चमोली – ये ग्लेशियर नहीं, क़ुदरत का सब्र टूटकर, पूंजी के दुर्गद्वार पर मासूम लाशें बिछा गया है!

चमोली में हुआ क्या था?

उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर का टुकड़ा टूटने हुई लैंड स्लाइड और ऋषिगंगा नदी में बाढ़ आने से मची तबाही का असल मंज़र तो अभी हमारे सामने आना बाकी है। रैणी गाँव वही गांव है, जहां से 70 के दशक में विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन की शुरूआत हुई और इसकी महान नायक स्व. गौरा देवी इसी गांव से थी।
सुबह 11 बजे के लगभग पहली बार, इस हिमस्खलन की खबर वीडियोज़ के ज़रिए सोशल मीडिया पर पहुंची, तबाही का मंज़र-जितना दिखा, उतना ही हौलनाक़ था। स्थानीय लोगों के मुताबिक रैणी गाँव के नज़दीक हिमस्खलन के बाद, हर तरफ धुएं का गुबार था, इस मलबे ने नदी में गिर कर – ऋषिगंगा और अलकनंदा का जलस्तर बढ़ाकर जलप्रलय में बदल दिया। जिसकी चपेट में जो आया सबकुछ बह गया। कुछ पलों के लिए फिर, 2013 में हुई केदारनाथ आपदा की के घाव फिर से हरे हो गए। सुबह 11 बजे, जोशीमठ में धौलीगंगा का जलस्तर 1,388 मीटर रेकॉर्ड किया गया, जबकि 2013 की केदारनाथ बाढ़ के समय ये 1,385.5 मीटर ही था।

इस प्राकृतिक आपदा का सबसे बड़ा शिकार बना 2006 से बन रहा ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट और तपोवन विष्णुगाड़ पॉवर प्लांट। ऋषिगंगा पॉवर प्लांट रैणि गांव में स्थित 11 मेगावाट का प्रोजेक्ट है जो कि धौलीगंगा नामक नदी में स्थित है और इसी के आगे 5 किलोमीटर की दूरी पर, नदी के नीचे के हिस्से में – तपोवन में स्थित तपोवन विष्णुगाड़ पॉवर प्लांट 520 मेगावाट का एक बिजली विद्युत् पॉवर प्लांट है। ये भी इसकी चपेट में आकर ढह चुका है।

ऋषिगंगा पावर प्लांट में कम से कम 35 लोग काम कर रहे थे, जिसमें 2 पुलिसकर्मी भी थे। लेकिन तपोवन, जो कि एनटीपीसी का निर्माणाधीन प्रोजेक्ट है – वहां पर 176 तो मज़दूर ही थे। इसके अलावा वहां और लोग भी थे। जिसमें एनटीपीसी के कर्मचारियों समेत-स्थानीय लोग भी हो सकते हैं। इसके अलावा अभी तक स्थानीय ग्रामीणों को हुए, जानमाल के नुकसान का आकलन या अंदाज़ा सामने नहीं आया है। ऊपर दी गई संख्या में से अंतिम सूचना मिलने तक 7 शव निकाले जा चुके थे और 16 लोगों को रेस्क्यू कराया जा चुका था। लेकिन अगर ये संख्या हटा दें तो भी, अभी तक कम से कम 200 लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

इन दोनों ही साइट्स पर, कई फुट का मलबा इकट्ठा हो जाने के कारण – किसी भी तरह की गाड़ी या मशीनें नहीं पहुंच पा रही हैं। 16 लोगों का एक टनल में से रेस्क्यू भी आईटीबीपी के जवानों की मेहनत औऱ जुनून का परिणाम है।  

तो क्या ये वाकई प्राकृतिक आपदा है?

कुछ दिन पहले तक इस इलाके में बर्फ़बारी हो रही थी…क्या ये बात ही अपने आप में वो अहम सवाल नहीं है, जिसके आगे के सवाल को पूरा करते ही-हमें बाकी जवाब मिलने लगेंगे? आगे का सवाल ये है कि फरवरी के महीने की शुरूआत में, आख़िर कैसे इस इलाके में, हिमस्खलन जैसी घटना हो सकती है-जहां आप सैटेलाइट चित्र देखें तो अभी भी बर्फ जमी हुई है? आखिर किस तरह इनदिनों ग्लेशियर टूटकर पानी का स्वरुप ले सकता है, जब बर्फ के कारण इस इलाके के 7 गावों के निवासी-अपना गांव छोड़कर नीचे की ओर गए हुए हैं?

