गाज़ियाबाद केस में पत्रकारों पर FIR को एडिटर्स गिल्ड और DIGIPUB ने लोकतंत्र का मज़ाक़ बताया

ग़ाज़ियाबाद में एक बुज़ुर्ग मुस्लिम कि पिटाई से जुड़ी ख़बर को लेकर पत्रकारों और वेबसाइट द वायर के ख़िलाफ़ यूपी पुलिस की एफआईआर पर एडिटर्स गिल्ड और डिजिटिल प्रकाशनों की संस्था DIGIPUB ने गहरी नाराज़गी जताते हुए एफआईआर रद्द करने की माँग की है।

एडिटर गिल्ड ने अपने बयान में कहा है कि ‘वो सरकार की इस तरह की कार्रवाई को लेकर चिंतित है। इसके पहले भी यूपी पुलिस का पत्रकारों पर एफआइआर दर्ज करने का ट्रैक रिकॉर्ड खराब रहा है। पत्रकारों की ये जिम्मेदारी है कि वो सूत्रों के आधार पर रिपोर्टिंग करते हुए अपना काम करें। पुलिस की तरफ से इस तरह की कार्रवाई होना और इसे आपराधिक काम बताना बोलने की आजादी के खिलाफ है। ये संविधान के खिलाफ है।….ये साफ है कि पुलिस ने मीडिया समूहों और पत्रकारों पर अपनी कार्रवाई के जरिए भेदभावपूर्ण रवैया दिखाया है। गिल्ड मांग करता है कि रिपोर्टिंग और असहमति को दबाने के लिए कानून का गलत इस्तेमाल ना किया जाए और पत्रकारों, मीडिया संस्थानों पर दर्ज की गई FIR को तुरंत रद्द किया जाए।’

दरअअस्ल 5 जून को एक बुज़ुर्ग के पीठे जाने का वीडियो वायरल हुआ था। वीडियो में दिख रहे व्यक्ति ने आरोप लगाया था कुछ लोगों ने उनकी दाढ़ी काटी और जय श्री राम का नारा लगाने के लिए कहा। इस वीडियो को पत्रकारों ने रीट्वीट करते हुए शेयर किया, सवाल उठाये थे। पुलिस अब कह रही है कि विवाद ताबीज़ को लेकर हुआ था।

उधर, डिजिटिल प्रकाशनों के संगठन डीजीपब ने इसे लोकतंत्र का मज़ाक़ बताते हुए कहा है कि यूपी पुलिस पीड़ितों का पक्ष लाने की सज़ा दे रही है।

 

 

First Published on:
Exit mobile version