RTI ने खोली पोल : कोरोना काल में स्वास्थ्य बीमा की जगह सीएए के प्रचार में जुटी रही मोदी सरकार!

सरकारें जनता के हित के लिए कई सरकारी योजनाएं निकलती हैं। उसके बारे में लोगों को पता चले जिससे लोग इसका लाभ ले सके इसके लिए विज्ञापन के ज़रिए प्रचार भी करती। क्योंकि सरकारी योजनाओं का काम उन लोगो की मदद करना हैं जो आर्थिक रूप से कमज़ोर है ना की सिर्फ अपने कामों की लिस्ट में एक और योजना को मौजूद करके लिस्ट को बड़ा बनाना। सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना (पीएम जय) जिसकी जरूरत सबसे ज़्यादा कोरोना काल में थी। लेकिन सरकार ने उस समय इसका विज्ञापन कर लोगों को जागरूक करने में खर्च करना शायद ज़रूरी नही समझा। बीजेपी सरकार द्वारा जितना ख़र्च ‘पीएम जय’ पर किया गया उससे कहीं अधिक ख़र्च नागरिकता संशोधन क़ानून, नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर और कृषि क़ानूनों जैसे विवादित क़ानूनों से जुड़े विज्ञापनों पर किया।

आयुष्मान भारत योजना क्या है?

कुछ लोगो को इस योजना के बारे पता होगा, लेकिन शायद कुछ ऐसे भी लोग होंगे जिन्हीने नाम तो सुना होगा पर पूरी तरह इस योजना से वाकिफ नहीं होंगे। इसका कारण भी यही है की सरकार ने इसका विज्ञापन ज़रूरत के योग्य नहीं किया, जिससे जिन्हे इसकी ज़रूरत थी उन्हें इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नही थी। बता दें की मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना (एबीवाई) में समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा मिलती है। एबीवाई को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम जय) भी कहा जाता है।

इसके तहत देश के 10 करोड़ परिवारों को सालाना 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा मिल रहा है। आसान शब्दों में कहें तो भारत में बेहतर इलाज के लिए ग़रीबों को आर्थिक मदद देने के लिए आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की शुरुआत हुई थी। इसके तहत एक गोल्डन कार्ड बनता है, जिसमे कई गंभीर बीमारियों के इलाज को शामिल किया गया है। लेकिन वर्ष 2020 में जब कोविड-19 महामारी ने देश में कदम रखा तो इसके असर को देखते हुए इस महामारी का इलाज भी इसमें शामिल कर दिया गया और बीमारी झेल रहे लोगों के लिए इसके दायरे को बढ़ाया गया था।

RTI के जवाब में पता चला सरकार का खर्च..

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूचना के अधिकार (RTI) का इस्तेमाल करते हुए कोरोना महामारी के दौरान विज्ञापन खर्च में मोदी सरकार की प्राथमिकताओं को समझने की कोशिश की गई और RTI के जरिए ब्यूरो ऑफ़ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन’ को अर्ज़ी भेजी गई। असल में यह वह विभाग है जो सरकार को दिए जाने वाले विज्ञापनों का लेखा-जोखा रखता है। RTI के जवाब में विभाग ने मई 2004 और जनवरी 2021 के बीच प्रिंट मीडिया, टेलीविजन, डिजिटल और आउटडोर प्लेटफॉर्म पर सरकारी विज्ञापनों पर खर्च के हिसाब का विवरण देने वाले 2,000 पन्नों के दस्तावेज़ भेजें।

मोदी सरकार का 2020-21 तक विज्ञापनों पर 212 करोड़ का ख़र्च..

अगर महामारी के दौरान सरकार के विज्ञापनों पर खर्च की बात करे तो आरटीआई में जो जानकारी मिली उसके अनुसार,अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच मोदी सरकार ने विज्ञापनों पर कुल 212 करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं। कारोना काल में जब देश के बड़े-बड़े कारोबारी ठप हो गए थे। गरीब, मजबूर, मजदूर खाने को मोहताज हो जाए थे तब गरीबों के लिए कोरोना के इलाज के पैसे जुटाना कितना मुश्किल होगा इसका अंदाज़ा भी नही लगाया जा सकता।

गरीबों को उस समय इलाज के लिए इस योजना की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, उन्हें इलाज में इससे कुछ मदद मिल सकती थी। लेकिन ऐसे बहुत ही कम लोग है जिन्होंने इस कार्ड से कोविड का इलाज कराया है। क्योंकि अपनी महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के विज्ञापन में सरकार ने करोड़ों में से मात्र दो लाख 49 हज़ार रुपये ही खर्च किए यानी सिर्फ 0.01% खर्च महामारी के समय में पीएम जय पर किया गया।

देश में केवल 3.76% लोग ही स्वास्थ्य बीमा लेते हैं..

