असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को से बाहर किये गये लोगों को जो मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है उसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है. लोगों में एक अनिश्चितता, चिंता और भय के वातावरण पैदा हो गया है जिसके चलते सिर्फ 13 दिनों की अवधि में छह लोगों ने अपनी जान ले ली. 26 जून,2019 को अतिरिक्त अपवर्जन सूची प्रकाशित होने के बाद इन लोगों ने आत्महत्या कर ली. एनआरसी के कारण अब तक 57 लोगों की मौत हो चुकी है.
सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस संगठन के जामसेर अली ने असम में आत्महत्या के ऐसे 57 मामलों की सूची बनाई है.उनका दावा है कि इन आत्महत्याओं का संबंध, नागरिकता छिनने की संभावना से उपजे सदमे और तनाव से है.
26 जून को असम सरकार ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) मसौदे की नई निष्कासन सूची जारी की,जिसमें से 102462 लोगों को बाहर किया गया है.
निराशा और संभावित ‘देश निकाला’के दवाब में दारंग जिले के दलगांव पुलिस स्टेशन के अधीन एक गाँव की युवती नूर नेहर बेगम ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली.
इसके बाद बोंगाईगाँव जिले के अभयपुरी थाने के अंतर्गत डूमरगुरी गाँव के एक दिहाड़ी मज़दूर जोय्नल आबेदीन 3 जुलाई को खुद को लटका लिया.
बारपेट जिले के कायाकुची थाने के अंतर्गत बंतीपुर गाँव के 37 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर रहीम अली ने यह जानकर आत्महत्या कर ली कि उनके तीन बच्चों के नाम 26 जून, 2019 को प्रकाशित अतिरिक्त बहिष्करण सूची में शामिल किए गए हैं.
एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में आवश्यक लिंकेज दस्तावेज प्राप्त करने में परेशानी के चलते नलबाड़ी जिले की कुलसुम बेगम ने भी अपनी जान ले ली. विवाहित महिलाओं के बीच यह एक गंभीर संकट है क्योंकि उनमें से अधिकांश के पास जन्म या शिक्षा प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए उनके पिता से संबंध का प्रमाण देना मुश्किल है.
8 जुलाई को बक्सा और धेमाजी जिले में जुड़वां आत्महत्याएं हुईं. बक्सा जिले के गबरदाना पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले चुनपुरा गांव के 59 वर्षीय अंबर अली 1997 से डी वोटर मामलों का सामना कर रहे थे.जिसके चलते वह काफी समय से परेशान चल रहे थे. जब उनको अपने परिवार के सदस्यों का नाम एनआरसी के मसौदे में दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने बारपेटा रोड के पास गांधारीपारा में रेल से कट कर जान दे दी.
8 जुलाई को ही एक अन्य घटना में ऊपरी असम में धेमाजी जिले के सिलापाथर के अमर मजुमदार ने खुद को फांसी लगा ली.जबकि कथित सभी वैध दस्तावेज होने के बावजूद वह एनआरसी की सुनवाई में उनको परेशानी का सामना कर रहा था.
जामसेर अली के अनुसार, असम के बारपेटा जिले में एक दिहाड़ी मजदूर 46 साल के सैमसुल हक ने पिछले नवंबर में आत्महत्या कर ली क्योंकि उनकी पत्नी मलेका खातून को सूची में शामिल नहीं किया गया था.
इन मौतों पर सभी मानवाधिकार संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. भारतीय नागोरिक अधिक्कार सुरक्षा मंच, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU), ऑल BTC माइनॉरिटी स्टूडेंट यूनियन (ABMSU), ऑल BTC बंगाली यूथ स्टूडेंट फेडरेशन (ABBUF) और विभिन्न अन्य संगठनों ने आरोप लगाया है कि लोगों के पास सभी प्रकार के कानूनी दस्तावेजों होने के बावजूद भी सामान्य लोगों को अनुचित उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. इन संगठनों ने कहा है कि आम जनता देश की संवैधानिक और कानूनी व्यवस्था पर विश्वास खो रही है.
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता प्रसेनजीत बिस्वास इस रजिस्टर को एक बहुत बड़ी मानवीय आपदा करार देते हैं जो धीरे धीरे विकराल बनती जा रही है और जिसमें लाखों नागरिक राज्यविहीन बनाए जा रहे हैं और उन्हें प्राकृतिक न्याय के सभी तरीकों से वंचित किया जा रहा है.
एक शोधकर्ता अब्दुल कलाम आजाद, साल 2015 में जबसे रजिस्टर अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हुई तबसे आत्महत्याओं का रिकॉर्ड रख रहे हैं. वो कहते हैं, “पिछले साल जबसे एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट प्रकाशित हुआ है तबसे इस तरह के मामले बढ़े हैं.”
बीते वर्ष 30 जुलाई को एनआरसी मसौदे के प्रकाशन के बाद अक्टूबर महीने में मंगलदोई ज़िले के 74 वर्षीय अध्यापक निरोद कुमार दास ने सुसाइड किया था.उनके परिवार के सदस्यों ने बताया था कि राज्य में 30 जुलाई को प्रकाशित एनआरसी के पूर्ण मसौदे में नाम न होने के बाद से दास परेशान थे.
अपने सुसाइड नोट में दास ने लिखा था कि वह एनआरसी प्रक्रिया के बाद एक विदेशी के तौर पर पहचाने जाने के अपमान से बचने के लिए यह कदम उठा रहे हैं.
भारत सरकार का कहना है कि राज्य में गैर कानूनी रूप से रह रहे लोगों को चिह्नित करने के लिए ये रजिस्टर जरूरी है. इससे पहले बीते वर्ष जुलाई में जारी एक ड्राफ्ट प्रकाशित किया था जिसमें 40 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं था जो असम में रह रहे हैं. इसमें बंगाली लोग हैं, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं.
सबरंग पर प्रकाशित जामसेर अली की रिपोर्ट के आधार पर