वो इलाका, जिसकी तलहटी में ये आपदा आई

न केवल स्थानीय ग्रामीण बल्कि कई भूवैज्ञानिकों सहित वरिष्ठ पत्रकार भी बताते है कि ये मामला दरअसल विकास के नाम पर कुदरत से अन्याय का है। इस इलाके में नीति घाटी से निकलने वाली धौलीगंगा, नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व का एक अहम हिस्सा है जो कि बेहद संवेदशील और नंदा देवी बफर ज़ोन का हिस्सा है। बफ़र ज़ोन का अर्थ, जिसमे छेड़छाड़ बिल्कुल वर्जित हो। साल 2019 में ही, इसी इलाके में – उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रैणि गाँव के ग्रामीणों की याचिका के आधार पर, विभिन्न कंपनियों द्वारा बाँध बनाने के लिए डायनामाइट द्वारा विस्फोट पर भी प्रतिबंध लगाया था। तो क्या ये सब बंद हो गया? सोचिए कि आख़िर जो 250 मीटर गहरी टनल बन रही थी, उसे कैसे बनाया जा रहा होगा?

2013 की विभीषिका के बाद से हुए, तमाम अध्ययन हैं, जो ये लगातार साफ करते रहे हैं कि उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं की वजह दरअसल मानव ही है। लाभ और लोभ के सत्ता-कॉरपोरेट समीकरण ने उत्तराखंड के पहाड़ों को ख़तरे में डाल दिया है और उसकी सज़ा हमेशा की तरह उन्होंने भुगती है, जो इसके ज़िम्मेदार नहीं है। वे या तो स्थानीय निवासी हैं या फिर इस साइट्स पर काम करने वाले लोग। नेता और उद्योगपति, हमेशा की तरह सुरक्षित हैं और नुकसान का आकलन कर रहे हैं। चमोली में इस इलाके में ही कई बांधों के प्रोजेक्ट हैं और हैरान मत होइएगा कि इस आपदा में ध्वस्त हुआ ऋषिगंगा बांध भी निजी क्षेत्र की परियोजना है।

2018 में जर्नल ऑफ जियोग्राफी एंड नेचुरल डिसास्टर में चमोली में आपदा आकलन को लेकर छपे एक शोध में, इस पेपर को लिखने वाले सुशील खंडूरी बिल्कुल साफ लिखते हैं, “इस इलाके (चमोली) में की गई भूगर्भिक जांच बताती है कि इस क्षेत्र में होने वाले 80 फीसदी लैंडस्लाइड (भूस्खलन), या तो पहाड़ों को काटने या फिर इन्फ्रास्कट्रक्चरल विकास के नाम पर होने वाले क्षरण/धारा के द्वारा क्षरण के कारण हो रही हैं।”

बात यहीं पर रुकती नहीं है, चमोली और उत्तरकाशी – दरअसल उत्तराखंड के भूकंप के सबसे संवेदनशील, सेस्मिक ज़ोन 4 और 5 में आते हैं। ऐसे में यहां पर इस तरह के प्रोजेक्ट्स को आख़िर इतनी जानों को ख़तरे में डाल कर क्यों किया जा रहा है? 2016 में केंद्र सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक शपथ पत्र में कहा था कि उत्तराखंड के कई इलाकों को छूना भी नहीं चाहिए। यहां पर बांध और नदी की धारा में परिवर्तन ने नदी की लंबाई को गंभीर नुकसान किया है और उसकी वास्तविक स्थिति और गुणवत्ता को भीषण नुकसान पहुंचाया है।

भूकंप की रेड ज़ोन में है चमोली

ख़ैर, टीवी चैनलों पर एक ख़बर ये भी है ऋषिकेश में फिलहाल गंगा नदी पर होने वाले एडवेंचर स्पोर्ट्स राफ्टिंग को भी बंद करा दिया गया है। हो सकते है आप में से कई राफ्टिंग पर जाने वाले हों और काफी निराश हों। ऐसे में आपका दुख हम बस ये याद दिलाकर थोड़ा कम कर सकते हैं कि आपको कम से कम समय पर पता चल गया है। 200 से अधिक लोगों को ये पता भी नहीं चला कि उनके सिर पर मौत, सैलाब बन कर आएगी। आप टीवी चैनल पर विसुअल देखकर मन बहला सकते हैं और दुखी भी हो सकते हैं। हालांकि पता तो आपको भी नहीं है कि चमोली के जिस हादसे पर आप सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल रहे हैं, ख़ुद को सेफ मार्क कर रहे हैं और रेस्ट इन पीस लिख रहे हैं। वो आपको बिजली देने के लिए, सालोंसाल से तबाह हो रहा है और हर साल ऐसे ही तबाह होता जाएगा।

बहरहाल, आपदा रोकी नहीं जा पाती है, इसलिए आपदा प्रबंधन विभाग ने हेल्पलाइन नम्बर 1070, 9557444486 जारी कर दिया है और सभी से न घबराने की अपील भी कर दी है। सोशल मीडिया पर कोई भी वीडियो बगैर पुष्टि अपलोड न करने की अपील की है, क्योंकि जिस आपदा के कारण की पुष्टि हो – उसके बारे में पहले कोई बहस नहीं करनी है और बाद में कोई शिकायत भी नहीं।

 

देहरादून से दीपक रावत के साथ दिल्ली से मयंक सक्सेना की विशेष रिपोर्ट

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