स्टेन स्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ झारखंड में उबाल, 17 अक्टूबर को राजभवन मार्च

पिछले तीन दशकों से स्टेन जल, जंगल व जमीन पर आदिवासियों के संवैधानिक हक के लिए अडिग रहे हैं। उन्होंने विस्थापन, काॅरपोरेट द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट और विचाराधीन कैदियों की स्थिति पर बेहद शोधपरक काम किया है। वे 2016 में झारखंड के भाजपा सरकार द्वारा सीएनटी-एसपीटी कानून एवं भूमि अधिग्रहण कानून में हुए जनविरोधी संशोधनों को लगातार मुखरता से विरोध करते आए हैं। उन्होंने भाजपाई रघुवर दास सरकार द्वारा गांव की जमीन को लैंड बैंक में डालकर काॅरपोरेट के हवाले करने की नीति की भी जमकर मुखालफत की थी। वे लगातार संविधान की 5वीं अनुसूची एवं पेसा कानून के क्रियान्वयन के लिए भी आवाज उठाते रहे हैं।

झारखंड की राजधानी रांची से आठ अक्टूबर को मुंबई एनआईए द्वारा भीमा कोरेगांव मामले में प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता 83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ झारखंड में जबरदस्त उबाल है, प्रति-दिन कहीं ना कहीं विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। विरोध-प्रदर्शन की अगली कड़ी में 17 अक्टूबर को ‘स्टैंड फाॅर स्टेन स्वामी’ के बैनर तले विभिन्न राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों के हजारों लोग रांची के जिला स्कूल से राजभवन तक ‘न्याय मार्च’ निकालेंगे।

मालूम हो कि 8 अक्टूबर को झारखंड के प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगांव के मामले में रांची के नामकुम स्थित ‘बगाईचा’ से गिरफ्तार कर लिया गया था और अगले ही दिन मुंबई के एनआईए के विशेष अदालत में पेश कर मुंबई के तलोजा जेल भेज दिया गया था। इनकी गिरफ्तारी की खबर जैसे ही देश में फैली, लोग सड़क पर उतरकर विरोध-प्रदर्शन करने लगे।

9 अक्टूबर को ही रांची के अलबर्ट एक्का चैक पर सैकड़ों लोगों ने मानव श्रृंखला बनाकर फादर स्टेन स्वामी की रिहाई के साथ-साथ सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई, काला कानून यूएपीए को रद्द करने, भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने वाले असली मुजरिम हिन्दुवादी मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े को गिरफ्तार करने की मांग की गयी। बाद में देश के कई शहरों (पटना, कोच्चि, बंगलुरू, कोलकाता, हैदराबाद आदि) में भी विरोध-प्रदर्शन हुए, साथ ही साथ झारखंड के कई जिला मुख्यलयों में विभिन्न जनसंगठनों द्वारा विरोध-प्रदर्शन आयोजित किये गये।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, झारखंड के कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डा. रामेश्वर उरांव समेत कई सत्ताधारी विधायकों ने भी फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के विरोध में बयान दिया और केन्द्र की फासीवादी मोदी सरकार के इस कुकृत्य का विरोध किया। इधर रांची में कोकर स्थित अमर शहीद बिरसा मुंडा समाधि स्थल पर 12 अक्टूबर को ‘स्टैंड फाॅर स्टेन स्वामी’ के बैनर तने कई सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने एक दिवसीय अनशन किया और अगले दिन से प्रतिदिन 2 से 5 बजे तक वहां पर धरना दिया जा रहा है।

13 अक्टूबर को ‘क्रिश्चियन यूथ एसोसिएशन’ ने रांची के अलबर्ट एक्क चैक पर फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ में केन्द्र सरकार का पुतला फूंका। 14 अक्टूबर को रांची के अलबर्ट एक्का चैक पर ही ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, झारखंड मुस्लिम सेन्ट्रल कमेटी, झारखंड यूथ फेडरेशन, एसोसिएशन फाॅर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स समेत कई संगठनों ने फादर स्टेन स्वामी व उमर खालिद की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किया।

 

