भगत सिंह जयंती 28 सितं. को किसान फिर भरेंगे हुंकार, कॉरपोरेट ग़ुलाम काले साहबों का विरोध!

खेती के तीन कानूनों को संसद में जबरन पारित कर घोषित किए जाने के विरोध में देश के किसानों और खेत मजदूरों ने 25 सितंबर को अपने संघर्ष का बिगुल बजाकर केन्द्र सरकार को माकूल जवाब दिया।

पंजाब और हरियाणा में बन्द सम्पूर्ण रहा है और पश्चिम उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्यप्रदेश के कई इलाकों में बंदी रही तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आन्ध्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू, असम व अन्य क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी विरोध सभाएं हुईं। ऐसा अनुमान है कि 1 लाख से ज्यादा विरोध कार्यक्रम आयोजित हुए और 2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इनमें भाग लिया।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की अपील पर 28 सितम्बर 2020 को महान राष्ट्रवादी, क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह के 114वें जन्मदिवस के अवसर पर देश भर में इन तीनों काले खेती के कानूनों तथा तथा सरकार के अन्य बहुराष्ट्रीय कम्पनी परस्त, कॉरपोरेट परस्त कदमों जैसे डीजल-पेट्रोल के दाम व करों में वृद्धि और नया बिजली कानून 2020, जो शुरुआती दर रु0 10.20 कर देगा, का विरोध किया जाएगा।

भगत सिंह ने देश के लोगों से यह अपील की थी कि केवल विदेशी लुटेरों, अंगे्रजों के खिलाफ लड़ना जरूरी नहीं है, यह लड़ाई उनके खिलाफ भी होनी चाहिए जो उन्हें भारतवासियों पर राज करने और लूटने में मदद कर रहे हैं। उन्होंने इन्हें अंगे्रजों का दलाल कह कर काले साहब कहा था और यह प्रसिद्ध बात कही थी कि ‘गोरे साहब चले गये और भारत में काले साहब का राज आ गया तो कुछ नहीं बदलेगा’। आरएसएस-भाजपा का भारतीय खेती में विदेशी कम्पनियों और कॉरपोरेट की लूट के प्रति समर्पण इस बात को साबित करता है, उनकी भूमिका भगत सिंह के काले साहबों की तरह है।

आरएसएस-भाजपा नेतृत्व वाली मोदी सरकार द्वारा पेश कानून विदेशी कम्पनियों और बड़े प्रतिष्ठानों को सरकारी मंडी के बाहर अपनी निजी मंडिया बनाने की अनुमति देते हैं। ये फसल की खरीद पर एकाधिकार करके उन्हें बहुत सस्ते दामों पर खरीदेंगे। इनकी मंडियों को नरेन्द्र मोदी सरकार ने टैक्स से भी मुक्त कर दिया है। इससे सारी सरकारी खरीद, भंडारण व राशन में अनाज की आपूर्ति समाप्त हो जाएगी। जब भी कभी फसल अच्छी हुई है आज तक कभी प्रतिष्ठानों ने अच्छा रेट नहीं दिया है। मोदी सरकार किसानों व देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है और नाटकीय ढंग से दावा कर रही है कि विदेशी कम्पनियां किसानों को अच्छा रेट देंगी।

मोदी सरकार ने मंडी बिल को दाम आश्वासन और ठेका खेती बिल को आमदनी आश्वासन कह कर धोखा देने की कोशिश की। वे इन्हें आत्मनिर्भर विकास व किसानों का सुरक्षा कवच बताने का नाटक कर रहे हैं। सच यह है कि ये कानून वास्तव में ‘सरकारी मंडी बाईपास’ तथा किसानों को ‘कॉरपोरेट जाल में फंसाने’ के कानून हैं। किसानों की कोई बेड़ी नहीं खुलेगी, क्योंकि ग्रामीण मंडियां निजी कॉरपोरेशन के कब्जे में होंगी, किसान अनुबंध खेती द्वारा उनसे बंधे होंगे और उनकी जमीनें निजी सूदखोरों के हाथों गिरवी रखी होंगी। ये कानून उदारीकरण नीति का गतिमान रूप हैं और इनके अमल से किसानों पर कर्जे बढ़ेंगे और आत्महत्याएं तेज होंगी।

इन कानूनों के द्वारा सरकार ने देश की खाद्यान्न सुरक्षा पर गम्भीर हमला किया है। उसने सभी अनाज, दालें, तिलहन, आलू व प्याज को आवश्यक वस्तुओं के माध्यम से नियामन से मुक्त कर दिया है। इसका नया कानून असल में ‘कालाबाजारी की मुक्ति’ कानून है, जिसमें फसल खरीद पर नियंत्रण करने वाले प्रतिष्ठानों को जमाखोरी व कालाबाजारी की पूरी छूट होगी और 75 करोड़ राशन के लाभार्थियों को मजबूरन खुले बाजार से अनाज खरीदना होगा।

केन्द्रीय कृषि मंत्री सरकारी खरीद और एमएसपी को जारी रखने की बात कह के लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। आज भी ये दोनो चीजें बहुत कम ही अमल की जाती हैं और सरकार को इनके अमल करने के लिए बाध्य करने का कोई कानून मौजूद ही नहीं है। फिर भी सरकार ने विदेशी कम्पनियों का कृषि बाजार पर नियंत्रण करने देने का कानून बनाया है और भगत सिंह को चेतावनी को सही साबित किया है।


 एआईकेएससीसी मीडिया सेल द्वारा जारी

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