कसाबपुरा के ईदगाह मैदान में मस्जिद के बुर्ज पर पछुवा हवा में फहराते तिरंगा और नीचे मैदान पर ‘हिंदुस्तान ज़िंदाबाद’, ‘हमारी एकता ज़िंदाबाद’, ‘हम देश बचाने निकले हैं, आओ हमारे साथ चलो’, ‘हम कानून बचाने निकले हैं, आओ हमारे साथ चलो’ के गूँजते नारे एक विहंगम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। बता दें कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ कसाबपुरा के ईदगाह मैदान पर स्त्रियां पिछले कई दिनों से अनिश्चतकालीन धरने पर बैठी हुई हैं। यहां एक-दो नहीं, चार पीढ़ी की स्त्रियां जिसमें तीन माह की साइना से लेकर 80 साल की बुजुर्ग स्त्री तक सब शामिल हैं।
एक छात्रा सवाल खड़े करते हुए कहती है –“असम की आबादी 3.3 करोड़ है जब वहां की आबादी को टैकल करने में इन्हें 10 साल लग गए तो पूरे भारत की आबादी तो उससे बहुत ज़्यादा 1 अरब 25 करोड़ है। तो क्या वो यहां लाशिस्तान बनाना चाहते हैं। सबको जेल में डालकर खाना देंगे, क्या करेंगे। मेरा यही सवाल है किये लोग हम लोगों को यहां से हटाकर क्या करना चाहते हैं। क्या साबित करना चाहते हैं।”
शाहीन खुरेशी- “मोदी जी आप तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते हो लेकिन आज आपने हमें इस नौबत में ला दिया है कि हमारे घर की बेंटियां और बहुएं सब सड़कों पर उतर आई हैं। वे कैसे तालीम हासिल करेंगी? क्या सड़कों पर आना अच्छी बात है? आप हमेशा हमारे व्यक्तिगत मसलों में दखलअंदाजी करते हैं हम चुप रह गए कि आप बोलें ख़ूब बोलें। लेकिन मुल्क़ और आइन व्यक्तिगत या कौमी मसला नहीं है। होगा वही जो आवाम चाहेगी। जो गलत है वो गलत है। ”
70 वर्षीय नसीम बेग़म कहती हैं- “ हम अपने देश के लिए लड़ रहे हैं। हम यहां पैदा हुए हैं, हमारा यहाँ सब कुछ है। ये हमारा मुल्क़ है। एनआरसी हमारे मुल्क़, हमारी एकता और भाईचारे को बांट देगा, हम एनआरसी नहीं लागू होने देंगे। किसी कीमत पर नहीं लागू होने देंगे। ”
तभी मस्जिद की सीढ़ियों पर बने मंच से एक बच्ची पूरे जोश ओ खरोश से गाती है और पूरा ईदगाह उसके पीछे पीछे गाते हुए झूमने लगता है-
“शहीदों की कुर्बानी बदनाम न होने देंगे,
एक भी कतरा ख़ून है जब तक रगों में
भारत में की इज्ज़त को नीलाम न होने देंगे
मानचित्र को काट रहे हो, भारत माँ को बाँट रहे हो।
गैर तिरंगा फाड़ रहे हो अपने झंडे गाड़ रहे हो
जब सीने पर ही आ बैठे भारत मां के हत्यारे
छोड़ छाड़कर सुर कबीरा तब लिखने पड़ते हैं नारे
तब लिखने पड़ते हैं नारे”
“वतन सोने की चिड़िया है
मगर वो हलाक कर देगा
जमीन-ए-हिंद के हर जर्रे को को वो नापाक़ कर देगा
को वो नापाक़ कर देगा, वो नापाक कर देगा
गुजारिश है मेरी इससे हुकूमत छीन लो
लगाकर आग नफ़रत की वो सब कुछ राख कर देगा
वो सबकुछ राख कर देगा
वो सब कुछ राख कर देगा”
शमां कुरैशी-“हम अपनी आज़ादी लेकर रहेंगे। हम सरकार को ये दिखा देंगे कि हम औरते भी एक साथ चल सकती हैं एक साथ इनसे लड़ सकती हैं।”
एडवोकेट आबिदा कहती हैं- “हमारी पीड़ा सबके लिए है। कानून आवाम की भलाई के लिए बननी चाहिए। जो कानून सारे लोगों को तकलीफ़ पहुँचाए वो कानून नहीं है। अगर लोग इतनी शारीरिक और मानसिक पीड़ा लेकर यहां इकट्ठा हो रहे हैं तो सरकार को इनकी बात सुननी चाहिए। यहां पर लोग ऐसे ही तो नहीं जुटे। इस पर ज़्यादा तवज्जो दी जीने चाहिए। अगर कोई कानून एक कम्युनिटी के लिए नहीं बनता। यदि कोई कानून किसी कम्युनिटी जाहिर है मुस्लिम कम्युनिटी को इतने बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है तो ऐसा कानून ही क्यों बनाना। सेकुलर इंडिया है। आप कहते हो इंडिया पाकिस्तान का बँटवारा धर्म के आधार पर हुआ है। तो आज आप क्या कर रहे हो यहाँ?