आपको बता दें की इस खर्च के डेटा में आउटडोर मीडिया विज्ञापनों यानी सड़कों और बाहर लगने वाले पोस्टर वगैरह पर कितना ख़र्च किया गया इसका हिसाब शामिल नहीं है।  स्वास्थ्य बीमा से कितने लोग इलाज करते है इस बारे में बात करे तो भारत सरकार के ही नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, देश में केवल 3.76% लोग स्वास्थ्य बीमा लेते हैं जबकि विश्व स्तर पर लगभग 7.23% लोग स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठाते हैं।

सत्ता में आने से अब तक बीजेपी ने विज्ञापनों में 5,749 करोड़ किए ख़र्च..

प्रधानमंत्री का विज्ञापनों पर खर्च करना अब तो आम सी बात हो गई है। लोगो को इस बारे में सुनने की आदत भी हो गई होगी। विज्ञापनों के जरिए पार्टी का प्रचार करना भी नही बात नही है। COVID वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर से लेकर पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना में राशन के लिए नरेंद्र मोदी की फोटो वाले थैले देने तक विज्ञापन के ही दायरे में आता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर अक्सर विज्ञापनों में ज़रूरत से अधिक ख़र्च करने के आरोप लगते रहे हैं। जब से बीजेपी सरकार सत्ता (2014) में आई है तब से जनवरी 2021 तक विज्ञापनों में कुल 5,749 करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं। इस खर्च की तुलना अगर पहले की सरकार से की जाए तो यह रकम काफी ज़्यादा है। मोदी सरकार से पहले यूपीए सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में विज्ञापनों पर कुल 3,582 करोड़ रुपये ख़र्च किए थे।

‘पीएम जय’ में काम तो खर्च तो ज्यादा किसमे?

अब बात करते है सरकार ने 212 करोड़ विज्ञापनों पर जो खर्च किया उसमे से महामारी के दौरान जिस ‘पीएम जय’ योजना से गरीबों का भला हो सकता था उस पर अगर 0.01% ख़र्च किए तो वह कौन सी चीज़ है जिसे सरकार ने ‘पीएम जय’ से ज़्यादा महत्व दिया और उसके विज्ञापन में ज़्यादा ख़र्च किया। तो बता दें वह है सरकार का ‘मुमकिन है’ अभियान इसके अलावा नागरिकता संशोधन क़ानून, कृषि क़ानून और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर, जिन पर काफ़ी विवाद हुआ है। किस पर सरकार ने कितना खर्च किया इसकी जानकारी नीचे दी गई है जो बीबीसी को RTI के जवाब से प्रात हुई है….

सरकार की सकारात्मक छवि दिखाने वाले अभियानों पर ज्यादा खर्च..

RTI के जरिए पता चला कि आयुष्मान योजना के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकार ने 2018 के अंत से लेकर 2020 की शुरुआत तक 25 करोड़ से ज्यादा के विज्ञापन दिए हैं। जबकि कोरोना महामारी के दौरान इस खर्च को काफी हद तक कम किया गया और सरकार की सकारात्मक छवि दिखाने वाले अभियानों पर ज्यादा खर्च किया गया। इनमें सरकार का ‘मुमकिन है’ अभियान भी शामिल है, जिसके केंद्र में पीएम मोदी की छवि थी।

13 करोड़ के पास योजना का कार्ड, सिर्फ 7.07 लाख लोगों को लाभ..

बता दें की भारत में क़रीब 13 करोड़ परिवारों के पास प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना का कार्ड मौजूद है और नवीनतम सरकारी आंकड़ों को देखें तो इस योजना के तहत 10.74 करोड़ परिवार और 50 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत लाभार्थी हैं।  यह भारत की 40 % आबादी है जो गरीबी रेखा से नीचे है। वहीं आरटीआई के जवाब में यह पता चला कि 18 अगस्त 2021 तक सिर्फ 7.07 लाख लोगों को ही इस योजना का लाभ मिला है।

 लाभार्थियों को योजना के तहत कोविड-19 के इलाज की जानकारी ही नहीं..

राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव की अध्यक्षता में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसदीय स्थायी समिति ने आयुष्मान भारत योजना के बारे में लाभार्थियों में जागरूकता की कमी पर चिंता व्यक्त की थी। समिति ने नवंबर 2020 में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के कई लाभार्थियों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि इस योजना के तहत कोविड-19 का इलाज और कोरोना वायरस की जांच नि:शुल्क कराई जा सकती है।

समिति ने कहा इस वक्त कहा था कि कोरोना महामारी के दौरान सरकार को इस योजना के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए और प्रयास करने चाहिए थे। हालांकि RTI में बताए गए आकड़े इस बात के गवाह है की समिति के कहने के बाद भी सरकार ने योजना के बारे में लोगों में जागरुकता फैलने का खास प्रयास नही किया। आरटीआई के इन आंकड़ों को समझने पर पता चला कि जिस समय देश में कोरोना महामारी का कहर था, उस समय सरकार अपने कार्यकाल में लाए गए कुछ विवादास्पद कानूनों का बचाव करने और उनके बारे में अधिक जागरूकता फैलाने के लिए विज्ञापन कर रही थी।

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