कश्मीर के बाद अब नगालैण्ड के साथ विश्वासघात की बारी?

नगा लोगों का दावा है कि 562 राजघरानों की तरह नगा नेता फीज़ो ने भारत सरकार के साथ भारत की आजादी के वक्त कोई विलय संधि नहीं की और न ही नगालैण्ड, जिसे वे नगालिम कहते हैं, अपनी मर्जी से अथवा युद्ध में परास्त होकर भारत का हिस्सा रहा है।

नगा लोग अपने इतिहास के प्रति गर्व महसूस करते हैं तथा वे कभी किसी विदेशी शासन के अधीन नहीं रहे। पहली बार अंग्रेज़ों ने दोनों तरफ काफी हिंसा जिसमें कई जानें गईं के बाद नगालैण्ड को असम का हिस्सा बनाया था। नगालैण्ड में अंर्जातीय हिंसा भी हुई है। नगालैण्ड में चालीस के करीब आदिवासी समुदाय हैं जिनकी पृथक सांस्कृतिक पहचान है। नगाओं ने अंग्रेजों से कहा था कि उनको अपना भविष्य तय करने का अधिकार है तथा अंग्रेज़ों ने भी पारम्परिक स्व-शासन की अवधारणा के आधार पर उनके लिए एक सीमित स्वायत्तता की बात स्वीकार की थी।

महात्मा गांधी भी नगाओं द्वारा अपना भविष्य खुद तय करने के उनके अधिकार के समर्थक थे तथा नेहरू द्वारा वहां सेना भेज का दमन की कार्यवाही के खिलाफ थे। भारत की आजादी के वक्त नेहरू ने नगालैण्ड को एक स्थानीय स्वायत्तता देने की पेशकश की थी लेकिन नगा नेता पृथक राष्ट्र की मांग कर रहे थे। आजादी के बाद भी नगालैण्ड असम का हिस्सा बना रहा। 1955 में वहां उठ रहे विद्रोह के दमन के लिए नेहरू ने सेना भेजी और तीन वर्ष बाद काले कानून सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को पारित कर नगालैण्ड व पूर्वोत्तर में जहां-जहां असंतोष उभर रहा था वहां-वहां इसे लागू किया गया।

1963 में नेहरू सरकार के नगा पीपुल्स कन्वेंशन के साथ एक समझौते के बाद नगालैण्ड एक पृथक राज्य बन गया जिसे फीज़ो ने धोखा बताया। 1975 में नगा नेशनल काउंसिल के साथ शिलौंग समझौता हुआ। इसे भी कुछ नगा नेताओं ने मानने से मना कर दिया। आइसैक चिसी सू, थुईंगालेंग मुइवाह व एस.एस. काफलौंग ने सम्प्रभु नगालैण्ड हेतु संघर्ष के लिए नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आँफ नगालिम का गठन किया। 1988 में इस संगठन का विभाजन हुआ।

एनएससीएन(आइएम) के नेता यूरोप चले गए व एनएससीएन (के) ने म्यांमार को अपना आधार बनाया। तत्पश्चात भारत के प्रधानमंत्री नरसिंह राव, देवेगौड़ा व अटल बिहारी वाजपेयी आइसैक व मुइवाह से क्रमशः पेरिस, बैंकॉक व एम्सटरडम में वार्ता हेतु मिले। 1997 में युद्ध विराम के बाद से वार्ताओं का दौर चला है। 3 अगस्त, 2015 को नरेन्द्र मोदी सरकार ने इन्हीं नागा नेताओं के साथ एक प्रारूप समझौता किया।

इस पर भारत सरकार की ओर से प्रधानमंत्री की उपस्थिति में वार्ताकार आर.एन. रवि तथा नगा लोगों की ओर से मुइवाह ने हस्ताक्षर किए हैं। आइसैक ने अस्पताल से इस पर हस्ताक्षर किए। इसमें एक साझा सम्प्रभुता व स्थायी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ दो इकाइयों के बाच एक समावेशी रिश्ते की बात की गई है।

एनएससीएन (आइएम) ने इस नाजुक रिश्ते की बारीकियों के बारे में विस्तार से जिम्मेदारियों के बंटवारे का एक मसौदा तैयार किया है। नगालैण्ड की सरकार के तहत सभी नागा इलाके जिसमें असम, मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र भी शामिल हैं, माने जाएंगे जिनका अंततः एकीकरण किया जाएगा, जो नगा संगठनों की एक लम्बे समय से मांग रही है।

