कोई भी तबलीग़ी जमात की लापरवाहियों का समर्थन नहीं करेगा, लेकिन जिस तरह से मीडिया के एक बड़े हिस्से ने कोरोना जैसी महामारी को भी सांप्रदायिक खेल में तब्दील कर दिया है, वह भयावह है. कुल मिलाकर देश में ऐसा माहौल बनाने का प्रयास हो रहा है जैसे कोरोना तबलीग़ की वजह से फैल रहा है, या वे जानबूझकर फैला रहे हैं। हद तो ये है कि इस प्रचार में धार लाने के लिए तमाम झूठ गढ़े जा रहे हैं जिसे मीडिया का बड़ा हिस्सा भी प्रसारित करने में जुटा है।
ज़रा ऊपर की तस्वीर ग़ौर से देखिये, भारत में हिंदी टीवी पत्रकारिता के पितामह एस.पी.सिंह के चेले दीपक चौरसिया किस शान से प्रयागराज की एक घटना को तबलीगी जमात से जोड़ रहे हैं जिसका वहां की पुलिस खंडन कर रही है। देश ये पहली बार देख रहा है कि संपादक स्तर के पत्रकार के दावों का खंडन पुलिस कर रही है, जबकि रवायत उल्टी है। यही नहीं एबीपी न्यूज़ के विकास भदौरिया के झूठ का भी पुलिस ने खंडन किया।
उधर, हिरासत में लिये गये तबलीगी जमात के लोगो मांसाहारी खाने के लिए उत्पात मचा रहे हैं, ऐसी भी ख़बरें सोशल मीडिया में ख़ूब चलीं. लेकिन वैधता तब मिली जब मांसाहारी भोजन और खुले में शौच जैसी ख़बरें किसी और और ने नहीं, एक ज़माने में हिंदी के चुनिंदा प्रखर और सत्यनिष्ठ अख़बारों में दर्ज किये जाने वाले अमर उजाला ने इसे छापा। इसका भी खंडन पुलिस ने आधिकारिक रूप से कर दिया लेकिन हिंदी पट्टी के बड़े हिस्से के चौक-चौराहों तक तो इस झूठ को बांचा ही गया।
ऐसी झूठी ख़बरें लाखो की संख्या में सक्रिय व्हाट्सऐप ग्रुप्स में पहुँचीं जबकि खंडन की परवाह किसे। फ़र्ज़ी ख़बरें किसी मक़सद से गढ़ी जाती हैं फिर उन्हें प्रचारित करने के लिए उनता ही कुटिल योजना भी बनती है। जबकि सच काफ़ी सादा होता है जिसका प्रचार विज्ञापन की दुनिया के लिए कोई आकर्षण नहीं रखता।
तबलीग़ी जमात के दिल्ली में 13-15 मार्च को हुए आयोजन में देश-दुनिया से तकरीबन 3000 लोग शामिल हुए. इनमें शामिल लोगों में कोरोना संक्रमण पाये जाने के बाद से भारत में कोरोना संक्रमितों और संदिग्धों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. जब कोरोना वायरस को दुनिया महामारी की निगाह से देख रही हो, लाखों संक्रमित हों, हज़ारों की जान जा चुकी हो, तो ऐसे में तबलीग़ी जमात का इतनी बड़ी संख्या में लोगों को निज़ामुद्दीन मरकज़ में जुटाकर आयोजन करना भारी लापरवाही थी. लेकिन इस लापरवाही में प्रशासन भी बराबर का शरीक़ था और अचानक पूरे देश को लॉक डाउन कर देने वाली घोषणा ने भी इस समस्या को बढ़ाया। बहरहाल, तबलीगी जमात के लोगों ने वैसी ही ग़लती की जैसे कि कनिका कपूर ने की या फिर विदेश से आये उन लाखों लोगों ने की जो बिना एयरपोर्ट पर क्वारिंटीन हुए अपने घरों तक पहुँच गये और अब कोरोना संक्रमण के विस्तार के संदिग्ध माने जा रहे हैं।
लेकिन, ये सारे लोग अपराधी नहीं है। बीमार हैं, दहशत में हैं। पिछड़ा दिमाग़ भी हो सकते हैं। इनके साथ सहाानुभूति के साथ संवाद की ज़रूरत है। वैसे भी कोरोना ने साबित किया है कि इंसान किसी भी मज़हब या जाति का हो, ख़तरे में बराबर है। इस वायरस ने पूरी इंसानी बिरादरी को एक मानने का नया तर्क मुहैया करा दिया है। लेकिन भारत का ज़हरीला मीडिया इसे कैसे बरदाश्त करता। कोरोना के सामने हतप्रभ और सरकार की तमाम लापरवाहियों को छिपाने में जुटा ये कुटिल शिकारी अचानक तबलीग़ पर झपट पड़ा और तमाम झूठे क़िस्से गढ़कर प्रसारित करने लगा।
फेक न्यूज़ का ऐसा ही एक मामला फ़िरोज़ाबाद का आया जब ज़ी न्यूज़ उत्तर प्रदेश उत्तराखंड ने ख़बर ट्विटर पर डाली कि ‘फ़िरोज़ाबाद में 4 तबलीग़ी जमाती कोरोना पॉज़िटिव, इन्हें लेने पहुंची मेडिकल टीम पर हुआ पथराव’. ज़ाहिर है, सोशल मीडिया पर इसका भी जमकर प्रसार हुआ. हालांकि, इसके बाद फ़िरोज़ाबाद पुलिस ने इस ख़बर का खंडन कर दिया और लिखा: ‘आपके द्वारा असत्य और भ्रामक ख़बर फैलायी जा रही है, जबकि जनपद फ़िरोज़ाबाद में न तो किसी मेडिकल टीम एवं न ही एम्बूलेंस गाड़ी पर किसी तरह का पथराव नहीं किया गया है. आप अपने द्वारा किये गये ट्वीट को तत्काल डिलीट करें.’
