वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन से दस घंटे पूछताछ, मोबाइल ज़ब्त, BEA चुप !

सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनकारियों को दिल्ली दंगे का सूत्रधार साबित करने में जुटी दिल्ली पुलिस ने अब वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन को निशाने पर लिया है। 10 अगस्त को लोधी कॉलोनी स्थित स्पेशस सेल के दफ़्तर में उनसे तक़रीबन दस घंटे पूछताछ हुई। बाद में उनका मोबाइल फोन ज़ब्त करके उन्हें घर छोड़ दिया गया।

कई टी.वी.चैनलों की लान्चिंग टीम का हिस्सा रहे प्रशांत टंडन करीब 25 बरस से पत्रकारिता में हैं। शुरुआत अख़बारों से करने वाले प्रशांत ने न्यूज़ चैनलों के अहम पदों पर काम करते हुए ख़ास तरह की साख अर्जित की है। उनकी पहचान एक बेहद पढ़-लिखे और तकनीक-दक्ष पत्रकारों में होती है। कुछ सालों से वे स्वतंत्र पत्रकारिता करते हुए मानवाधिकार और पर्यावरण से जुड़े तमाम मोर्चों पर सक्रिय हैं।

प्रशांत ने इस पूछताछ की जानकारी ख़ुद ट्विटर पर दी जिसे स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने रीट्वीट करते हुए दिल्ली विश्विवद्यालय के शिक्षक अपूर्वानंद से हुई पूछताछ की याद दिलाया। उन्होंने साफ़ कहा कि यह कहीं से भी जाँच नहीं लगती

 

 

अजीब बात ये है कि प्रशांत टंडन के साथ इस पुलिसिया व्यवहार पर ब्राडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन ने चुप्पी साध रखी है जिसके प्रशांत संस्थापक सदस्य हैं। एक ज़माना था कि जब किसी तरह इस तरह का व्यवहार होने पर बाकी पत्रकार थाना घेर लेते थे। लेकिन जैसे तमाम संस्थाओं ने चुप्पी साध रखा है, वैसा ही हाल बीईए का है। उसके अध्यक्ष, आज तक के मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद हैं। जब आज तक पुलिसिया कहानी को सनसनीख़ेज़ बनाकर बुद्धिजीवियों के आखेट पर जुटा है तो उम्मीद भी क्यों करें।

पता चला है कि प्रशांत से एक व्हाट्सऐप ग्रुप में होने की वजह से पूछताछ की गई। DPSG (DELHI PROTEST SUPPORT GROUP)  नाम का यह व्हाट्सऐप ग्रुप सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के समय बनाया गया था जिसमें तमाम बुद्धिजीवी, लेखक,कार्यकर्ता जुड़े हुए थे। ये सभी विभिन्न वैचारिक पृष्ठभूमि से थे, लेकिन इस आंदोलन को समर्थन देना, संविधान बचाने के लिए ज़रूरी समझते थे। लेकिन अपने आकाओं के निर्देश पर दिल्ली पुलिस ने इस ‘दंगाई’ होने का सबूत मान लिया है। सारी पूछताछ, इसी परिप्रेक्ष्य में हो रही है। पुलिस ने प्रशांत से खोद-खोद कर ग्रुप में मौजूद लोगों से परिचय की बाबत जानकारी मांगी। प्रशांत का कहना है कि किसी दौर में किसी खास कार्यक्रम के लिए बनाये गये ग्रुप के सभी सदस्यों को निजी तौर पर जानना न ज़रूरी है और न मुमकिन। ऐसे वक्तों पर न जाने कितने लोगों से मुलाकात होती है जिनकी वैचारिक पृष्ठभूमि या दीगर बातों के बारे में न जानकर आप सिर्फ इतना जानते है कि किसी साझा कार्यक्रम में वह शरीक है।

सीएए-एनआरसी का विरोध देश के तमाम विरोधी दलों ने किया था। लोगों को यह पूरा अधिकार है कि वे किसी कानून का विरोध करें। उसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन करें। लेकिन पुलिस की नज़र में ये सब अपराध हो गया है।

उधर, यह आशंका भी जतायी जा रही है कि पहले अपूर्वानंद और अब प्रशांत टंडन का मोबाइल ज़ब्त करने के पीछे पुलिस का मक़सद क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोबाइल में मौजूद संदेशों, मेल या कांटेक्ट नंबरों का संदर्भहीन इस्तेमाल अपराधी साबित करने में किया जाएगा। बहरहाल, सरकार ने तो अपना चेहरा दिखा दिया है, सवाल ये है कि दिल्ली के पत्रकार और बुद्धिजीवी कब चुप्पी तोड़ेंगे।



 

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