उपर्युक्त तीन राज्यों के नगा रिहाइशी इलाकों में नगा क्षेत्रीय परिषद का गठन होगा। नगा क्षेत्रीय परिषद की अपनी विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका होंगी। न्यायपालिका में पारम्परिक व आधुनिक दोनों कानून माने जाएंगे। जमीन व उसके ऊपर व नीचे जो कुछ भी है वह नगालैण्ड का होगा।

ज्ञात हो कि नगा इलाकों में पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, कोयला व अन्य खनिजों के भण्डार हैं। वर्तमान समय में केन्द्र सरकार इन खनिजों से हुए मुनाफे का एक-चैथाई से भी कम राज्यों के साथ साझा करती है। विदेश नीति में नगालैण्ड से सम्बंधित मामलों को छोड़ वे भारत सरकार के साथ रहेंगे किंतु नगालैण्ड के विदेशों में पृथक संस्कृति व शिक्षा कार्यालय होंगे। नगालैण्ड की अपनी अलग शिक्षा व्यवस्था होगी लेकिन भारत के उच्च शैक्षणिक संस्थानों में वह अपने छात्रों के लिए आरक्षण की अपेक्षा भी करेगा। एक ईसाई बहुसंख्यक आबादी होते हुए भी नगालैण्ड धर्मनिरपेक्ष राज्य रहेगा। आंतरिक सुरक्षा उसकी अपनी होगी किंतु बाह्य सुरक्षा की व्यवस्था वह भारतीय सेना के साथ मिलकर करेगा।

नगालैण्ड का अलग गान, संविधान, प्रतीक चिन्ह व झंडा होगा। नगालैण्ड से दो सदस्य राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करेंगे। जो समझौता होगा उसमें परिवर्तन भारत की संसद व नगालैण्ड की विधायिका में दो-तिहाई बहुमत से पारित होने के बाद ही मान्य होगा। सशस्त्र बल विशेष सुरक्षा अधिनियम नगालैण्ड से हटाया जाएगा एवं बिना नगालैण्ड की सहमति के नहीं लगेगा।

अगस्त 2019 में जम्मू व कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद ही राज्यपाल आर.एन. रवि ने घोषणा की कि प्रधानमंत्री तीन माह के अंदर नगालैण्ड समझौता सम्पन्न करना चाहते हैं। रवि ने प्रस्ताव रखा है कि नगालैण्ड भारत के अन्य राज्यों जैसे ही उसका एक राज्य बन जाए जबकि यह अपेक्षा की जा रही थी कि भारत सरकार एनएससीएन (आइएम) के साथ हुए प्रारूप समझौते के आधार पर ही कोई अंतिम समझौता करेगी। उसने छह संगठनों के एक मंच नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह के साथ समानांतर वार्ता शुरू कर दी जो नगालैण्ड के पृथक संविधान पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। एनएससीएन (आइएम) इसे छलावा मानता है।

थुईंगालेंग मुइवाह का कहना है कि किसी भी लोकतंत्र में सम्प्रभुता लोगों की होती है और नगालैण्ड में सम्प्रभुता नगा लोगों की ही होगी। उनका यह भी कहना है कि यदि भारत सरकार समझौते को अंतिम रूप देने के इतना नजदीक आकर भी समझौते से मुकर जाती है तो नगा लोग इतने दूर चले जाएंगे कि उन्हें दोबारा वार्ता के बुलाना भी आसान नहीं होगा।

भारत सरकार एनएससीएन (आईएम) से 22 वर्षों की वार्ता के दौरान जो वायदे किए हैं उसे उसका पालन करना चाहिए। नगालैण्ड कोई आजादी की मांग नहीं कर रहा है। वह तो साझा सम्प्रभुता व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात कर रहा है। मुइवाह पूछते हैं कि भारत सरकार कैसे यह उम्मीद करती है कि नगा लोग आत्मसमर्पण कर देंगे।

आखिर 22 वर्षों से वार्ता इसलिए तो नहीं हो रही थी कि नगालैण्ड उसी तरह भारत का एक राज्य बन जाए जैसे शेष राज्य हैं। नगालैण्ड को अलग झंडा व संविधान देने से भारत की सम्प्रभुता को कोई खतरा नहीं है। जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि अपनी सीमा पर मित्र नगा होना ज्यादा अच्छा है बजाय असंतुष्ट जिन्हें जबरदस्ती बलपूर्वक भारत के साथ रखा जाए। सी. राजगोपालाचारी ने भी नगा लोगों की स्वायत्तता की वकालत की थी।


संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) से सम्बद्ध हैं तथा मीरा संघमित्रा जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से हैं
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