आप धर्म के आधार पर कोई कानून बनाकर कहते हो उनके पक्ष में 70 साल पहले एक राज्य बना है तो आप लोगों के दिलों में फूट डाल रहे हो। मुझे नहीं समझ में आ रहा कि इस देश में हो क्या रहा है। इतना बड़ा कानून रातों रात पास हो जाता है। मुस्लिम कम्युनिटी के भी कुछ लोग हैं जिनके फेवर में है ये कानून तो मैं उनसे भी गुजारिश करना चाहती हूँ कि आप अपने निजी फायदा के नजर सेमत देखो, इसे कम्युनिटी के हित अहित के नजरिये से देखो।अच्छे दिन यही हैं क्या कि लोग हमेशा लाइन में लगते रहें। कभी किसी चाज की लाइन में तो कभी किसी चीज की लाइन में।
आपने आवाम को हर तरह से परेशान करके रखा है। आपको हुकूमत करना नहीं आता। जो लोग इस भेदभावपूर्ण कानून को तर्कसंगत सिबत करने की कोशिश कर रही हैं ये ठीक नहीं है। आप इसके पक्ष में रीजनेबल क्लासीफिकेशन पेश करके सही साबित नहीं कर सकते। रीजनेबल क्लासीफिकेशन करना कोर्ट का काम है हालांकि आजकल कोर्ट भी सरकार के प्रभाव में है। बावजूद इसके देश केकोर्ट पर हमारा अटूट विश्वास है और कोर्ट को चाहिए कि वो देश के आवाम को रिप्रेजेंट करे, किसी सरकार को नहीं। अतः वो सरकार के अधीन होकर काम न करे।ये कानून संविधान और नागरिक अधिकारों के खिलाफ़ है।”
एक 80 वर्षीय ख्वातून पुरजोश कहती हैं- “हमें कोई नहीं निकाल सकता। ये हमारा वतन हैं। हम अपने वतन की हिफ़ाजत करेंगे। हम यहीं के हैं हम यहीं रहेंगे। हम अपने कागजात नहीं दिखाएंगे। हम अपने कागजात सामने नहीं लाएंगे। हमारे बाप दादा यहां जन्में यहीं मरे। उनकी क़ब्रें यहीं पर हैं। किसी में इतनी ताक़त नहीं कि हमें यहां से भगा दे। हम गोली खाकर भी यहीं मरेंगे और यहीं सुपुर्दे खाक हो जाएगें। हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे।हम यहीं मरेंगे मिटेंगे।”
50 वर्षीय क़मर जहाँ कहती हैं- “ ये हमारा मादरे वतन है। हमारा बचपन यहां बीता है। हमारी बचपन की यादों, स्मृतियों और हमारे इतिहास में हिंदुस्तान है। ये हमारा वतन है किसी के कहने से थोड़े हम गैर हो जाएंगे। हमारे पुरखों को मिट्टी यहां है। हम अपने पुरखों की मिट्टी छोड़कर कहां जाएंगे। हम कहीं नहीं जाएंगे।”
और फिर सभी स्त्रियाँ एक स्वर में गाते लगती हैं- “हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन…”
आमीन, आमीन, आमीन……