गुरूवार की सुबह किसान संगठनों ने पहले सीधे कहा कि सरकार को कृषि कानून वापस लेने ही होंगे और उसके बाद किसानों के जत्थों ने दिल्ली के बचे खुचे इलाकों को भी बाकी सीमाओं से काटने का क्रम चालू कर दिया। सरकार से होने वाली बैठक के ठीक पहले, किसान संगठनों को अंदाज़ा है कि सरकार अभी भी अपने रुख पर अड़ी है और कृषि बिल वापस लेने पर उसका रुख नकरात्मक ही होगा। इसके बाद किसान संगठनों ने अपनी साझा आपत्तियों और मांगों का एक ड्राफ्ट, इस बातचीत से पहले ही सरकार के पाले में डाल दिया है।
We are hopeful that the talks will be productive. If our demands are not met then the farmers will take part in the Republic Day parade held in Delhi: Farmer leader Rakesh Tikat at Vigyan Bhawan in Delhi#FarmerProtest pic.twitter.com/ZykfomDMgt
— ANI (@ANI) December 3, 2020
गुरूवार की सुबह ही किसान संगठनों की ओर से केंद्र सरकार को आपत्तियों की जो लिस्ट सौंपी गई है, उसमें कृषि कानून के साथ-साथ वायु गुणवत्ता अध्यादेश और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल को लेकर भी आपत्तियां दर्ज की गई हैं। सरकार से होने वाली बातचीत में 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। लेकिन दरअसल किसानों की सबसे अहम मांग – यानी कि कृषि क़ानून वापस लेने पर न तो किसान अपनी मांग से पीछे हटते दिख रहे हैं और न ही सरकार।
अपने ड्राफ्ट में किसान संगठनों ने जो बातें रखी हैं, उनमें से मुख्य हैं;
- संसद में पास कराए गए, तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं।
- वायु प्रदूषण के कानून में किए गए बदलाव वापस लिए जाएं।
- बिजली बिल कानून में संशोधन किसान के हित में नहीं बल्कि उसके नुकसान में है – जो गलत है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार ज़ुबानी नहीं, लिखित में आश्वासन दे।
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रावधानों पर किसान संगठनों ने आपत्ति जताते हुए, इस पर मुश्किल सवाल किए हैं।
- लेकिन सबसे अहम सवाल, जो किसानों की ओर से आया है – वह ये है कि किसानों ने तो कभी ऐसे किसी कृषि बिल की मांग की ही नहीं, तो फिर आख़िर ये बिल संसद में किसके कहने पर लाए गए? ज़ाहिर है कि सरकार, जो किसानों के हित का दिखावा कर रही है, उसने किसानों के बिना मांगे ये बिल पास कराए और वो भी किसानों की राय लिए बिना। ऐसे में ये सिर्फ कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए बिल हैं।
इस ड्राफ्ट को भेजे जाने के बाद, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, किसान संगठनों से बैठक के पहले जाकर-गृह मंत्री अमित शाह से मिले। इस मुलाक़ात में क्या चर्चा हुई, इसकी कोई ख़बर हमेशा की तरह सार्वजनिक नहीं की गई है। लेकिन जहां सरकार एक ओर किसानों की बातें सुनने और समाधान निकालने का दावा कर रही है – दूसरी ओर वो कृषि क़ानूनों पर बिल्कुल भी पीछे नहीं हटना चाह रही है। ऐसे में फिलहाल हम बातचीत के ख़त्म होने का आज इंतज़ार भले ही कर लें, ये गतिरोध फिलहाल टूटता नहीं दिख रहा है।
ਪੰਜਾਬ ਕਿਸਾਨ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਜੱਥੇ ਦਿੱਲੀ ਲਈ ਰਵਾਨਾ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ#किसान_विरोधी_मीडिया#Tractor2Twitter @jassiegill @HarfCheema @JasmineSandlas pic.twitter.com/aAUE32VxC4
— PUNJAB KISAN UNION (@PunjabKisanUnio) December 3, 2020
इसके अलावा धीरे-धीरे देश के अलग-अलग राज्यों से किसानों के समूहों के दिल्ली पहुंचने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों के बाद अब न केवल गुजरात के किसान दिल्ली आ पहुंचे हैं बल्कि महाराष्ट्र से भी 14 हज़ार किसानों के शुक्रवार को दिल्ली पहुंचने की उम्मीद है। ऐसे में सरकार के लिए एक ओर हालात मुश्किल होते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर वह कृषि क़ानून वापस लेकर – अपने को कमज़ोर भी नहीं दिखाना चाह रही है। गुरूवार की शाम और शुक्रवार की सुबह बेहद अहम होगी और अब देश के साथ, दुनिया की नज़र भी दिल्ली पर लगी है।
Thousands of Indian farmers have blocked highways around New Delhi in protest of new agricultural policies that they say will make them vulnerable to corporate titans and end guaranteed minimum crop prices. https://t.co/hdI1dWocpY
— The New York Times (@nytimes) December 1, 2020