ार रूपये की मजदूरी मिल जाती है। लॉक डाउन में बिहार से बाहर अटके हुए बिदेसियामजदूरों में से करीब 20 लाख के श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से या सड़क मार्ग से बस, ट्रक आदि वाहनों के अपने प्रबंध या फिर कई कई दिन पैदल चल कर ही अपने गृहराज्य लौट आने का अनुमान है. ये मजदूर चुनाव में क्या भूमिका निभाएंगे ये भविष्य के गर्भ में है।

लालू और नीतीश की तस्वीर, लेख में दर्ज मशहूर पत्रकार संकर्षण ठाकुर की किताब से साभार। 



वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा का मंगलवारी साप्ताहिक स्तम्भ ‘चुनाव चर्चा’  फिर हाज़िर है। लगभग साल भर पहले, लोकसभा चुनाव के बाद यह स्तम्भ स्थगित हो गया था। मीडिया हल्कों में सी.पी. के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण फोटो भी सामने लाने का अनुभव रखते हैं। सी.पी. आजकल बिहार में अपने गांव में हैं और बिहार में बढ़ती चुनावी आहट और राजनीतिक सरगर्मियों को हम तक पहुँचाने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता था- संपादक



 

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