उत्तराखंड: जान जोख़िम में डालकर आवाजाही को मजबूर, तस्वीरें बयाँ कर रही दास्तान!

आज के आधुनिक दौर में जब शहरो के साथ गांवों का भी विकास हो रहा है। नदी पार करने के लिए पुल, अच्छी सड़के, बिजली न हो तो लोगों का गुज़ारा नहीं होता। यह यूं कहें कि हमें इन सुख सुविधाओं की आदत सी हो गई है। यही सुविधाएं आसान जिंदगी व्यतीत करने में हमारा सहयोग भी करती है। सोचिए आज़ादी के 75 साल बाद भी जान की बाज़ी लगा कर आवाजाही करना पड़े तो क्या फायदा विकास का और इस आधुनिक दौर का? उत्तराखंड प्रदेश के बड़कोट में गांवों से आई यह तस्वीरों को देख आप अंदाजा लगा पाएंगे कि यहां के लोगो को आवाजाही के लिए जीवन जोखिम में डालना पड़ता है। सिर्फ एक गांव का यह हाल नही है बल्कि बड़कोट में आठ गांवों के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने के लिए मजबूर हैं।

लाखों रूपये की ट्राॅली ग्रामीणों के लिए पर बनी है शो-पीस..

 आज भी सरबडियार के आठ गांवों के लिए सड़क नही बनी है। इस कारण ग्रामीणों को मानसून में इस तरह अपनी जान जोखिम में डालकर बरसाती नालों से आवाजाही करनी पड़ती है। लाखों रुपये की लागत की ट्राॅली ग्रामीणों के लिए बनाई गई लेकिन वह भी बेकार है क्योंकि यहां वह शो-पीस बनी हुई है। बड़कोट क्षेत्र के ठकराल क्षेत्र के अंतिम गांव सरनौल से सटे पुरोला तहसील के सरबदियार पट्टी के तीन ग्राम सभा के आठ गांवों के लोग बरसात के मौसम में इस तरह एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं।

मानसून में खुलती हैं सुविधाओं की पोल..

हालांकि, लोक निर्माण विभाग, वन विभाग, विकास विभाग इस नाले पर लोगों की आवाजाही के लिए सुविधा उपलब्ध कराता है। लेकिन मानसून में ये सारी सुविधाएं उजागर हो जाती हैं। जैसा कि तस्वीरों में देखा जा सकता है कितनी बेहतर सुविधाएं है। मानसून पूरी तरह से इन सुविधाओं की पोल खोलता है। इतना ही नहीं, जब सरबदियार में कोरोना वॉरियर्स पहुंचे तो उनकी टीम को भी इसी तहर सरबदियार इलाके में टीकाकरण के लिए जाना पड़ा। वहीं सरुतल बुग्याल क्षेत्र में आने वाली बडियार नदी पर आवाजाही भी इसी तरह बरसात के मौसम में काफी जोखिम भरी हो जाती है।

इन गावों की परेशानियों को दूर करने के लिए सरकारें कोई  कदम क्यों नहीं उठा रही है और अगर उठा रही हैं तो वह दिख क्यों नही रहा है? या फिर केंद्र और राज्य सरकारों को ग्रामीणों की यह परेशानी खास नही लग रही है। कम से कम इनके आवाजाही के लिए मुनासिब सुविधाएं तो मुहैया कराई ही जा सकती हैं जिससे अपनी जान जोखिम में डाल ग्रामीणों को रास्ता पार न करना पड़े।

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