सुप्रीम कोर्ट ने ‘अर्णव रिपब्लिक’ की रिपोर्टिंग को बताया नाक़ाबिले बरदाश्त!

महाराष्ट्र में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि अर्नब गोस्वामी ने पालघर लिंचिंग और बांद्रा में प्रवासियों को लेकर सांप्रदायिक घृणा से भरी रिपोर्टिंग की। सीजेआई बोबडे ने कहा कि अदालत प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता है कि मीडिया के व्यक्ति से सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए। सीजेआई ने कहा, "रिपोर्टिंग में जिम्मेदारी निभानी होगी। कुछ क्षेत्रों में सावधानी के साथ चलना होता है। एक अदालत के रूप में, हमारी महत्वपूर्ण चिंता शांति और सद्भाव है।"

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस.ए.बोबडे ने आज रिपब्लिक टीवी और अर्णव गोस्वामी की रिपोर्टिंग शैली पर गंभीर टिप्पणी की। सीजेआई ने कहा कि इसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता। अदालत ने गोस्वामी से हलफ़नामा देकर बताने को कहा है कि वो भविष्य में क्या करना चाहते हैं। अदालत गोस्वामी के खिलाफ जाँच के लिए महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

मुख्य न्यायाधीश ने अर्णव गोस्वामी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से कहा, “आप रिपोर्टिंग के साथ थोड़े पुराने जमाने के हो सकते हैं। सच कहूं तो मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह हमारे सार्वजनिक बहस का स्तर नहीं रहा है।”

महाराष्ट्र में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि अर्नब गोस्वामी ने पालघर लिंचिंग और बांद्रा में प्रवासियों को लेकर सांप्रदायिक घृणा से भरी रिपोर्टिंग की। सीजेआई बोबडे ने कहा कि अदालत प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता है कि मीडिया के व्यक्ति से सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए। सीजेआई ने कहा, “रिपोर्टिंग में जिम्मेदारी निभानी होगी। कुछ क्षेत्रों में सावधानी के साथ चलना होता है। एक अदालत के रूप में, हमारी महत्वपूर्ण चिंता शांति और सद्भाव है।”

मुख्य न्यायाधीश ने साल्वे से कहा कि अदालत उनके मुवक्किल से जिम्मेदारी का आश्वासन चाहती है। साल्वे ने जवाब दिया कि वह अदालत के विचारों से सहमत हैं लेकिन मौजूदा एफआईआर ठीक नहीं है। यहां तक ​​कि पिछले हफ्ते, रिपब्लिक टीवी की पूरी संपादकीय टीम के खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज की गई है। अदालत ने दो सप्ताह के लिए सुनवाई स्थगित करते हुए गोस्वामी को एक हलफनामा दायर करने को कहा, जिसमें उन्हें बताना है उन्होंने क्या करने का प्रस्ताव दिया है। महाराष्ट्र सरकार को भी गोस्वामी के खिलाफ दर्ज एफआईआर की एक सूची प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।

उधर, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से जांच को रोकने के उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि पुलिस गोस्वामी को गिरफ्तार नहीं करेगी, भले ही जांच को फिर से शुरू किया जाये और पूछताछ के लिए उपस्थित होने के लिए गोस्वामी को 48 घंटे पूर्व सूचना दी जायेगी। सिंघवी ने कहा कि कुछ लोगों को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता है। इस पर सीजेआई बोबडे ने टिप्पणी की कि “कुछ लोगों को उच्च तीव्रता के साथ लक्षित किया जाता है।” सीजेआई ने कहा, “यह इन दिनों संस्कृति है। कुछ लोगों को उच्च सुरक्षा की आवश्यकता है।”

दरअसल मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज दो प्राथमिकी में जांच के आदेश पर रोक लगा दी गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गोस्वामी ने अप्रैल में बांद्रा रेलवे स्टेशन पर प्रवासी श्रमिकों के एकत्र होने और पालघर लिंचिंग की घटनाओं पर बहस करते हुए सांप्रदायिक घृणा को बढ़ाया था। बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति रियाज चागला की खंडपीठ ने “प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता” कह कर जाँच को निलंबित कर दिया था। राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

लाइव लॉ के इनपुट के साथ।


 

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