भारत के परम मित्र और कभी दो जिस्म एक जान की हैसियत रखने वाले भारत और नेपाल के रिश्तों में ज़बरदस्त खाईं खुद गयी है। भारत सरकार के तमाम दबावों को दरकिनार करते हुए रविवार को नेपाल की प्रतिनिधि सभा के निचले सदन में कानून मंत्री शिवा माया तुंबामफे ने नेपाल मानचित्र को लेकर संवैधानिक संशोधन पेश किया। इस प्रस्ताव को नेपाली कांग्रेस ने भी समर्थन दिया है। इसमें भारतीय क्षेत्र समझे जाने वाले लिपुलेख, कालापानी, लिंपियाधुरा को नेपाल के क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है।
कूटनीतिक हल्के में नेपाल आमतौर पर भारत के साथ ही रहता आया है। लेकिन बीते कुछ समय से उसका चीन की ओर झुकाव देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने चर्चित काठमांडू यात्रा की थी और पशुपति नाथ मंदिर में उनकी पूजा के चित्र काफी प्रसारित हुए थे। लेकिन बाद में रिश्तों में गाँठ पड़ गयी। खासतौर पर नाकेबंदी जैसी घटना ने नेपाल को भारत से दूर कर दिया। राजनयिक क्षेत्र में इसे मोदी सरकार की कूटनीतिक विफलता मानी जा रही है।
आरएसएस से जुड़े संगठन उसे एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में काफी अहमियत देते रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद तो नेपाल के राजा को समस्त हिंदुओं का सम्राट बताता था। लेकिन वहां राजशाही की समाप्ति के बाद कम्युनिस्टों का वर्चस्व बढ़ गया। वहाँ भारत की कथित दादागीरी राजनीतिक मुद्दा बनता गया जिसका विरोध अब राष्ट्रवादी होने की पहचान है।
नेपाली संसद द्वारा पारित होने के बाद इस संशोधन पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही नया नेपाली मानचित्र संवैधानिक मान्यता पा जाएगा यानी भारत के साथ सीमा विवाद एक नये दौर में प्रवेश कर जायेगा।
यह संशोधन एक हफ्ते पहले ही आ जाता लेकिन नेपाली कांग्रेस ने इस पर चर्चा के लिए और समय मांगा था। शनिवार को नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय समिति ने संशोधन प्रस्ताव को अपना आधिकारिक समर्थन दे दिया। नेपाली मीडिया के मुताबिक नेपाली कांग्रेस ने पार्टी सांसदों को प्रस्ताव के पक्ष में मतदान का निर्देश दिया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय आम सहमति बनाने पर जोर देते रहे हैं।
नेपाली संविधान के मुताबिक संशोधन प्रस्ताव के लिए दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत है। फिलहाल 275 सदन वाले निचले सदन में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पास 174 सीटें हैं जो दो तिहाई से दस कम हैं। मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के पास 63 और जनता समाजवादी पार्टी के पास 34 सीट हैं। विपक्ष का समर्थन मिल जाने से संशोधन पारित होने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
बीते दिनों रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने धारचूला-लिपुलेख मार्ग का लोकार्पण किया था जिस पर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जतायी थी। 80 कि.मी का यह मार्ग मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए काफी सुविधाजनक होगा जिससे तीन हफ्ते की यात्रा एक हफ्ते में पूरी हो जायेगी।
बहरहाल, भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ भरोसे और विश्वास वाले वातावरण में संयुक्त संवेदनशीलता और संयुक्त सम्मान के आधार पर बातचीत के लिए तैयार है। नेपाल इस मुद्दे पर विदेश सचिव स्तर की वार्ता चाहता है।