डॉ. कफ़ील की रिहाई को लेकर माले-आइसा-इनौस का प्रदर्शन

भाकपा-माले, आइसा, इनौस व इंसाफ मंच के संयुक्त बैनर तले आज लोगों पूरे देश में गोरखपुर के बहुचर्चित शिशु चिकित्सक डाॅ. कफील खान की अविलंब रिहाई और उनपर लगे रासुका को हटाने की मांग को लेकर प्रतिवाद दर्ज किया. लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए लोगों ने कार्यालयों अथवा घरों से प्रतिवाद दर्ज किया. विदित है कि यूपी की योगी सरकार ने डाॅ. कफील खान को तीसरी बार जेल में डाला है. 2017 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में आपराधिक सरकारी लापरवाही के कारण ऑक्सीजन के अभाव में 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी, जिसके लिए डाॅ. कफील ने सरकार की आलोचना की थी. यही वजह है कि उनके पीछे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हाथ धोकर पड़ी हुई है.

बिहार की राजधानी पटना में राज्य कार्यालय में आयोजित प्रतिवाद कार्यक्रम में पार्टी के राज्य सचिव कुणाल, केंद्रीय कमिटी के सदस्य बृजबिहारी पांडेय, ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे, प्रदीप झा, राज्य कमिटी के सदस्य प्रकाश कुमार, विभा गुप्ता आदि नेताओं ने पोस्टर लेकर डाॅ. कफील की अविलंब रिहाई की मांग की.

इस मौके पर पटना में राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि सरकार की नीतियों-फैसलों का विरोध करने के कारण डॉ. कफील पर रासुका लगाकर जेल में बंद कर देना योगी सरकार का फासीवादी कदम है. अभी संकट की घड़ी में वे बाहर होते तो हम सबके काम आते. कहा कि 2017 वाली घटना में सरकार ने उलटे डॉ. कफील को ही बच्चों की मृत्यु के लिए जिम्मेवार ठहराकर जेल भेज दिया था. खुद सरकार द्वारा गठित जांच दल ने 2 साल बाद सितम्बर 2019 में उन्हें दोषमुक्त घोषित कर दिया. लेकिन जांच दल ने उन्हें योगी जी से माफी मांगने को भी कहा. डॉ. कफील ने माफी नहीं मांगी और वे फिर योगी जी के निशाने पर आ गए.

12 दिसम्बर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए के खिलाफ आयोजित सभा में उत्तेजक भाषण देने के झूठे आरोप में 29 जनवरी 2020 को पुनः उन्हें मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. 10 फरवरी 2020 को उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. लेकिन जेल से रिहा करने में जानबूझकर 3 दिन देरी की गई. 13 फरवरी को कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश फिर से जारी किया, लेकिन रिहाई की बजाय 14 फरवरी को उन पर 3 महीने के लिए रासुका लगा कर फिर डिटेन कर दिया गया. डिटेंशन की अवधि खत्म होने से पहले फिर 12 मई 2020 को रासुका की अवधि 3 महीने के लिए बढ़ा दी गई है.

आरा में माले विधायक सुदामा प्रसाद, राजू यादव, जवाहर लाल सिंह, गड़हनी में इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, जगदीशपुर में इनौस के राज्य अध्यक्ष अजीत कुशवाहा; मनेर में आइसा के राष्ट्रीय महासचिव संदीप सौरभ, पूर्णिया में आइसा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोख्तार, आरा में राज्य सचिव सबीर कुमार, दरभंगा में संदीप चैधरी व प्रिंस कर्ण, कटिहार में काजिम इरफानी के नेतृत्व में आज का प्रतिवाद संगठित किया गया. मुजफ्फरपुर में इंसाफ मंच के सूरज कुमार सिंह, आफताब आलम, फहद जमां आदि के नेतृत्व में इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने डाॅ. कफील की रिहाई की मांग उठाई. दरभंगा में इंसाफ मंच के राज्य उपाध्यक्ष नेयाज अहमद ने प्रतिवाद किया.

सिवान में माले विधायक सत्यदेव राम व पूर्व विधायक अमरनाथ यादव, बारसोई में महबूब आलम, धनरूआ में खेग्रामस के राज्य सचिव गोपाल रविदास, पालीगंज में अनवर हुसैन, अरवल में महानंद, जहानाबाद में रामबलि सिंह यादव आदि प्रमुख नेताओं ने प्रतिवाद दर्ज किया.

राज्य कार्यालय के अलावा पटना में पार्टी के वरिष्ठ नेता व पोलित ब्यूरो के सदस्य राजाराम सिंह ने भी अपने घर से विरोध दर्ज किया. राजधानी पटना में राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत दीघा में माले नेताओं ने प्रतिवाद दर्ज किया. इसमें पार्टी नेता जीतेन्द्र कुमार, राम कल्याण सिंह, वशिष्ठ यादव, मो. नाजिम, मो. रफीक, राजकुमारी देवी ने हिस्सा लिया. दीघा में ही अनीता सिन्हा, प्रो. अरविंद कुमार ने प्रतिवाद दर्ज किया. कंकड़बाग और पटना सिटी में भी माले कार्यकर्ताओं ने अपने घरों से प्रतिवाद किया. इनौस के विनय कुमार सहित दर्जनों नौजवानों ने प्रतिवाद किया. पटना सिटी में इंसाफ मंच के पटना संयोजक नसीम अंसारी के नेतृत्व में प्रतिवाद दर्ज किया गया.