फ़िरोज़ाबाद पुलिस के ट्वीट के बाद ज़ी न्यूज़ ने ट्वीट डिलीट करके स्टोरी में थोड़ा बदलाव कर दिया. यह ख़बर ज़ी न्यूज़ ने फेसबुक पर भी डाली थी, जिसे तकरीबन 6 हज़ार लोगों ने लाइक किया और 1.5 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने शेयर किया है. फेसबुक पर यह ख़बर अभी पथराव वाले शीर्षक के साथ मौजूद है.
कोरोना के प्रकोप के बीच सांप्रदायिक माहौल तैयार करके जो छवियां पाठक के मन में गढ़ी गयीं, उन्हें क्लिक बेट पत्रिकारिता की ख़ुराक भी बनाया गया है. 4 अप्रैल को न्यूज़18 ने ख़बर चलाई कि दुबई से मध्य प्रदेश के मुरैना लौटे एक व्यक्ति से 11 लोगों को कोरोना वायरस फैल गया है. ख़बर की हेडिंग के साथ जो फीचर तस्वीर लगायी गयी उसमें तीन व्यक्ति बैठे दिखायी देते हैं. उन सभी ने टोपियां पहनी हुई हैं और कुर्ता पाजामा पहना हुआ है. तस्वीर भी ऐसी जैसे किसी झरोखे से छिपकर खींची गयी हो. मतलब साफ़ था कि पाठक खबर की लिंक देखेगा तो उसके मन में यही छवि बनेगी कि मामला मुसलमानों या तबलीग़ी जमात से जुड़ा हुआ है. जबकि ख़बर के अंदर मामला कुछ और था, और व्यक्ति की कोई पहचान नहीं बतायी गयी थी. बाद में यह सामने आया कि उस व्यक्ति का नाम सुरेश है और दुबई में काम करता है.
हाल में ही पीटीआई और एएनआई के हवाले से एक ख़बर आयी थी कि निज़ामुद्दीन मरकज़ से ले जाये जा रहे लोगों ने डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ बदसलूकी की और उनपर थूका था. इसके बाद एक वीडियो सोशल मीडिया पर जबरदस्त वायरल हुआ था, जिसके सहारे बताया जा रहा था कि निज़ामुद्दीन मरकज़ से ले जाये जा रहे तबलीग़ी जमात के लोगों ने पुलिस के ऊपर थूका. बाद में बीबीसी की पड़ताल में सामने आया कि वह वीडियो पुराना था, जिसमें एक अंडरट्रायल कैदी को पुलिस ले जा रही थी और उसने गुस्से में पुलिस के ऊपर थूक दिया था. इसी वीडियो को तबलीग़ी जमात से जोड़कर वायरल करा दिया गया था.
WATCH: @ThaneCityPolice beat man for spitting on them pic.twitter.com/U5b2rt8iWj
— TOI Plus (@TOIPlus) February 29, 2020
ज़ाहिर है, यह सब अनायास नहीं था। तबलीग़ और इस बहाने पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के उद्देश्य से यह आक्रमण किया गया। इसके निश्चित राजनीतिक उद्देश्य हैं जो समाज में सांप्रदायिक विभाजन से संभव होती है। जो लोग पान-मसाला खाकर एक ही दिन में ताजमहल को लालक़िला बनाने की क़ुव्वत रखते हैं वे भी अचानक तबलीग़ या किसी भी मुस्लिम का थूक जांचने लगे। झूठ के थूक ने देश को वीभत्स रस में डुबो दिया। ज़रा इस चैनल को देखिये। बता रहा था कि कोरबा से रायपुर लाए गए जमात के लोगों ने एम्स में हंगामा किया। थूकने और भागने की कोशिश की। एम्स को इसका भी खंडन करना पड़ा। इससे पहले देश ने कभी डाक्टरों पर थूकने वाले मुसलमान नहीं देखे थे। सत्ता और उसके चारण मीडिया की कृपा ने यह दिन भी दिखा दिया।
टीवी पत्रकारिता के दौर में संपादकों की एक ऐसी जमात आयी है जो अध्ययन और संवेदनाशून्य है। उसे बस सनसनी की तलाश है चाहे वह सत्य की लाश पर मिले। और जब यह सनसनी सरकार की कमियों को ढंकने के काम आये तो उसे इसका प्रतिसाद भी मिलता है। ‘हम’ और ‘वे’ में बांटती देश की सत्ताधारी राजनीति के वे स्वाभाविक चाकर हैं। इस फेर में उन्होने इस बार तबलीग़ को निशाना बनाया है जो यूं इतने सीधे माने जाते थे कि उन्हें अल्ला मियां की गाय कहने का भी चलन था। उनका काम लोगों को दीन की ओर मोड़ना और लोगों को यह यक़ीन दिलाना है कि अल्लाह एक है और सबसे बड़ा है। यही काम देश के तमाम संत महात्मा भी करते हैं। लोगों को यक़ीन दिलाते हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है और लोगों को धर्म की राह पर चलना चाहिए।
फ़र्क़ क्या है..? भाषा और भूषा! बस। लेकिन यही फ़र्क़ जाहिल दिमाग़ लोगों की नज़र में देशभक्त और देशद्रोही का फ़र्क हो जाता है। मीडिया इस फ़र्क़ को बढ़ाने में जुटा है जो महज़ अफ़सोस नहीं कुछ करने की बात है।