पिछली गलतियों को वर्तमान और भविष्य में शांति भंग करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। यह टिप्पणी दिल्ली की एक अदालत ने कुतुब मीनार परिसर के भीतर हिंदू और जैन देवताओं की मूर्तियों को स्थापित करने और उनकी पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले एक दीवानी मुकदमे पर अयोध्या भूमि विवाद मामले में किए गए फैसले का हवाला देते हुए की है। इसी के साथ अदालत ने मुकदमे में दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
यह है मामला…
यह मुकदमा अधिवक्ता विष्णु एस जैन द्वारा दायर किया गया था। इसने ट्रस्ट अधिनियम 1882 के अनुसार, केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाने और कुतुब के क्षेत्र में स्थित मंदिर परिसर के प्रबंधन व प्रशासन को सौंपने के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग की गई थी। दायर मुकदमे में दावा किया गया कि मोहम्मद गोरी की सेना में एक जनरल रहे कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा 27 मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर उनकी सामग्री का पुन: उपयोग करके परिसर के अंदर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया था।
कोर्ट ने कहा भारत का सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इतिहास रहा है…
मामले को खारिज करते हुए दीवानी न्यायाधीश नेहा शर्मा ने कहा, भारत का सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इतिहास रहा है। इस पर कई राजवंशों का शासन रहा है। इतिहास को समग्र रूप में स्वीकार करना होगा। अदालत ने सवाल करते हुए कहा, क्या हमारे इतिहास से अच्छे को बरकरार रखा जा सकता है और बुरे को मिटाया जा सकता है? उन्होंने 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अयोध्या फैसले का हवाला दिया। न्यायाधीश ने आदेश में इसके एक हिस्से पर प्रकाश डाला। जिसमें कहा गया था, ‘हम अपने इतिहास से वाकिफ हैं और देश को इसका सामना करने की जरूरत है, आजादी एक महत्वपूर्ण क्षण था। जो लोग अतीत के घावों को भरने के लिए कानून को अपने हाथ में लेते हैं, उनके द्वारा ऐतिहासिक गलतियों का समाधान नहीं किया जा सकता है।’