15 अक्टूबर को झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन ने फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तरी के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया, जिसमें गिरिडीह, बोकारो, रांची समेत कई जिलों में कई प्रखंड मुख्यालयों पर भी सैकड़ों लोग सड़क पर उतरे। 16 अक्टूबर को ‘रांची काथलिक कलीसिया’ के अपील पर 4 बजे से 5ः30 बजे शाम तक रांची के अलबर्ट एक्का चैक, सरजना चैक, डॉ. कामिल बुल्के पथ, डंगरा टोली चैक, कांटा टोली चैक पर फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के विरोध में मौन मानव श्रृंखला बनायी गयी और शाम 5ः30 में लोयोला मैदान में प्रार्थना सभा आयोजित की गई। 16 अक्टूबर को ही जमशेदपुर के साकची स्थित बिरसा चैक पर ‘झारखंड जनतांत्रिक महासभा’ द्वारा मानव श्रृंखला बनाकर फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का विरोध किया गया।

कौन हैं फादर स्टेन स्वामी?

स्टेन स्वामी का जन्म 1937 में तमिलनाडु के त्रिची में हुआ था। वे अपनी युवा उम्र में जेसुइट बने और 1957 में पूर्ण रूप से वंचितों और गरीबों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिये और तब से अपना जीवन आदिवासी, दलित और वंचितों के अधिकारों पर काम करने में बिताया है। वे 1965 में पहली बार झारखंड के चाईबासा क्षेत्र में आये और तब से झारखंड के ही बन गये। कुछ सालों बाद उन्होंने मनीला (फिलिपींस) में समजशास्त्र में स्नातकोत्तर प्राप्त किया। इसके बाद वे वापस आकर कोल्हान के ‘हो’ आदिवासियों के साथ गांव में रहे, जहां वे आदिवासियों की जीवनदृष्टि व उनकी समस्याओं से अवगत हुए।

सामाजिक व्यवस्था और उसके आकलन को बेहतर समझने के लिए वे 1974 में बेल्जियम में पढ़ने गये। वहां उन्हें पीएचडी करने का मौका मिला, लेकिन सामाजिक बदलाव को प्राथमिकता देते हुए वे भारत वापस लौट आए। अगले 15 सालों तक स्टेन ने बेंगलुरू के प्रसिद्ध शोध संस्थान इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) में काम किया। यहां उन्होंने सैकड़ों युवाओं को वैज्ञानिक रूप से सामाजिक समस्याओं के आकलन पर प्रशिक्षित किया और जमीनी स्ता पर लोगों को मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया।

1991 में वे पूर्ण रूप से झारखंड आ गये। उन्होंने चाईबासा में लगभग एक दशक तक आदिवासी अधिकारों पर काम किया और फिर रांची में ‘बगाईचा’ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ‘बगाईचा’ सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं और आंदोलनों के सहयोग और विभिन्न जन मुद्दों पर शोध का एक केन्द्र बना।

पिछले तीन दशकों से स्टेन जल, जंगल व जमीन पर आदिवासियों के संवैधानिक हक के लिए अडिग रहे हैं। उन्होंने विस्थापन, काॅरपोरेट द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट और विचाराधीन कैदियों की स्थिति पर बेहद शोधपरक काम किया है। वे 2016 में झारखंड के भाजपा सरकार द्वारा सीएनटी-एसपीटी कानून एवं भूमि अधिग्रहण कानून में हुए जनविरोधी संशोधनों को लगातार मुखरता से विरोध करते आए हैं। उन्होंने भाजपाई रघुवर दास सरकार द्वारा गांव की जमीन को लैंड बैंक में डालकर काॅरपोरेट के हवाले करने की नीति की भी जमकर मुखालफत की थी। वे लगातार संविधान की 5वीं अनुसूची एवं पेसा कानून के क्रियान्वयन के लिए भी आवाज उठाते रहे हैं।

इन सभी मुद्दे से जुड़े विभिन्न जनांदोलनों एवं अभियानों में उन्होंने अपना पूरा सहयोग दिया। आदिवासी-मूलवासियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था ग्रामसभा में उनका पूर्ण विश्वास है। उन्होंने भूख से मौत, आधार कार्ड की समस्याएं व सांप्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दों को भी मुखरता से उठाया है। देश में विस्थापन के खिलाफ जब ‘विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन’ नामक संगठन का निर्माण हुआ, तो इसके संस्थापक सदस्यों में से ये भी थे। माओवादी के नाम पर जेल में बंद आदिवासी-मूलवासियों पर भी इनका काम काबिलेतारीफ था, इन विचाराधीन बंदियों की रिहाई के लिए छेड़े गये अभियान में भी इन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।


रूपेश कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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