“मेरी मां से बातें करा दे कोई, मुझे मेरे मुल्क की ख़बर दे कोई
हैं वो जिंदा भी कि नहीं, मुझे इतना ही बता दे कोई”
यही स्वर, यही दर्द, यही ग़म लिए सैंकड़ों कश्मीरी छात्र कल दोपहर दिल्ली के जंतर मंतर पर ईद मनाने के लिए आए। कश्मीर में कर्फ्यू के चलते दिल्ली में पढ़ने वाले हजारों कश्मीरी छात्र अपने वतन अपने घर अपने परिवार वापिस नहीं जा सके। अतः जम्मू-कश्मीर के लोगों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर ईद का कार्यक्रम आयोजित किया। ख़बर लगने की देर थी और केरल, कर्नाटक, यूपी, बिहार, दिल्ली से हजारों की संख्या में लोग-बाग अपने घरों से खाना ले लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर जा पहुँचे। लेखिका अरुंधति रॉय, प्रोफेसर अपूर्वानंद, शायर गौहर रज़ा फिल्मकार संजय काक, संपादक पत्रकार परांजॉय गुहा ठाकुराता, रंगकर्मी एम के रैना, शबनम हाशमी, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, सोशल एक्टिविस्ट संजय मंदर समेत कई बुद्धिजीवी कश्मीरी छात्रों की सॉलिटरी में जंतर मंतर पहुंचे थे। मुख्यधारा की तमाम मीडिया कश्मीरी छात्रों के इस पीड़ा और ग़म में डूबे ईद को कवर करने के लिए जंतर-मंतर पहुंचा। और कश्मीरी छात्रों के साथ पांत में बैठकर खाना खाया और गले लगाकर ईद की मुबारक़बाद दी।
मंच से अपनी पीड़ा साझा करते हुए तमाम कश्मीरी आँखे छलछला आईं, जो अपने घर, परिवार मिट्टी से दूर होने और उनकी कोई हाल ख़बर न मिल पाने की पीड़ा से भरी हुई थी।जैसा की हम सबको पता है कश्मीर की सांसों पर सशस्त्र सैनिकों का पहरा है। मोबाइल फोन औऱ इंटरनेट सेवाएं निरस्त हैं।
जामिया मिलिया में एमकाम की पढ़ाई कर रही सुंदूस कहती हैं- “आज दस रोज हुए घर में किसी से बात हुए। दस रोज से किसी का कोई ख़बर नहीं मिली। हम तो यहां खा-पी रहे हैं पर कर्फ्यू के चलते घर में ख़ाना पीना भी सबको नसीब हो पा रहा होगा कि नहीं और ये कहते हुए सुन्दूस रो पड़ती हैं।
जामिया की ही छात्रा फ़ानुस कहती हैं- वहां की कोई ख़बर मीडिया में नहीं है। ये गहरा सन्नाटा बहुत मनहूस लग रहा है। मुझे नहीं मालूम कि मेरे घरवाले किस हाल में हैं, बाज़ार, वहां कोई ईद नहीं मना रहा होगा तो हम यहां क्या ईद मनाएं। हम यहां ईद मनाने के बहाने अपना दुख-दर्द बांटने और प्रतिरोध दर्ज कराने आए हैं।
कश्मीर के नासिर लोन ने कहा- “आज हम ईद कैसे मना सकते हैं जबकि करोड़ो लोगो को उनके घरों में कैद करके रखा गया है।”
केरल के आशिक़ कहते हैं कश्मीर में हालात बहुत खराब हैं, और बाढ़ आपदा के चलते केरल में भी आज ईद की ख़ुशी नहीं गंम का मंजर है। हम यहां कश्मीरी लोगों की तकलीफें साझा करने आए हैं।
कश्मीरी छात्र इरफ़ान कहते हैं –“मुझे सुबह से कोई फीलिंग नहीं आ रही है। मैं सुबह से कमरे में बैठकर रो रहा हूं। किसी भी चीज में मन नहीं लग रहा है। मैं पिछले महीने जुलाई में ही कशम्री से यहां दिल्ली में यूपीएससी की कोचिंग करने लिए आया था। मेरे परिवार की कोई ख़बर नहीं है। मीडिया से इल्तजा है कि हमारे खबरें और संदेशे हमारे घरों तक पहुंचा दे कि-
There is a mother waiting forson
And son is carrying motherland’ wait
All star conceal be light
Tell me mother day and night
Partition partitionpartition
And partition will defeat the mind
A father is crying
When he has not his son.