पटना के नेताओं ने कहा कि विगत वर्ष की बाढ़ और पटना के जलजमाव के समय भी डाॅ. कफील ने कैंप लगाकर पटना सहित कई जगहों पर लोगों का इलाज किया था. ऐसे समाजसेवी चिकित्सक को राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर यूपी की सरकार जेल में सड़ाकर मार देना चाहती है. ऐसा हम किसी भी सूरत में नहीं होने देंगे.

मुजफ्फरपुर से डाॅ. कफील खान का विशेष संबंध रहा है. आज वहां उपर्युक्त संगठनों के नेतृत्व में जगह-जगह प्रदर्शन किये गए. गायघाट में आयोजित कार्यक्रम में माले के वरिष्ठ नेता जितेन्द्र यादव, विवेक कुमार, विकास कुमार, अशोक कुमार शामिल हुए. शहर में जिला सचिव कृष्णमोहन के नेतृत्व में विरोध दर्ज किया गया. मुशहरी ब्लाॅक में आइसा व इनौस ने प्रदर्शन किया. ऐपवा की कार्यकर्ताओं ने भी इसमें हिस्सा लिया. इस मौके पर कृष्णमोहन ने कहा कि डॉ. कफिल पड़ोस के गोरखपुर के होने के कारण बिहार से सजीव रूप से जुड़े रहे हैं. जब चमकी बुखार से मुजफ्फरपुर में हाहाकार मचा हुआ था, उन्होंने यहां कैम्प लगाकर बच्चों का इलाज किया और उनका मुजफ्फरपुर से गहरा संबंध स्थापित हो गया है.

आरा, पटना ग्रामीण, जहानाबाद, सिवान, अरवल, नालंदा, पूर्णिया, रोहतास, गया, नवादा, समस्तीपुर, सहरसा, दरभंगा, मधुबनी आदि तमाम जिला केंद्रों और प्रखंडों-गांवों में घर से रहकर प्रतिवाद दर्ज किया गया.

डॉ. कफील खान की रिहाई के लिए यूपी में प्रदर्शन

यूपी की मथुरा जेल में रासुका में लंबे समय से बंद गोरखपुर के प्रसिद्ध बाल चिकित्सक डॉ. कफील खान की अविलंब रिहाई की मांग को लेकर उत्तर प्रदेश में भी प्रदर्शन हुए।

यूपी की राजधानी लखनऊ में प्रदर्शन लालकुआं पार्टी कार्यालय, गोमती नगर, बीकेटी व आशियाना में हुआ। माले व जनसंगठनों के कायकर्ताओं ने हाथों में डा. कफील खान की रिहाई की मांग की तख्तियां लेकर नारे लगाते हुए फोटो व वीडियो सोशल मीडिया पर डालने के अलावा ट्वीट भी किये।

इस मौके पर पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि योगी सरकार ने सीएए-विरोधी आंदोलन के दौरान गत दिसंबर में अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने के फर्जी आरोपों के तहत डॉ. कफील खान को जेल में बंद कर रखा है। उन्हें पुलिस का विशेष दस्ता भेजकर मुंबई हवाई अड्डे से बीती जनवरी में गिरफ्तार कराया और मथुरा जेल में डाल दिया। हाई कोर्ट से उन्हें जमानत भी मिली, लेकिन ऐन मौके पर उनकी रिहाई को रोकने के लिए सरकार ने रासुका लगा दिया।

राज्य सचिव ने कहा कि डॉ. कफील चिकित्सक ही नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में जब ऑक्सीजन कांड हुआ था, तब उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाकर कई बच्चों की जानें बचाईं थीं। जिस काम के लिए उन्हें पुरस्कार मिलना चाहिए था, उसीके लिए उन्हें प्रताड़ित किया गया। इस कांड में मुख्यमंत्री की नाक के नीचे सरकार की लापरवाही उजागर होने पर योगी सरकार ने आरोपों का ठीकरा डा. कफील के सिर पर फोड़ा और तबसे उन्हें निशाने पर लिये हुए है, जबकि सरकार की ओर से कराई गई एक जांच में वे निर्दोष साबित हो चुके हैं।

डॉ. कफील ने यूपी ही नहीं, पड़ोसी राज्य बिहार में चमकी बुखार फैलने के दौरान वहां जाकर बच्चों का निःशुल्क इलाज किया। जब भी उन्हें मौका मिला, हर जगह वे अपनी स्वास्थ्य सेवाएं स्वेच्छा से देने के लिए हमेशा ही तैयार रहे। ऐसे जन चिकित्सक को इस महामारी के दौर में भी योगी सरकार ने अपने अहंकारपूर्ण द्वेष, घृणा व दमन की नीति के तहत जेल में कैद कर रखा है, जबकि उनकी सामाजिक उपयोगिता इस समय सबसे अधिक है। उन्होंने कोई ऐसा अपराध नहीं किया है, जिसकी सजा उनपर रासुका लगाकर दी जा रही है। जेल में कोरोना संक्रमण का भी खतरा है। उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

लखनऊ के अलावा डॉ. कफील की रिहाई के लिए प्रदर्शन वाराणसी, प्रयागराज, सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर, देवरिया, भदोही, रायबरेली, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, जालौन, मथुरा व अन्य जिलों में हुआ। प्रदर्शन में माले, इंसाफ मंच, आइसा, इंकलाबी नौजवान सभा (आरआईए), ऐपवा आदि संगठनों ने भाग लिया।


विज्ञप्ति पर आधारित

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