ग्रेट डिप्रेशन: जीडीपी में बीते 11 साल की सबसे बड़ी गिरावट को भी पचा गया मीडिया

गिरीश मालवीय

 

अखबारों के फ्रंट पेज पर कल घोषित किये गए देश की जीडीपी के आंकड़ों की आंकड़ों की कही कोई चर्चा नहीं हैं कही छपा भी है तो उसे वैसी तरजीह नहीं दी गयी जैसे कि उम्मीद की जाती है!

कल पता लगा है कि देश की जीडीपी की विकास दर 2019-20 में 4.2 पर पुहंच गई, जबकि विशेषज्ञ पिछले साल गिरी से गिरी हालत में भी इसके 5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगा रहे थे, बीते चार साल में जीडीपी करीब आधी रह गई है। 2015-16 में यह 8.2 प्रत‍िशत थी। 2016-17 में 7.2 पर पहुंची। लेक‍िन, उसके बाद से बढ़ोत्‍तरी की रफ्तार कभी नहीं द‍िखी। 2017-18 में फिर गिरावट आई यह 6.7 रह गयी और 2018-19 में 6.1 फीसदी पर रही। ओर इस साल तो गिरावट के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं।

जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को मापने का सबसे जरूरी पैमाना है। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने होती है। अगर जीडीपी बढ़ती है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही की तुलना में कम है तो देश की आर्थिक हालत में गिरावट है।

देश की जीडीपी लगातार 7 तिमाही से गिर रही है.. पिछली तिमाही में तो यह सीधे 3.1 पर आ गयी है।

लगातार हर तिमाही के आँकड़े आते गए और हर बार सरकार बेशर्म बन कर कहती रही कि अगली तिमाही में सुधार हो जाएगा हर बार यह कहा गया क‍ि अब इससे ज्‍यादा ग‍िरावट नहीं हो सकती। ल‍िहाजा अगली त‍िमाही में सुधार की उम्‍मीद है। जब भी व‍ित्‍त मंत्री न‍िर्मला सीतारमण से इस बारे में पूछा गया वह यही बताती रही अर्थव्‍यवस्‍था की रफ्तार धीमी है, लेक‍िन यह मंदी नहीं है।

आज जब इन सारे सवाल पर राष्ट्रीय विमर्श खड़ा किया जाना था एक हंगामा खड़ा हो जाना था तब मीडिया से यह मुद्दा ही गायब कर दिया गया है।

नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद जीडीपी का ग्राफ नीचे ही जा रहा है। इस मंदी की, इस स्लोडाउन की नींव तो तभी पड़ गयी थी जब असंगठित क्षेत्र ध्वस्त होना शुरू हुआ था। 2017 का आखिरी महीना आते आते नोटबन्दी और जीएसटी का सम्मिलित असर बाजार पर दिखना शुरू हो गया था। इनफॉर्मल सेक्टर में रोजगार पा रहे लोगों की कमर टूटना शुरू हो गई थी.. लाखों लोग अपने जमे जमाए काम धन्धों से हाथ धो बैठे थे।

कोरोना काल में जब केंद्र सरकार से राज्य एक्स्ट्रा मदद की उम्मीद कर रहे हैं, तब उन्हें GST के उनके बकाया के लिए भी टूंगाया जा रहा है, जीएसटी लागू होने के बाद से राज्यों की हालत यह है कि वह जीएसटी क्षतिपूर्ति की राशि के रिलीज किये जाने की गुहार कर रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं है।

साल 2008-09 में वैश्विक मंदी आयी थी। भारत उस समय भी मंदी का शिकार नहीं हुआ था। लेकिन हम आज जानते हैं कि आज जो मंदी मोदी सरकार अपने गलत आर्थिक निर्णयों के कारण लाई है, उसके कारण कोरोना काल में विश्व में सबसे अधिक नुकसान किसी अर्थव्यवस्था में दर्ज किया जाएगा तो वह भारत ही है। 4.2 से सीधे निगेटिव में जाने वाली है देश की ग्रोथ, यह विश्व की बड़ी बड़ी रेटिंग एजेंसियों का कथन है।

भारत में ‘ग्रेट डिप्रेशन’ यानी महान मंदी शुरू हो चुकी है।


लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।

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