हेल्पलाइन नंबर पर सेना के लोग बताते हैं कि क्या बातें कहनी हैं और क्या नहीं
कश्मीर छात्रा मन्नत कहती हैं-“भारत सरकार कश्मीर में फोन हेल्पलाइन बूथ मुहैया करवा रही है पर वो संख्या में इतने कम हैं कि वहां बहुत लंबी लंबी लाइनें लगी हैं। घंटो लाइन में लगने के बाद गर किसी का टर्म आ भी गया तो वहां मौजूद पुलिस व सेना के लोग बात करनेवाले से बहुत सँटकर खड़े हो जाते हैं। ताकि वहां के एक्चुअल हालात फोन के जरिए बाहर न जा सकें। वो बात करने वालों से कहते हैं- कहो, कि यहां सब ठीक है, सामान्य है।”
मेरे रूह की हर तस्वीर में है कश्मीर
ओ खुदाया लौटा दे कश्मीर दोबारा”
फिल्मकार नकुल सिंह साहनी ने कहा- “यही सरकार की पॉलिसी है कि अल्पसंख्यकों को उनकी खुशी के पलों और त्योहारों पर ग़मग़ीन करके रखा जाए। पिछले साल ईद पर जुनैद की हत्या हुई थी, इस साल कश्मीर के साथ साथ कश्मीरी अवाम के दिलों के टुकड़े टुकडे कर दिए गए हैं। हम यहां अपने कश्मीरी भाई-बहनों की दुख और संघर्ष में साथ खड़े होने आए हैं। ये इनका निजी संघर्ष नहीं है ये हम सबका संघर्ष है। ये भारत के लोगो के गरिमामयी ज़िंदग़ी का संघर्ष है। मैं अपील करता हूँ कि तमाम संगठनों, तमाम आंदोलनों, और समुदायों औऱ समाजों के लोगों को एक इस संघर्ष में एक साथ आना चाहिए।”
कश्मीर पर ज़श्न-ए-आज़ादी जैसी फिल्म बनाने वाले संजय काक ने कहा- “आज यहां पर गहरी निराशा आसूं और भावावेश से भरे कश्मीरी और गैर कश्मीरी लोग हैं। कभी कभी भावुकता बहुत आसान होती है। अभी हफ्ते, महीने साल आएंगे। ये भावनाएं समझ मे बदल जाएगी और फिर समझ समाधान में और राजनीति में। हालांकि आज राजनीति पर बात करने का दिन नहीं है लेकिन फिर भी मुझे ये कहना है कि अगर आज ये आंसू और भावनाएं उस ‘पोलिटिक्स ऑफ पेन’की समझ में ट्रांसफर नहीं हुई जोकि कश्मीरी अवाम पर गुजर रही है तो ये आंसू और भावनाएं बेकार चली जाएंगी। हमें अलायंस बनाने चाहिए, आपसी समझ विकसित करनी चाहिए, कनेक्शन और कम्युनिकेशन बनाने चाहिए। आज कश्मीरी अवाम अधिकारविहीन जिस हालात में घाटी के लोग हैं हमें उसे रोकना चाहिए उसे बदलना चाहिए।”
मुकम्मल नहीं हुई ईद मेरी, ईदी में तेरा मिलना बाकी है मां
तेरी गोद में सर रख के रोना, तेरा ईद का खाना खिलाना अभी बाकी है मां
शायर गौहर रज़ा ने कहा- “लोकतंत्र की ताकत बहुत बड़ी ताकत होती है। लोगों में लोकतांत्रिक मूल्य अभी बाकी हैं तभी तो लोग आज यहां कस्मीरी छात्रों के लिए ईदी लेकर दौड़े चले आए हैं। यही लोग इस देश की तस्वीर बदलेंगे।”
शबनम हाशमी ने कहा-“ मुख्यधारा की मीडिया लगातार फेक न्यूज परोस रही है कि घाटी में सब सामान्य है लेकिन तस्वीर के दूसरे पहलू अल्टनेटिव मीडिया से आ रहे हैं वहां सब सामान्य नहीं है।”
कश्मीरी छात्रों के लिए खाना लेकर अपने छोटे छेटो बच्चों के साथ आई दिल्ली की सनोबर कहती हैं- आज सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक पर कश्मीरी लड़कियों के लेकर जिस तरह की कुंठित मानसिकता प्रदर्शित की जा रही है वो बेहद पीड़ादायक है। ये कम्युनिकेशन गैप के कारण है इसे भरा जाना चाहिए। जबकि उनके शौहर अल्तमस कहते हैं –“ उनके कई मित्र जो एएमयू से पढ़कर निकले हैं आज प्रोफेसर और वैज्ञानिक हैं। लेकिन आज एक अपराधी की तरह अपने घरों में नजरबंद हैं।”
कार्यक्रम का समापन कश्मीरी छात्रा शकीरा अमीन इन बेहद उदास पंक्तियों से करती हैं-“You on the other side slap like a child
Waiting to some porting the dark
We are to far away to hear each other’s breath
This is my last letter to you, before to my heart falls apart
Or I crossed the border,that separates tonight
Write to me as, enter a country without post office ”