नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ असम में आन्दोलन तेज हो गया है. बुधवार को राज्यसभा में इस बिल के पास होने के बाद आन्दोलन ने हिंसक रूप ले लिया है जिसके चलते असम में इन्टरनेट सेवा काट दी गई और भारी मात्रा में सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है. कल रात असम की युवा कवयित्री कविता कर्मकार को अपने गाँव से गुवाहाटी अपने रिश्तेदारों के यहां जाना था. उन्होंने अपना अनुभव साझा किया है. पढ़िए: (संपादक )
यह ढाई घंटे जीवन भर मैं नहीं भूल पाऊंगी, शायद कोई भी नहीं भुला पायेगा. इससे अधिक बुरा क्या हो सकता है कि मेरा राज्य जल रहा है! जुलूस में जलते हुए मशाल की रौशनी मैं देख रही हूँ, आक्रोश से भरे चेहरे और हिंसक भावनाओं को, जलकर राख हो चुकी 3 बसें और कई छोटी-बड़ी गाड़ियां मेरे आँखों के सामने जला दी गईं.
सामूहिक विरोध और गर्जन को देखा मैंने अपनी आँखों से बहुत नजदीक से, देखा कैसी कुचल दी गई संविधान और संवैधानिक न्याय व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा.
विश्वविद्यालय की परीक्षा चल रही है लेकिन छात्र विरोध और विक्षोभ पथ पर हैं, सो नहीं पा रहे हैं रात-रात भर, पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं.
याद आ रहे हैं अस्सी के दशक के असम आन्दोलन के दिन, गोला-बारूद, आर्तनाद की रातें. ये विरोध किसी सम्प्रदाय अथवा जात के विरुद्ध नहीं, यह सामूहिक विरोध अन्यायपूर्ण नागरिकता संशोधन विधेयक(सीएबी) के विरुद्ध है.
स्वत: रूप में लोग जुलूस में शामिल हो रहे हैं, अपने लिए खड़े हो रहे हैं, लड़ रहे हैं अपनी मातृभाषा और संस्कृति के लिए. जब तक उनके सब्र का बाँध नहीं टूटा वे शांत थे.
असम को यह बिल मंजूर नहीं, क्योंकि समस्त असमिया अस्मिता खतरे में पड़ जाएगी सीएबी के आने से, भाषिक, सांस्कृतिक सभी आयाम में.
विदेशी घुसपैठियों की समस्या समाधान हेतु असम संधि अनुसार 1971 के बाद आये हुए विदेशियों को असम से बाहर निकालने की बात तय हुई थी चाहे वे किसी भी धर्म या भाषा के बोलने वाले लोग हों. धर्म और भाषा के आधार पर नागरिकता देने की बात को असमवासी स्वीकार नहीं करेंगे किसी भी हाल में.
अन्य राज्यों की तुलना में सीएबी असम के लिए कई मायनों में भयावह है क्योंकि इस बिल के अनुसार धर्म के आधार पर 1971 के बाद आये हुए सभी हिन्दू विदेशियों को असम में रहने का अधिकार दिया जायेगा. असम की सीमित जमीन और सम्पदाओं के नज़र में रखते हुए इतनी बड़ी संख्या में विदेशी घुसपैठियों का असम में बसना कितना भयावह संकट पैदा कर सकता है और इससे कितना विरूप प्रभाव पड़ेगा ये कोई भी आसानी से बता सकता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि नागरिकता बिल के आने से असम में असमिया भाषी लोग संख्यालाघुओं में परिवर्तित हो जायेंगे और असम में असमिया भाषा ही संकट में आ जाएगी. भाषा ही नहीं रहेगी तो अस्तित्व क्या रहा जायेगा असमिया जाति का? असमिया जाति की रक्षा के लिए ही लोग ऐसे एकजुट होकर निकल आये हैं.
असम को याद है सन 1986 में स्कूल, कालेजों से कोर्ट कचरियों से असमिया भाषा हटा दी गई थी. बड़ी मुश्किलों से आन्दोलन और हजारों लोगों के आत्मबलिदान से फिर असमिया भाषा को मान्य भाषा के रूप में लाया गया.
1971 से 2011 तक 12 फीसदी असमियाभाषी कम हुए, यही चिंता का मुख्य कारण है. 1971 के जनगणना के अनुसार असमियाभाषी लोग 61 प्रतिशत थे, 2011 की जनगणना में असमिया भाषा बोलने वाले लोग मात्र 48 फीसदी बचे थे.
सीएबी के फलस्वरूप असमिया भाषा असम से लुप्त होने की सम्भावना अधिक है. मातृभाषा का लुप्त होना मतलब एक जाति का परिचय लुप्त होना है, सर्वनाश होना है. इसलिए हर जात-धर्म के असमिया लोग एकत्र होकर खड़े हैं आज इस बिल के खिलाफ.
हाँ, मैं भी सीएबी नहीं चाहती, न ही अपने राज्य और शहरों को जलता हुआ देखना चाहती हू. दंगों से गुजरना क्या होता है कैसे बताऊँ ?
मैं सदमे में हूँ, सहमी हुई हूँ ….और नहीं लिख पाऊंगी ….
कविता कर्मकार असमिया भाषा की युवा कवयित्री हैं