अकबर ‘सुलह-कुल’ था, आप औरंगज़ेब की टीम के खिलाड़ी हैं योगी जी!

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौक़ा पाते ही मुग़लों या उनसे जुड़ी किसी भी चीज़ पर अनाप-शनाप बोलने लगते हैं। आमतौर पर उसमें इतिहासबोध ही नहीं, ऐतिहासिक तथ्यों का भी अभाव होता है। इतिहाकार डॉ.सौरभ वाजयेपी ने इस पर अफ़सोस जताते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी लिखी है। पढ़ें-

अकबर अपने समय से आगे सोचता था। आप अपने समय से पीछे सोचते हैं, योगीजी। वो 16 वीं सदी में जोड़ने की कोशिश में था। आप 21 वीं सदी में तोड़ने की कोशिश में हैं। आप साधु के भेष में राजा बनना चाहते हैं। वो राजा के भेष में साधु बनने को उतावल संस्कार में खोजते हैं। वो धर्म को आध्यात्म में तलाशता था। आप धर्मों का भेद बताने निकले हैं। वो धर्मों का सार बताने निकला था। आप इतिहास बदलने को आतुर हैं। वो इतिहास बनाने को आतुर था। वो मुस्लिम था लेकिन सूर्य की पूजा करता था। आप हिन्दू हैं लेकिन अंधकार की ताकतों के साथ हैं।

उसने सब धर्मों के संवाद के लिए इबादतखाना खोला था। आप सब धर्मों का विवाद बढ़ाने के लिए खजाना खोले बैठे हैं। उस मुसलमान ने अपनी चित्रशाला में राम, सीता, हनुमान के चित्र बनवाए। इस्लाम में छवि चित्रों पर पाबंदी उसे रोक नहीं सकती थी। आप हिन्दू होकर इस्लाम का नाम सुनना नहीं चाहते।

उसने एक कट्टरपंथी मौलवी को हज करने भेज दिया था ताकि वो रोज रोज उसे ना बताए कि इस्लाम में क्या हराम है, क्या शिर्क है? आप तो स्वयं कट्टरपंथ को अपने राज्य की विचारधारा बनाए बैठे हैं। उसने 400 साल पहले देख लिया था हिन्दुओं और मुसलमानों को एक होना होगा। आप इक्कीसवीं सदी में अपनी आंख का अंधबिंदु नहीं मिटा पा रहे। (अकबर की नीति को सुलह-कुल यानी सबको साथ लेकर चलने वाली कहा गया-संपादक)

उसमें और आपमें काफ़ी फर्क है। वो मध्यकाल का बादशाह था, चाहता तो मुसलमानों का राजा बन जाता। लेकिन वो सूफ़ी संतों का मुरीद बन तौहीद ए इलाही की ओर मुड़ गया। आप एक धर्मनिरपेक्ष संविधान में मुख्यमंत्री होते हुए कट्टर हिन्दू बन बैठे। फर्क इतना है योगी महाराज कि उसका नाम देश जोड़ने वालों और आपका नाम तोड़ने वालों में लिखा जाएगा।

माफ़ कीजिएगा! आप औरंगजेब की टीम के खिलाड़ी हैं।

*मुख्य तस्वीर में योगी आदित्यनाथ के अलावा अकबर का फ़तेहपुर सीकरी में बनवाया इबादतख़ाना और वह चित्र जिसमें अकबर यूरोप से आये ईसाईयों से धर्म चर्चा कर रहा है।



डा.सौरभ बाजपेयी दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाते हैं और राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट के संयोजक हैं।



 

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